बंगाल का ‘खूनी खेला’

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के रामपुरहाट इलाके में 10 इनसानों को जि़ंदा जलाकर मार दिया गया। उनमें 8 लोग एक ही परिवार के थे।

बंगाल का ‘खूनी खेला’

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के रामपुरहाट इलाके में 10 इनसानों को जि़ंदा जलाकर मार दिया गया। उनमें 8
लोग एक ही परिवार के थे।

दो मासूम बच्चों को भी आग में धकेल कर मार दिया गया। घर फूंक दिए गए।
कितना नृशंस, बर्बर, राक्षसी नरसंहार था! हैवानियत और पाशविकता ने तमाम हदें पार कर दीं। यह सामान्य
कानून-व्यवस्था का मामला नहीं है। यह राजनीतिक हिंसा और हत्याओं की भी घटना नहीं है। यह आपसी रंजिश
का एक अध्याय रहा होगा, लेकिन क्या उसकी परिणति और पराकाष्ठा भी ‘नरसंहार’ है? मुख्यमंत्री ममता बनर्जी
के पश्चिम बंगाल में ‘खून का खेल’ कब तक जारी रहेगा? हम तो मई, 2021 में नए जनादेश के बाद से हत्याओं
के सिलसिले देखते-सुनते रहे हैं। हम मानते हैं कि राजनीतिक टकराव और हिंसा का इतिहास बंगाल में रहा है।
वाममोर्चा सरकार के दौरान ऐसी ही हत्याएं की जाती थीं। खुद ममता वाममोर्चा की बर्बर हिंसा की शिकार हुई थीं
और मरते-मरते बची थीं। 2011 में उन्हें सत्ता हासिल हुई, तो समझा गया कि हिंसा और हत्याओं का दौर समाप्त
होगा। खूनी दानवी संस्कृति का अध्याय खत्म होगा। ममता से इनसानी अपेक्षाएं थीं, क्योंकि वह खुद भुक्तभोगी
थीं, लेकिन विडंबना है कि ममता ने भी वाममोर्चा सरकार की रक्तरंजित राजनीति को स्वीकार और अंगीकार
किया। आज का यथार्थ यह है कि पंचायत चुनावों, आम जन-जीवन से लेकर कारोबारी टकराव और पैसा वसूली की
होड़ तक ‘खून की होलियां’ खेली जा रही हैं।

यह सिर्फ बीरभूम के नरसंहार का ही मामला नहीं है, बल्कि बीते 10
दिनों में बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में राजनीतिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं,

जिनमें सियासी चेहरों की हत्याएं भी
की गई हैं।

ममता और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के टीवी चैनलिया प्रवक्ता उन हत्याकांडों की बात ही नहीं कर
रहे हैं। वाममोर्चा ने खूनी वर्चस्व के आधार पर अपना जनाधार बनाया और 34 लंबे सालों तक बंगाल पर राज
किया।

अब ममता तृणमूल का भी वही राजनीतिक दबदबा स्थापित करने पर आमादा हैं, ताकि उनकी निरंतरता को
कोई चुनौती न दे सके। हम हैरान हैं कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और संवैधानिक देश के एक संघीय राज्य में ऐसी
अराजकता, खून-खराबा, गुंडई, माफियागीरी आदि की गुंज़ाइश कैसे हो सकती है?

राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने कहा
है कि राज्य जंगलराज के हवाले कर दिया गया है। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी
का कथन है कि बंगाल में दानवों की सरकार चल रही है।


इन बयानों पर ममता ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, उन्हें संविधान का मज़ाक करार दिया जा सकता है।
ममता को संवैधानिक गरिमा का कोई सम्मान नहीं। वह तो देश के प्रधानमंत्री के चेहरे पर थप्पड़ मारने का बयान
दे चुकी हैं। क्या स्वामी विवेकानंद,

अरविंद घोष, रवींद्र नाथ टैगोर, बंकिम चंद्र से लेकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
तक के बंगाल की मानवीय संस्कृति और सहिष्णुता अब समाप्त हो चुकी है?

क्या आज के बंगाल में पुलिस,
अपराधी, राजनेता की एक नापाक सांठगांठ का ही वर्चस्व है, जिसे ममता सरकार का संरक्षण हासिल है? जिस
जगह यह नरसंहार हुआ था, उससे मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर पुलिस थाना है,

लेकिन घर जला दिए गए,
इनसान जि़ंदा फूंक दिए गए, लेकिन पुलिस की संवेदना नहीं जागी कि हत्याकांड रुकवाया जाए।

बेशक बीरभूम
तस्करी के लिए कुख्यात इलाका है। घटनास्थल की कहानी बताई जाती है कि वहां अवैध कोयला, बालू का व्यापक
धंधा किया जाता है। उसकी