सरना समाज को लेकर हो रही घृणित राजनीति

भारतीय राजनीति की सेक्युलरवादी विचारधारा भारत और भारतीयता से दूरी बनाकर चलने में विश्वास रखती है। इसकी यह सोच इतनी अधिक हिंदू विरोधी है कि इसे लगभग भारत और भारतीयता से घृणा करने की राष्ट्रविरोधी मनोवृत्ति भी कहा जा सकता है।

सरना समाज को लेकर हो रही घृणित राजनीति

भारतीय राजनीति की सेक्युलरवादी विचारधारा भारत और भारतीयता से दूरी बनाकर चलने में विश्वास रखती है। इसकी यह सोच इतनी अधिक हिंदू विरोधी है कि इसे लगभग भारत और भारतीयता से घृणा करने की राष्ट्रविरोधी मनोवृत्ति भी कहा जा सकता है। इस प्रकार की सोच ने स्वाधीन भारत में जैन, बौद्ध और सिखों के साथ-साथ लिंगायत संप्रदाय को भी हिंदू समाज से अलग करने में सफलता प्राप्त की है।

जिस कार्य को मुसलमान और उनके बाद अंग्रेज नहीं कर पाए , उसे भारत की धर्मनिरपेक्षतावादी राजनीति ने करके दिखा दिया। हिंदू कोड बिल जब लाया गया था तो उसे लाने वाले नेहरू भी जैन, बौद्ध और सिक्खों को भारत के बहुसंख्यक सनातनी हिंदू समाज से अलग नहीं कर पाए थे, परन्तु अब उनके उत्तराधिकारी निरंतर हिंदू समाज को दुर्बल करने की रणनीति और राजनीति पर काम करते जा रहे हैं। जितना ही उनकी इस प्रकार की मानसिकता और मनोवृति का विरोध हो रहा है, उतना ही वह और भी अधिक मुखर होकर अपने मार्ग पर बढ़ते जा रहे हैं। हिंदू समाज को दुर्बल करने की योजना पर काम करते हुए ही इन राजनीतिक दलों ने जाति आधारित जनगणना करवाने की ठान ली है। यद्यपि मुस्लिम समाज में भी 300 से अधिक जातियां हैं, परंतु कोई भी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल मुसलमानों की जाति आधारित जनगणना करने की मांग नहीं कर रहा है।


  अब इन राजनीतिक दलों ने सरना की आड़ में आदिवासियों को तोड़ने की अपनी राजनीति को धार देना आरंभ कर दिया है । कांग्रेस इस प्रकार की राजनीति की एक बार फिर धुरी बनती जा रही है। कांग्रेस के राहुल गांधी के पास न तो कोई राजनीतिक चिंतन है और न ही ऐसा कोई सामाजिक व आर्थिक चिंतन उनके पास है, जिससे देश का भला हो सकता हो। वह एक स्वयंभू नेता हैं ।

जिन्होंने अपने आपको सबसे बड़ा विद्वान मान लिया है। वह राजनीति में आज भी ' पप्पू' हैं परन्तु अपने आप को वह सबसे बड़ा राजनीतिक मनीषी मानते हैं। जेएनयू के कुछ कम्युनिस्ट प्रोफेसर्स उनके संपर्क में रहे हैं। जो उन्हें नई-नई गिनतियां सिखाते रहते हैं और राहुल गांधी अपनी पप्पू मानसिकता का परिचय देते हुए उन गिनतियों को देश की राजनीति में गुणा भाग करने में काम लेते हैं। वह जिस प्रकार की हठधर्मिता को अपनाकर राजनीति में चल रहे हैं, उससे उनका राजनीतिक व्यक्तित्व देश के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है।


 जिस प्रकार सरना के नाम पर हिंदू समाज को तोड़ने का काम भारत की धर्मनिरपेक्ष राजनीति कर रही है, यदि उसके सामने भाजपा ने आत्म समर्पण कर दिया तो यह देश के लिए और भी अधिक घातक सिद्ध होगा । विशेष रूप से तब जबकि ' जय भीम और जय मीम ' के नाम पर देश के हरिजनों को हिंदू समाज से अलग करने की तैयारी की जा रही हो। ये लोग आज अपने आप को मूल निवासी के रूप में लिखने लगे हैं और हिंदू धर्म की सामाजिक परंपराओं के साथ-साथ उसके देवी देवताओं से भी घृणा करने लगे हैं ।

