शारदीय नवरात्र: सातवें दिन माता कालरात्रि के दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी

शारदीय नवरात्र में धर्म नगरी काशी में मिनी बंगाल का नजाराहै। नगर के पूजा पंडालों में स्थापित मां दुर्गा का दर्शन करने श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचने लगे हैं।

शारदीय नवरात्र: सातवें दिन माता कालरात्रि के दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी

शारदीय नवरात्र: सातवें दिन माता कालरात्रि के दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी

वाराणसी, शारदीय नवरात्र में धर्म नगरी काशी में मिनी बंगाल का नजाराहै। नगर के पूजा पंडालों में स्थापित मां दुर्गा का दर्शन करने श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचने लगे हैं।पूजा पंडालों में शाम ढ़लते ही लोग परिवार के साथ पहुंच कर माता रानी के दिव्य प्रतिमा का दर्शनकर रहे है। परम्परानुसार शारदीय नवरात्र के सातवें दिन श्रद्धालुओं ने शक्ति स्वरूपा मां कालरात्रि के
दरबार में हाजिरी लगाई।श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पास कालिका गली में स्थित मां कालरात्रि के दरबार में भोर में ही
श्रद्धालुओं की कतारें लग गईं थीं।

दरबार में दर्शन-पूजन का क्रम दिनभर जारी रहा। इस दौरान मांकालरात्रि के दरबार में सांचे दरबार का जयकारा लगता रहा। मंदिर परिसर में देवी की स्तुति भी लोगकरते रहे। माला-फूल, धूप-बत्ती और लोहबान की गंध से दरबार गमकता रहा। श्रद्धालुओं ने माता केदरबार में माला, गुड़हल के पुष्प, चुनरी, नारियल, फल, मिष्ठान, सिंदूर, रोली, इत्र और द्रव्य अर्पितकर घर परिवार में सुख शान्ति की अर्जी लगाई। काशी में मान्यता है कि मां काली के दरबार मेंदर्शन पूजन करने वाले भक्तों की अकाल मौत नहीं होती है, इसके अलावा परिवार में सुख समृद्धिभी मिलती है।मान्यता है कि आदिशक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। माता कालरात्रि कास्वरूप बहुत ही विकराल और रौद्र है।

पुराणों के अनुसार माता के इस स्वरूप को चंड-मुंड औररक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए उत्पन्न किया गया था। देवी को कालरात्रि औरकाली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है। चंड-मुंड के संहार की वजह से मां के इस रूप
को चामुंडा भी कहा जाता है। विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर है। अंधेरे की तरह काला रंग,बाल खुले हुए गले में मुंडों की माला एक हाथ में खून से भरा हुआ पात्र, दूसरे में राक्षस का कटासिर, हाथ में अस्त्र-शस्त्र।मान्यता है कि मां कालरात्रि का दर्शन करने मात्र से समस्त भय, डर और बाधाओं का नाश होता है।माता का वाहन गर्दभ है। काशी में सातवें दिन ही दक्षिणेश्वरी काली मंदिर (भोजूबीर पंचक्रोशीपरिक्रमा मार्ग) में भी दर्शन पूजन के लिए भीड़ उमड़ती रही।

मां के इस रूप के साथ चौसट्ठी देवी,मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित मां अन्नपूर्णा मंदिर, संकठा मंदिर,माता कालरात्रि देवी मंदिर, तारा मंदिर, सिद्धेश्वरी मंदिर और कमच्छा स्थित कामाख्या मंदिर में भीपूजन अर्चन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पूरे दिन उमड़ती रही।