क्या होली का त्यौहार वर्ष भर की दमित दलित कुंठाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर है? यह प्रश्न उस लघु वीडियो को देखने के बाद जन्मा जिसे एक मित्र ने मुझे भेजा था।

क्या होली का त्यौहार वर्ष भर की दमित दलित कुंठाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर है? यह प्रश्न उस लघु वीडियो को देखने के बाद जन्मा जिसे एक मित्र ने मुझे भेजा था। मित्र धीर गंभीर, बाल बच्चेदार हैं। उन्हें ओछा समझने का पाप मैं कैसे कर सकता हूं।

क्या होली का त्यौहार वर्ष भर की दमित दलित कुंठाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर है? यह प्रश्न उस लघु वीडियो को देखने के बाद जन्मा जिसे एक मित्र ने मुझे भेजा था।

क्या होली का त्यौहार वर्ष भर की दमित दलित कुंठाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर है? यह प्रश्न उस लघु वीडियो को देखने के बाद जन्मा जिसे एक मित्र ने मुझे भेजा था।

मित्र धीर गंभीर, बाल बच्चेदार हैं। उन्हें ओछा समझने का पाप मैं कैसे कर सकता हूं। परंतु वीडियो उन्होंने ही भेजा था और वह होली के बहाने दमित कुंठित भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाला था।

अकेले यही नहीं, होली पर गाए जाने वाले अश्लील गीत, होली खेलने के दौरान अपनी भाभियों और दूसरों की पत्नी,बहन और बेटियों तक से सीमा लांघ कर की जाने वाली हरकतें ओछी मानसिक प्रवृत्तियों का प्रकटन ही होती हैं। ऐसा करने वाले वर्ष भर क्या सोचते हैं?

क्या उन्हें होली की प्रतीक्षा रहती है या होली आने पर ही उनकी पाश्विकता का जन्म होता है? एक दैनिक समाचार पत्र के स्थानीय पृष्ठ पर तीन कॉलम में प्रकाशित समाचार का शीर्षक था,'शर्मनाक

: पिता के दोस्त ने बच्ची से किया डिजीटल रेप'। हालांकि इस प्रकार की घटनाओं को इस प्रकार उद्घाटित करने के अलग खतरे हैं परंतु ऐसे लोगों को क्या माना जाए। क्या डिजीटल रेप के माध्यम से यौन इच्छाओं को संतुष्ट किया जा सकता है? होली पर अश्लील

रसिया गाकर,गलत इरादे से पराई स्त्रियों को छूकर या पिता और भाई का दोस्त होकर डिजीटल रेप करने के पीछे विकृत मानसिकता के अतिरिक्त क्या है।

होली मौसम के परिवर्तन पर दैहिक ताप को संतुलित करने का त्यौहार है,इसे ताप में स्वयं को झुलसाने में क्यों बदलना चाहिए? होली के इसी संकेत को समझने की आवश्यकता है(