नाइट्रेट प्रदूषण: जल संकट का एक छिपा हुआ खतरा
भारत में जल संकट आज विकट समस्या का रूप धारण कर चुका है। यह न केवल राष्ट्र की उन्नति और समृद्धि पर गहरी चोट करता है, बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन को भी संकट में डाल रहा है।

भारत में जल संकट आज विकट समस्या का रूप धारण कर चुका है। यह न केवल राष्ट्र की उन्नति और समृद्धि पर गहरी चोट करता है, बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन को भी संकट में डाल रहा है। जल का प्रमुख स्रोत, भूजल, तेजी से अपनी शुद्धता और मात्रा खोता जा रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट से यह स्पष्ट हुआ है कि देश के 440 जिलों में भूजल में नाइट्रेट का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक हो चुका है। यह स्थिति जल की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठाती है और जनस्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती है। पीने के पानी, कृषि, सिंचाई और उद्योगों में जल के व्यापक उपयोग के कारण दूषित भूजल स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर घातक प्रभाव डालता है। जल संकट का यह संकट हमें सचेत करता है कि हमे तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
नाइट्रेट प्रदूषण का मुख्य कारण आधुनिक कृषि की अनियंत्रित वृद्धि है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। किसान अधिक उपज पाने के प्रयास में इन रसायनों पर निर्भर हो जाते हैं, लेकिन इस निर्भरता का परिणाम भूजल की गुणवत्ता पर बुरा असर डालता है। रासायनिक नाइट्रेट धीरे-धीरे मिट्टी में समाहित होकर जल स्रोतों तक पहुंच जाता है, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण को बड़ा खतरा होता है। इसके अतिरिक्त, औद्योगिक और घरेलू अपशिष्टों का जल स्रोतों में बिना शोधन के प्रवाह भी नाइट्रेट प्रदूषण को बढ़ावा देता है। जब ये प्रदूषक जल में घुलते हैं, तो जल की जीवनदायिनी शक्ति समाप्त हो जाती है और उसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो जाता है।
नाइट्रेट प्रदूषण से उत्पन्न स्वास्थ्य संकट विशेष रूप से शिशुओं और गर्भवती महिलाओं के लिए गंभीर हो सकता है। नाइट्रेट रक्त में घुलकर ऑक्सीजन की वहन क्षमता को घटा देता है, जिसके परिणामस्वरूप "ब्लू बेबी सिंड्रोम" जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस अवस्था में शिशु की त्वचा नीली पड़ जाती है और सांस लेने में कठिनाई होती है। वयस्कों में भी नाइट्रेट युक्त जल का सेवन उच्च रक्तचाप, कैंसर और अन्य गंभीर रोगों को जन्म दे सकता है। इसके अलावा, पर्यावरण पर भी नाइट्रेट प्रदूषण का गहरा असर पड़ता है। जलाशयों और झीलों में नाइट्रेट की अधिकता जल में ऑक्सीजन की कमी का कारण बनती है, जिससे जलजीवों का अस्तित्व संकट में पड़ता है। इस प्रदूषण के कारण पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ता है और जैव विविधता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
भारत में जल संकट का स्वरूप अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न है। राजस्थान और गुजरात जैसे सूखा प्रभावित राज्यों में भूजल का अत्यधिक उपयोग नाइट्रेट प्रदूषण को बढ़ा रहा है, वहीं पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से जल संकट गहरा रहा है। शहरी क्षेत्रों में जल प्रदूषण मुख्य रूप से घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों के कारण होता है। इस गंभीर समस्या का समाधान केवल सतत और सामूहिक प्रयासों से ही संभव है। कृषि क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नियंत्रित करना सबसे महत्वपूर्ण कदम होना चाहिए। किसानों को प्राकृतिक उर्वरकों और जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, जिससे न केवल भूजल में नाइट्रेट की मात्रा कम होगी, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी बनाए रखा जा सकेगा। सरकार को कड़े नियम लागू कर उर्वरकों के संतुलित उपयोग को सुनिश्चित करना चाहिए। साथ ही, जल शोधन संयंत्रों की स्थापना और उन्नत शोधन तकनीकों का उपयोग भी आवश्यक है।
ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां भूजल पर अधिक निर्भरता है, जल शोधन की विशेष योजनाओं की आवश्यकता है। सामुदायिक भागीदारी और तकनीकी नवाचारों के माध्यम से जल संकट का स्थायी समाधान खोजा जा सकता है। भूजल पुनर्भरण और संरक्षण के उपायों को प्रभावी रूप से लागू करना आज की आवश्यकता है। वर्षा जल संचयन, जल की बर्बादी रोकने के लिए जागरूकता अभियान और जल स्रोतों के आसपास वृक्षारोपण जैसे उपाय इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।
जल संरक्षण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि प्रत्येक नागरिक का भी कर्तव्य है कि वह जल संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें और उनके संरक्षण में सहयोग दें। जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए स्रोत से लेकर उपयोग तक प्रत्येक चरण में सतर्कता बरतनी चाहिए। नाइट्रेट प्रदूषण से निपटने के लिए शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रभावी जल प्रबंधन योजनाएं बनाई जानी चाहिए। इसके साथ ही, जल प्रबंधन के उन्नत तरीकों की खोज और क्रियान्वयन के लिए शोध को बढ़ावा देना चाहिए।जल संकट सिर्फ आज की चुनौती नहीं है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व का सवाल है। नाइट्रेट प्रदूषण और जल संकट से निपटना हम सभी का कर्तव्य है। जल, जो प्रकृति का सबसे मूल्यवान उपहार है, को संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक नैतिक दायित्व भी है।
आइए हम सभी मिलकर जल संरक्षण और नाइट्रेट प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस कदम उठाएं। जल का विवेकपूर्ण उपयोग और उसकी सुरक्षा हमारे अस्तित्व और प्रगति के लिए अनिवार्य है। यह समय है चेतने और सामूहिक प्रयासों का।