अदालत का कारनामा और पशु प्रेमिका
अदालत का कारनामा और पशु प्रेमिका
हिंदी दिवस पर विशेष:
_-राजेश बैरागी-_
उत्तर प्रदेश के जनपद गौतमबुद्धनगर में पशुओं की हिमायती के तौर पर चर्चित कावेरी राणा पशु प्रेमी हैं या पशु प्रेमिका? एक राष्ट्रीय समाचार पत्र (अमर उजाला) के स्थानीय पृष्ठ पर प्रकाशित एक समाचार में उन्हें पशु प्रेमिका लिखा गया है। यह ऐसा ही है जैसे किसी राष्ट्र प्रमुख महिला को राष्ट्रपत्नी कहा जाए।
ऐसा लिखने के पीछे कई कारण उत्तरदाई हो सकते हैं। सबसे पहला कारण लिपिकीय त्रुटि हो सकता है। हालांकि ऐसा होने की संभावना कम है क्योंकि प्रेमी लिखते समय लिपिकीय त्रुटि से पेमी जैसा तो कुछ लिखा जा सकता है परंतु प्रेमिका नहीं।दूसरा और महत्वपूर्ण कारण यह हो सकता है कि समाचार लेखक/पत्रकार को लिखते समय लगा हो कि एक महिला प्रेमी कैसे हो सकती है। वह प्रेमिका ही हो सकती है।
प्रेमिका शब्द स्त्री पुरुष संबंधों में स्त्री के लिए उपयोग किया जाता है। प्रेमी एक सर्वव्यापी शब्द है जो किसी अन्य योनि के प्राणियों से भी प्रेम करने के लिए स्त्री पुरुष के लिए समान रूप से उपयोग किया जाता है।पशु प्रेमिका शब्द से ऐसा आभास होता है कि संबंधित महिला का उस पशु के प्रति दया करुणा का नहीं बल्कि कोई और रिश्ता है जिसे समाज में सामान्य तौर पर स्त्री पुरुष संबंधों के लिए उपयोग किया जाता है।
दरअसल समाचार पत्रों और मीडिया के अन्य माध्यमों से समाचार विचारों के प्रसारण के साथ साथ यह अपेक्षा भी की जाती है कि उनके द्वारा हिंदी और अन्य भाषाओं का परिमार्जन तथा प्रचार प्रसार भी किया जाएगा। परंतु हिंदी समाचार पत्रों तथा हिंदी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में निरंतर हिंदी भाषा के प्रति गहरी उपेक्षा देखने को मिल रही है।
नवभारत टाइम्स और इंडिया टीवी जैसे मीडिया संस्थान हिंदी में बलपूर्वक अंग्रेजी के शब्दों को घुसाने में लगे हैं।हो सकता है कि इन मीडिया संस्थानों के कर्ता-धर्ता हिंदी को लेकर गहरी आत्मग्लानि से पीड़ित हों और अंग्रेजी शब्दों के उपयोग से उन्हें स्वयं को पढ़ा लिखा होने का भ्रम होता हो। अन्य हिन्दी समाचार माध्यमों में अंग्रेजी शब्दों का अधिक या जबरन उपयोग तो नहीं होता है परंतु वर्तनी की शुद्धता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
दो दिन से चल रहे एक अन्य समाचार को लेकर भी पत्रकारिता में सतही समझ की समस्या दिखाई पड़ रही है। शामली जिले के एक न्यायालय ने तेरह वर्ष पूर्व स्वर्गीय हो चुके किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत को सत्रह वर्ष पूर्व के एक मामले में गैर जमानती वारंट जारी कर पेश करने का आदेश दिया।
न्यायालय की यह कार्रवाई सामान्य कामकाज की श्रेणी की है। किसी भी अभियोग में वांछित अभियुक्त के पेश न होने पर उसके विरुद्ध इस प्रकार का आदेश जारी किया जाता है। न्यायालय को जब तक वांछित अभियुक्त की मृत्यु होने की प्रमाणित सूचना नहीं दी जाएगी, न्यायालय उसे पेश करने का आदेश देता रहेगा।
दिलचस्प बात यह है कि पुलिस इस वारंट आदेश को लेकर स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत को गिरफ्तार करने पहुंच गई। जग सूचित ऐसी घटना से अनभिज्ञ पुलिस किस प्रकार अपराधियों तक पहुंच पाती होगी, यह चिंतन का विषय है।दायित्व के प्रति घोर उपेक्षा के कारण ही न्यायालयों में हजारों हजार वाद बिना कारण लंबित हैं।
कई समाचारों में इस घटना को ऐसे प्रस्तुत किया गया जैसे यह न्यायालय की मूर्खता हो। समाचार समाज पर सीधा प्रभाव डालते हैं।उनका स्पष्ट, उचित तथ्यों और औचित्य पूर्ण प्रस्तुति के साथ आम बोलचाल की परिमार्जित भाषा में होना भी एक महत्वपूर्ण शर्त है।
(नेक दृष्टि)