25 अप्रैल विशेष : आज ही के दिन रंगीन हुआ था राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन
25 अप्रैल विशेष : आज ही के दिन रंगीन हुआ था राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन
दूरदर्शन से आज सभी लोग परिचित हैं। दूरदर्शन दो शब्दों से मिलकर बना है- दूर एवं दर्शन। नाम से ही स्पष्ट है दूर की चीजों को दृश्य करना दूरदर्शन है। दूरदर्शन को अंग्रेजी में टेलीविजन कहा जाता है जो लैटिन तथा यूनानी शब्दों से मिलकर बना है। यूनानी शब्द 'टेले' एवं लैटिन शब्द विजीओ। टेले का अर्थ दूर एवं विजीओ का अर्थ दृष्टि है। दूरदर्शन का मुख्यालय नई दिल्ली में हैं। यह भारत का आधिकारिक चैनल है एवं प्रसार भारती के दो प्रभागों में से एक है। इसे शॉर्ट फार्म में 'डी.डी' कहते है जो देश के सबसे बड़ा प्रसारण प्लेटफॉर्म है।
दूरदर्शन जब ऑल इंडिया रेडियों से अलग हुआ उस समय उसे अपने एक अलग 'लोगो' की भी जरूरत थी। जो 'लोगो' आज हम चैनल पर देखते है उसका डिजाइन एन. आइ. डी के पूर्व छात्र देवाशीष भट्टाचार्य ने अपने आठ मित्रों के साथ मिलकर किया था। कुछ मीडिया जानकारीयों के अनुसार भट्टाचार्य ने सर्वप्रथम एक चित्र बनाया जो इंसान के आँख के आकार का था। उन्होने इस आँख के दोनो तरफ दो घुमावदार कर्व बनाये। यिन और यांग के आकार बनाये और बीच मे बने आँख वाले स्केच को देवाशीष भट्टाचार्य नेअपने शिक्षक विकास सातवलेकर को सौप दिया।
एन.आइ.डी के आठ छात्रों और छः फैकल्टी मेंबर्स के चौदह डिजाइन में से तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा भट्टाचार्य के डिजाइन को चुना गया। इसे चुनने के बाद एनिमेशन एन.आई. डी के ही एक अन्य छात्र आर.एल. मिस्त्री ने डिजाइन के लिए तैयार किया। उन्होने इस स्केच को कैमरे से शूट करते हुए बार-बार घुमाया और तब तक नहीं रूके जब तक वह स्केच 'लोगो' का अन्तिम रूप न ले लिया। इसी आँख को को डी.डी.आई के नाम से जाना गया।
दूरदर्शन के इस लोगो में "सत्यम शिवम सुन्दरम" शब्द देखने को मिलता है जिसका अर्थ बहुत ही व्यापक है। परंतु साधारणतया सत्य का अर्थ ईश्वर से, शिवम का अर्थ भगवान शिव से एवं सुन्दरम का अर्थ कला आदि सुन्दरता से संबंधित है।
जब हम दूरदर्शन के लोगो से संबंधित जानकारी जान गये तो इस लोगो के साथ सुनायी देने वाले धुन के तरफ ध्यान जाना लाज़मी है। यह धुन जो हम सुनते हैं उसे पंडित रविशंकर एवं उस्ताद अली अहमद हुसैन खान ने मिलकर बनाया। पंडित रविशंकर प्रख्यात सितार वादक व संगीतज्ञ थे। उन्हें भारत-रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण और कई अन्य अवार्ड प्राप्त हो चुके है। अली अहमद हुसैन खान शहनाई वादक थे। उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से नवाज़ा जा चुका है। उन्होने सन 1973 में दूरदर्शन के उद्घाटन कार्यक्रम में भी शहनाई बजायी थी। दूरदर्शन पर लोगो के साथ पहली बार बजने वाला धुन 1 अप्रैल 1976 को सुनी गयी थी।
आज जिस दूरदर्शन पर हम 24 घण्टे प्रसारण देखते हैं वह कभी सिर्फ आधे घण्टे से प्रारंभ हुआ था। इस आधे घंटे का प्रसारण भी सप्ताह में केवल तीन दिन होता था।
दूरदर्शन की शुरुआत 15 सितम्बर 1959 को हुआ था। उस समय इसका नाम "टेलीविजन इंडिया" हुआ करता था। आधे घंटे के प्रसारण में विकास एवं शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम दिखाये जाते थे। यह मात्र एक परीक्षण कार्यक्रम था।
वर्ष 1965 में रोजाना प्रसारण प्रारम्भ किया गया। इसी वर्ष 5 मिनट का न्यूज़ बुलेटिन भी प्रारम्भ किया गया। तब टीवी सेट ब्लैक एंड व्हाइट अर्थात सादा हुआ करते थे। टी.वी उस समय घनी लोगों के लिए ही सामान्य बात हुआ करती थी परन्तु सामान्य आदमी के लिए यह कठीन था। यह बात जरूर थी कि टी.वी के बारे में सुनकर सभी के मन में देखने की जीज्ञासा थी। कार्यक्रम का प्रसारण देखने के लिए एक टीवी सेट के सामने अनेक लोग खड़े हो जाते थे।
