सभी को आय का दस प्रतिशत हिस्सा जरूर बचाना चाहिए
इमर्जेंसी फंड जरूरी है। एक ताजा सर्वेक्षण में 32 प्रतिशत युवाओं ने पैसे बचाने में दिलचस्पी दिखायी। भारत की युवा पीढ़ी को बैंक में पैसा रखने में दिलचस्पी है। कोविड के बाद अर्थव्यवस्था भले ही पटरी पर लौटने लगी हो, लेकिन बेरोजगारी और महंगाई के भूत अभी नहीं गये हैं।

टॉकिंग पॉइंट्स
नरविजय यादव
कोरोना महामारी ने बहुत नुकसान किये। न जाने कितने लोग बेरोजगार हो गये और न जाने कितनों की जान चली गयी। इस महासंकट ने भारत के 25 साल तक के युवाओं के मन पर गहरा असर डाला। पहले वे सपनों की दुनिया में रहते थे। उन्हें लगता था दुनिया रिमोट और मोबाइल से चलती है। परिश्रम, धैर्य और प्रतीक्षा जैसे शब्द तो उनके शब्दकोश में थे ही नहीं।
गाड़ी चाहिए तो बड़ी, रफ्तार चाहिए तो तूफानी, और चीजें चाहिए तो सबसे महंगी। परंतु महामारी ने इनके सपनों को हिला कर रख दिया। युवाओं को समझ आ गया कि दुनिया में सब कुछ अस्थायी है। कभी भी, कुछ भी अनिष्ट हो सकता है। जॉब छिन सकता है, जान जा सकती है। सपने ध्वस्त हो सकते हैं। सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो सकता है। किसी के साथ भी, कभी भी। यही कारण है कि युवाओं में अब पैसा खर्च करने की बजाय पैसा बचाने की समझ आने लगी है। यह एक अच्छा संकेत है।
इमर्जेंसी फंड जरूरी है। एक ताजा सर्वेक्षण में 32 प्रतिशत युवाओं ने पैसे बचाने में दिलचस्पी दिखायी। भारत की युवा पीढ़ी को बैंक में पैसा रखने में दिलचस्पी है। कोविड के बाद अर्थव्यवस्था भले ही पटरी पर लौटने लगी हो, लेकिन बेरोजगारी और महंगाई के भूत अभी नहीं गये हैं। शायद इसी वजह से नयी जेनेरेशन भविष्य के लिए पैसे जोड़ने में यकीन रखती है। हर किसी को एक इमर्जेंसी फंड अवश्य बनाना चाहिए।है।
एक ऐसी धनराशि जिसका उपयोग आपातकालीन स्थितियों में किया जा सके। इनमें बीमारी, बेरोजगारी और अचानक से आ जाने वाले संकट शामिल हैं। मासिक आय का कम से कम छह गुना राशि इस फंड में अवश्य रहनी चाहिए। यानी नौकरी चली जाये या धंधा ठप हो जाये, तो भी छह महीने तक घर चलता रहे। इतने समय में व्यक्ति को संभलने का अवसर मिल सकता है। हर किसी को अपनी मासिक आय का कम से कम दस प्रतिशत हिस्सा जरूर बचाना चाहिए। जब भी कहीं से कोई कमाई हो, तो उसका दसवां हिस्सा पहले ही अलग कर लीजिए। यकीन मानिए, आपका खर्च बाकी बची 90 प्रतिशत रकम से भी चल जायेगा।
धन कमाने से भी जरूरी है, वित्त प्रबंधन की समझ। अधिकांश लोगों में नौकरी लगते ही घर, बड़ी गाड़ी, शानदार साजो-सामान जुटाने की होड़ लगी रहती है। लोन लेकर वे फटाफट सब कुछ खरीद डालते हैं और फिर कर्ज चुकाने के लिए दिन-रात एक किये रहते हैं।
लोन की किस्तें कहां से भरेंगे, यह चिंता उन्हें न ठीक से सोने देती है और न सुकून से बैठने देती है। यह एक गलत प्रवृत्ति है। बड़े बुजुर्ग कहते हैं पहले कमाओ, बचाओ, निवेश करो, फिर खर्च करो। लेकिन समाज में इसका उलट दिखायी देता है। यहां तो सोच यह रही है कि पहले खरीद लाओ, फिर चुकाते रहो।
ऐसे में यदि नौकरी छूट गयी या कोई अनहोनी हो गयी तो ऐसे लोग भारी परेशानी में फंस जाते हैं। इसीलिए वित्तीय साक्षरता जीवन में सफलता के लिए पहली शर्त है। हालांकि, यह एक ऐसा पहलू है जो पूरी तरह से अनदेखा किया जाता है। स्कूल, कॉलेज और घरों में धन कमाने की तो बात होती है, लेकिन धन को सही प्रकार से बचाया और बढ़ाया कैसे जाये, इस पर बात नहीं होती है।
नरविजय यादव वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं।
ईमेल: narvijayindia@gmail.com