तर्पण में काले तिल के प्रयोग से दूर होती हैं नकारात्मक शक्ति : गौरव शास्त्री

अलीगढ। श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं।

तर्पण में काले तिल के प्रयोग से दूर होती हैं नकारात्मक शक्ति : गौरव शास्त्री

तर्पण में काले तिल के प्रयोग से दूर होती हैं नकारात्मक शक्ति : गौरव शास्त्री 

श्राद्ध का अर्थ पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव से है। जो मनुष्य उनके प्रति उनकी तिथि पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलफूल, अन्न, मिष्ठान आदि से ब्राह्मण को भोजन कराते हैं। उस पर प्रसन्न होकर पितृ उसे आशीर्वाद देकर जाते हैं। श्राद्धपक्ष के तहत बुधवार को नवमी तिथि का श्राद्ध संपन्न किया गया।

पितृ पक्ष में तर्पण से जुडी जानकारी के साथ विभिन्न सामग्री का क्या महत्त्व है इसको लेकर वैदिक ज्योतिष संस्थान के स्वामी पूर्णानंद पुरी जी महाराज के शिष्य आचार्य गौरव शास्त्री ने बताया कि पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध दो तिथियों पर किए जाते हैं, प्रथम मृत्यु या क्षय तिथि पर और द्वितीय पितृ पक्ष जिस तिथि को उसका दाह संस्कार हुआ है। वर्ष में उस तिथि को एकोदिष्ट श्राद्ध में केवल एक पितर की संतुष्टि के लिए श्राद्ध किया जाता है।

इसमें एक पिंड का दान और एक ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है। पितृपक्ष में जिस तिथि को पितर की मृत्यु तिथि आती है, उस दिन पार्वण श्राद्ध किया जाता है। पार्वण श्राद्ध में 9 ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है, किंतु शास्त्र किसी सात्विक एवं संध्यावंदन करने वाले योग्य ब्राह्मण को ही श्राद्ध तर्पण के भोजन की अनुमति देते हैं।उन्होंने कहा कि दर्भ या कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना जाता है। यह भी मान्यता है कि कुश और तिल दोंनों विष्णु के शरीर से निकले हैं।

मान्यता है कि काले तिल दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाले माने जाते हैं। मान्यता है कि बिना तिल के तर्पण करने से दुष्टात्मायें हवि को ग्रहण कर लेती हैं।