विकास की यात्रा आगे बढी और दिल्ली के बाद यह 1972 में मुंबई पहुँची। 1975 में यह चेन्नई और कोलकात्ता भी पहुंची। चारों महानगरों में अब दूरदर्शन की प्रसारण शुरू हो गया। वर्ष 1975 वो दौर था जब "टेलीवीजन इंडिया" का नाम बादल गया और इसका हिन्दी नामकरण "दूरदर्शन" हो गया। 1980 तक इसे देश के अन्य शहरों तक पहुंचाने की कोशिश हुई। 1975 तक सिर्फ यह देश के सात शहरों तक ही सीमित था।
1982 में ही टीवी सेट रंगीन आने लगे। 25 अप्रैल 1982 वो दिन था जब दूरदर्शन रंगीन हो गया था। उस समय दूरदर्शन का सादे से रंगीन होना इतनी बड़ी उपलब्धि थी कि कलर टीवी स्टेटस सिंबल बन गया। मांग इतनी बढ़ी की सरकार को विदेशों से इम्पोर्ट करना पड़ा। यही दौर था जब दूरदर्शन देश के अन्य हिस्सों में विस्तारीत किया गया। एशियाई खेलों के प्रसारण के बाद दूरदर्शन के क्षेत्र में नयी क्रान्ति आ गयी।
7 जुलाई 1984 को दूरदर्शन पर पहला सीरीयल या यूं कहें भारतिय इतिहास का पहला सीरियल प्रसारित किया गया। जिसका नाम 'हम लोग' है। यह सिरीयल मध्यमवर्गीय परीवार की थी जोकि रोजाना आनेवाले समस्या का सामना करती है। लोगों ने इसके साथ खुद को खूब जोड़ा। इसके 156 एपीसोड थे। यह 17 नवम्बर 1985 तक टी.वी पर दिखाया गया था। यह वहीं समय था जब टीवी सेट की दुकानें बड़े-बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे शहरों तक खुलने लगी थी। कृषि दर्शन प्रोग्राम दूरदर्शन का सबसे लम्बा चलने वाला प्रोग्राम रहा है। यह 26 जनवरी 1967 को शुरू किया गया था। इसका लक्ष्य किसानों तक कृषि सम्बन्धी सारी जानकारी पहुँचानी थी। इसके बाद सीरियल 'बुनियाद' प्रसारित किया गया जो 1947 में हुए भारत-पाक बँटवारे के इर्द-गिर्द था।
वर्ष 1986 वह दौर था जब टी. वी पर रामायण का प्रसारण किया गया। यह रामायण रामानन्द सागर कृत था। इस रामायण धारावाहिक ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। रविवार के दिन इसका प्रसारण होता था। देश भर के सड़कों पर कार्यक्रम के दौरान सन्नाटा पसर जाता था मानो जैसे कर्फ्यू लगा हो। बी.आर.चोपड़ा कृत महाभारत का प्रसारण भी ऐसा ही रहा। दोनों प्रसारण को लोगों का बहुत स्नेह मिला। कार्यक्रम से पूर्व लोग स्नान कर के ही रामायण-महाभारत देखते थे। कार्यक्रम के दौरान लोग घरों के साफ-सुथरा कर अगरबत्ती-दीपक जलाते थे। कार्यक्रम समाप्त होने पर प्रसाद बाँटे जाते थे। उस समय कही किसी घर में एक-दो टी.वी सेट देखने को मिलते थे। जिस घर में टी.वी होती थी कार्यक्रम दिखाने की व्यवस्था होती थी। सैकड़ो लोग एक साथ बैठकर या यूं कहें पूरे मुहल्ले के लोग एक साथ बैठकर धारावाहिक देखते थे। कार्यक्रम के समय बीजली भी गुल नहीं होती थी।
इन धारावाहिक के अलावा चित्रहार, मालगुडी डेज, श्रीकृष्णा, अलिफलैला, विक्रम वैताल, फौजी, तमस, शक्तिमान, आदि प्रचलित रहे। आज दूरदर्शन के लगभग दो दर्जन चैनल है। जिसमें 24 घण्टे का एक समाचार चैनल भी शामिल है जो 2003 में शुरु हुआ।
दूरदर्शन ने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जनमानस में शिक्षा, खेती, खेलकूद, आध्यात्मिक, स्वास्थ्य के क्षेत्र में लोगों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करने के साथ बदलते सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश को समाहित करने का एहसास भी कराया।
दूरदर्शन का इतिहास वास्तव में बेहद रोचक व दिलचस्प है। दूरदर्शन ने कंटेंट के साथ-साथ तकनीकी दक्षता भी हासिल की है। इसके द्वारा आज भी लोगो के जागरूकता से सम्बन्धित कई कार्यक्रम,न्यूज आदि प्रसारित किया जाता है।
✍️ राजीव नन्दन मिश्र
सरना, शाहपुर, भोजपुर
( बिहार )