उत्तराखंड : कांवड़ यात्रा में 10 दिन में हरिद्वार पहुंचे करीब 4 करोड़ कांवड़िये

हरिद्वार, 27 जुलाई (उत्तराखंड सरकार और प्रशासन के लिए चुनौती बनी कांवड़ मेला का मंगलवार को सकुशल समापन हो गया। इस बार करीब चार करोड़ कांवड़िये और श्रद्धालु गंगाजल लेने हरिद्वार पहुंचे। यह पहला मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में कांवड़ियों ने कांवड़ मेले में शिरकत की।

उत्तराखंड : कांवड़ यात्रा में 10 दिन में हरिद्वार पहुंचे करीब 4 करोड़ कांवड़िये

हरिद्वार, 27 जुलाई । उत्तराखंड सरकार और प्रशासन के लिए चुनौती बनी कांवड़ मेला का मंगलवार को
सकुशल समापन हो गया। इस बार करीब चार करोड़ कांवड़िये और श्रद्धालु गंगाजल लेने हरिद्वार पहुंचे। यह पहला


मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में कांवड़ियों ने कांवड़ मेले में शिरकत की। दो साल कोरोना संक्रमण के बाद
सरकार को यह पता था कि इतनी बड़ी तादाद में कांवड़िया हरिद्वार पहुंचेंगे।

लिहाजा, 10 दिनों तक चलने वाली
इस कांवड़ मेले के लिए सरकार ने भी कुंभ मेले की तरह पूरे इंतजाम किए हुए थे।


हरिद्वार में 14 जुलाई से शुरू हुए इस कांवड़ मेले का 26 जुलाई को समापन हो गया। इस बार पड़ोसी राज्यों यूपी,
दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान से लाखों की संख्या में कांवड़िये उत्तराखंड पहुंचे। इस तरह 21 जुलाई से कांवड़


यात्रा अपने पूरे चरम पर पहुंच गई थी। आलम ये था कि 23 जुलाई से हरिद्वार में इस कदर भीड़ हो गई थी कि
यहां पर कदम रखना भी मुश्किल हो गया था।

एक अनुमान के मुताबिक, तीन करोड़ 40 लाख कांवड़िया बीते 5
दिनों में हरिद्वार से गंगाजल लेकर अपने गंतव्य के लिए निकले।


इतिहास में यह पहला मौका था, जब कांवड़ मेले के लिए करीब 4 करोड़ कांवड़िया हरिद्वार पहुंचे थे। ऐसे में हर


किसी के मन में यही सवाल था कि इतनी अधिक संख्या में इस छोटे से शहर हरिद्वार और ऋषिकेश में भला यह
भीड़ कैसे समा सकती है। वो भी तब जब बड़ी संख्या में डाक कांवड़ भी हरिद्वार पहुंची हो।

इस बाबत हरिद्वार जिलाधिकारी विनय शंकर पांडे ने बताया कि दो वर्ष बाद हुए इस कांवड़ मेला में करीब चार
करोड़ कांवड़िया और श्रद्धालु हरिद्वार गंगाजल लेने आए। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर


हरिद्वार पहले की तरह होता तो शायद इतनी अधिक संख्या में भीड़ को कंट्रोल करना और कांवड़ मेले का सकुशल
कराना संभव नहीं था

लेकिन इस बार क्राउड मैनेजमेंट के लिए जिस तरह फ्लाईओर का इस्तेमाल किया गया।
इससे यह कठिन कार्य संभव हो पाया।


उन्होंने कहा कि फ्लाईओवर होने की वजह से हरकी पौड़ी से चलने वाले कांवड़ियों को सीधे दिल्ली की ओर भेजा
जा रहा था जबकि, पैदल यात्रा करने वाले श्रद्धालु कांवड़ पटरी से गुजर रहे थे। मेले के अंतिम दिनों में कांवड़ियों


का भारी दबाव होने के बावजूद क्राउड मैनेजमेंट किया गया। यह शासन-प्रशासन के लिए किसी उपलब्धि से कम
नहीं है। आने वाले मेलों के लिये यह प्रशासन को और अधिक सीखने का मौका देकर जा रही है।


कांवड़ मेला इस बार सुरक्षित संपन्न करना प्रशासन और पुलिस दोनों के लिए बड़ी चुनौती था, जिसके लिए पुलिस-
प्रशासन ने बहुत पहले ही तैयारियां शुरू कर दी थी। पुलिस ने कुंभ मेले की तर्ज पर कांवड़ मेले में सुरक्षा और


व्यवस्था के इंतजाम किए थे। कांवड़ मेला क्षेत्र का 12 सुपर जोन, 29 जोन और 130 सेक्टरों में बांटा गया था।
सुरक्षा के मद्देनजर मेला क्षेत्र में डाग स्क्वायड की पांच टीम तैनात की गई थी। इसके अलावा ड्रोन कैमरों से भी


नजर रखा जा रही थी। इसके अलावा कांवड़ मेले में कांवड़ियों की वेशभूषा में भी पुलिस को नियुक्त किया गया
था।


कांवड़ मेले में 734 विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त किए गए थे। इसके अलावा अपर पुलिस अधीक्षक 14, पुलिस
उपाधीक्षक 32, निरीक्षक, थानाध्यक्ष, एसएसआई 56, एसआई 152, महिला एसआई 35, हेड कांस्टेबल 121,


सिपाही 1002, महिला सिपाही 189, यातायात निरीक्षक 4, यातायात उप निरीक्षक 8, हेड कांस्टेबल यातायात 15,
कांस्टेबल यातायात 97 पीएसी, आइआरबी, फ्लड दल 12 कंपनी, एक प्लाटून, एक सेक्शन केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल


छह कंपनी, दो कंपनी एसएसबी, दो कंपनी आईटीबीपी, दो कंपनी आरएएफ हेड कांस्टेबल प्रशिक्षु रैंकर भर्ती 351
तैनात थे। कांवड़ मेला करीब 10 दिनों तक चला। इस 10 दिनों के अंदर हरिद्वार जिले में करीब 72 घटनाएं हुई,


जिसमें 10 लोगों की मौत हुई है। 109 कांवड़िये इस हादसे में घायल हुए हैं।
कांवड़ियों की भीड़ को देखते हुए इस बार हरिद्वार में पर्याप्त मात्रा में जल पुलिस को भी तैनात किया गया था,


ताकि कोई व्यक्ति गंगा में डूबे तो उसे सकुशल बचाया जा सके। इसका असर ये हुआ है कि पुलिस की मुस्तैदी के
कारण 263 लोगों को गंगा में डूबने से बचाया गया। गंगा घाटों पर तैनात बीईजी आर्मी फोर्स के जवानों ने जहां


127 लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया वहीं हरिद्वार की जल पुलिस इन दस दिनों में 136 कांवड़ियों के
लिए जीवनदायी साबित हुए।