पानी को पानी की तरह बहाना भारी पड़ जाएगा
विश्व संसाधन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे 17 देशों में से एक है।
टॉकिंग पॉइंट्स
नरविजय यादव
भारत में भूजल में खतरनाक दर से गिरावट आ रही है, जिसके एक दशक से भी कम समय में दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन से आगे निकलने की उम्मीद है। भारत की एक तिहाई से अधिक आबादी जल-दबाव वाले क्षेत्रों में रहती है और यह संख्या घटते भूजल और बढ़ते शहरीकरण के कारण बढ़ना तय है।
विश्व संसाधन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे 17 देशों में से एक है। पिछले कुछ दशकों में भारत में पानी का संकट बढ़ गया है क्योंकि धान और गन्ने जैसी पानी की खपत वाली फसलों के लिए अधिक से अधिक भूजल निकालने के लिए बोरवेल खोदे गए थे।
आदर्श रूप से, सतही जल को मानसून के मौसम में तालाबों में एकत्रित किया जाना चाहिए और भूजल के बजाय पूरे वर्ष इस संग्रहित जल का उपयोग किया जाना चाहिए। सेंट्रल ग्राउंडवाटर बोर्ड द्वारा चैक किए गए देश के 60 प्रतिशत से अधिक कुओं के जल स्तर में पिछले एक दशक में गिरावट दर्ज की गई।
कृषि कार्यों के लिए भूजल का अंधाधुंध इस्तेमाल करने के कारण पंजाब भूजल की कमी से जूझ रहा है और राज्य का 80 प्रतिशत क्षेत्र रेड ज़ोन में आ चुका है। ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी और पंजाब एनर्जी डवलपमेंट एजेंसी द्वारा कराई गई वर्कशॉप में एक विशेषज्ञ ने जानकारी दी कि पंजाब में बिजली से चलने वाले 16 लाख ट्यूबवेल जमीन के नीचे से लगातार पानी खींचते रहते हैं, जिससे ग्राउंडवाटर लेवल चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुका है।
हालत यह है कि भूजल स्तर हर साल एक मीटर नीचे जा रहा है। जल स्तर में कमी का अध्ययन करने के लिए गठित पंजाब विधानसभा समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यदि भूमिजल को खींचने का मौजूदा ट्रेंड जारी रहा तो राज्य अगले 25 वर्षों में रेगिस्तान में बदल जाएगा। सरल शब्दों में कहा जाए तो हम जितना पानी जमीन में वापस भर रहे हैं उससे कहीं अधिक पानी अपने इस्तेमाल के लिए खींच रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप जल स्तर नीचे जा रहा है। इससे पंजाब के मरुस्थलीकरण का खतरा पैदा हो गया है।
पंजाब में जल निकासी की दर पुनःपूर्ति की दर के मुकाबले 1.66 गुना अधिक है। पंजाब में 1966-67 में हरित क्रांति के समय धान की खेती को बढ़ावा मिला, जिसमें पानी की खपत बहुत अधिक होती है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि पानी का उपयोग करने वाले किसानों, शहरी निकायों और औद्योगिक इकाइयों के लोगों को पानी और बिजली बचाने के उपायों के बारे में जागरूक किया जाए और उन्हें भूजल के गिरते स्तर से होने वाले खतरों के प्रति आगाह किया जाए।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नयी रिपोर्ट में पृथ्वी पर मंडराते जल संकट पर चेतावनी जारी की है। रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा, बाढ़ और पेयजल संबंधी संकटों में बढ़ोतरी हो रही है। दि स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विस 2021 नामक इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में लगभग 3.5 अरब आबादी के पास साल में ग्यारह माह के लिए पानी उपलब्ध था। ऐसी आशंका जतायी जा रही है कि यदि एहतियाती कदम नहीं उठाये गये तो वर्ष 2050 तक पानी का संकट झेलने वाले लोगों की संख्या 5 अरब हो सकती है।
नरविजय यादव वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं।
ईमेल: narvijayindia@gmail.com