भैंस जो ठहरी
अगले चौराहे पर उसे रुकना पड़ा क्योंकि वहां पहले से वाहन खड़े होने से लालबत्ती की अवमानना करने का अवसर नहीं था। स्कॉर्पियो में बैठा चालक मस्त दिख रहा था।
_-राजेश बैरागी-_
नजारा खूबसूरत था। ग्रेटर नोएडा के पश्चिमी हिस्से में एक सौ तीस मीटर सड़क पर एक भैंस मस्ती में घूम रही थी बिल्कुल नंग धड़ंग, जैसी पैदा हुई वैसे ही।
धूप में काली भी पड़ गई थी।उसे किसी यातायात नियम की परवाह नहीं थी,जिधर मुंह उठता उधर को चल पड़ती।यह सड़क नोएडा जाती है।गिझोड़ गांव के तिराहे पर लालबत्ती ने दौड़ते पांव रोक दिए। बत्ती के ऊपर उल्टी गिनती चालू थी।
कोई सात सेकेंड शेष थे। एक स्कॉर्पियो आई। उसपर सत्ताधारी पार्टी की पताका फहरा रही थी। उसमें केवल एक व्यक्ति सवार था।उसे कोई आकस्मिक काम रहा हो, ऐसा अनुभव नहीं हुआ परंतु उसने सात सेकेंड बीतने की प्रतीक्षा नहीं की और लालबत्ती पार कर दी।
अगले चौराहे पर उसे रुकना पड़ा क्योंकि वहां पहले से वाहन खड़े होने से लालबत्ती की अवमानना करने का अवसर नहीं था। स्कॉर्पियो में बैठा चालक मस्त दिख रहा था।
मुझे ग्रेटर नोएडा के पश्चिमी हिस्से में एक सौ तीस मीटर सड़क पर धूप में काली पड़ गई नंग धड़ंग भैंस का स्मरण हो आया।उसे यातायात के नियमों का ज्ञान नहीं था।
वह मुंह उठाकर चल रही थी।उसे साधने के लिए डंडे की आवश्यकता थी।जब चिलचिलाती धूप सिर पर हो तो दंडाधिकारी भी छांव तलाश लेते हैं।(साभार नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)