इस प्रकार भारत की धर्मनिरपेक्षतावादी राजनीति हिंदू समाज के एक बड़े वर्ग को हिंदू से ही घृणा करना सिखा रही है। 
   यदि आज सरना के सामने धरना नहीं दिया गया तो देश का बहुसंख्यक समाज कई टुकड़ों में टूट जाना निश्चित है। इसी प्रकार की सोच को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हिंदू समाज को सचेत करते हुए कहा है कि ' बंटोगे तो कटोगे।'ध्यान रहे कि चाहे जैन हो ,चाहे सिख ,बौद्ध और लिंगायत हों या फिर सरना और कथित मूल निवासी समाज के लोग हों, ये सभी मुसलमानों की दृष्टि में काफिर हैं और काफिरों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए ? इस बारे में कुरान क्या कहती है, हम सभी जानते हैं। आज इनकी सांगठनिक शक्ति को दुर्बल करके इन्हें एक-एक करके कोने में खड़ा किया जा रहा है। कल को इनके साथ वही होगा जो जे0एन0 मंडल और उनके मानने वाले लोगों के साथ स्वाधीनता की प्रभात में पाकिस्तान में हुआ था।


 बहुत लोग हैं जो हिंदूवादी संगठनों को चलाते हैं। उन सबको चाहिए कि वह हिंदू समाज को दुर्बल करने वाली इस प्रकार की सोच के विरुद्ध लामबंद हों और अपनी एकता का परिचय देते हुए हिंदू समाज के सामने खड़ी इस महाभयंकर चुनौती के लिए एकता का प्रदर्शन करें। हिंदू समाज के बारे में यह भी एक कटु सत्य है कि जिस प्रकार यह स्वाधीनता से पूर्व सैकड़ो रियासतों में बंटकर विभिन्न राजनीतिक परिवारों की निजी महत्वाकांक्षी सोच का शिकार बना हुआ था, उसी प्रकार आज अनेक हिंदूवादी संगठनों का होना इसी बात का परिचायक है कि देश के बहुसंख्यक समाज ने इतिहास से कोई शिक्षा नहीं ली है । अधिकांश हिंदूवादी संगठन अपने नेताओं की महत्वाकांक्षी सोच के शिकार हैं । क्योंकि उनका यथार्थ के धरातल पर कोई ठोस और सकारात्मक कार्य होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। 


   जो लोग झारखंड मुक्ति मोर्चा के द्वारा झारखंड विधानसभा में आदिवासियों के लिए सरना के मुद्दे को उछाल कर राजनीति को दूषित प्रदूषित करने का काम कर रहे हैं, उनकी इस प्रकार की राजनीति को सफल करने के लिए सभी हिंदूवादी संगठन और राजनीतिक दल एक साथ एक मंच पर आकर काम करना आरंभ करें। जिसमें किसी भी प्रकार की राजनीति नहीं होनी चाहिए। ये सभी राजनीतिक दल केवल और केवल एक ही एजेंडा पर काम करने के लिए अपनी इच्छा शक्ति प्रकट करें कि हम सरना को तो अलग होने ही नहीं देंगे, जैन, सिख और बौद्धों को भी अपने साथ लाने का काम करेंगे। इस विषय में बहुत बड़ी क्रांति करने की आवश्यकता है।

फूट डालो और राज् करो - की जिस परंपरा पर अंग्रेजों ने भारत में काम किया, हमारी सामूहिक एकता के समक्ष यदि वह अपनी उस घृणित राजनीति में पूर्णतया सफल नहीं हो पाए तो हमें अपने काले अंग्रेजों को भी इस प्रकार की घृणित राजनीति में सफल नहीं होने देना है। राहुल गांधी, केजरीवाल और उनकी इसी प्रकार की चांडाल चौकड़ी देश में मोहम्मद अली जिन्ना का काम कर रही है। देश को लेकर इनकी भूमिका में दुष्टता प्रवेश कर चुकी है।

यदि अभी भी हम नहीं चेते तो 2047 से पहले देश के साथ-साथ हिंदू समाज को भी कई टुकड़ों में विभाजित हुआ देखेंगे ?