दिल्ली में किसका होगा बोलबाला कोन हासिल करेगा जीत

नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में बदले समीकरण में इस बार एक तरफ भाजपा और दूसरी तरफ आप-कांग्रेस गठबंधन का प्रत्याशी है।

दिल्ली में किसका होगा बोलबाला कोन हासिल करेगा जीत

आप-कांग्रेस गठबंधन

New delhi  राजधानी दिल्ली में बदले समीकरण में इस बार एक तरफ भाजपा और दूसरी तरफ आप-कांग्रेस गठबंधन का प्रत्याशी है। इस बदली हुई परिस्थिति में भाजपा को तीसरी बार सभी सातों सीटों पर जीत दोहराने के लिए पिछले चुनाव की तरह 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना होगा। वहीं, भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए गठबंधन के दोनों दलों को अपने पूर्व के प्रदर्शन में सुधार कर मत प्रतिशत बढ़ाना होगा। भाजपा के रणनीतिकारों को मालूम है कि इस गठबंधन को मात देने के लिए पार्टी को सभी सीटों पर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह प्रदर्शन करना होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को दिल्ली में कुल 56.09 प्रतिशत और प्रत्येक सीट पर 52 प्रतिशत से अधिक मत मिले थे, जबकि किसी भी सीट पर आप व कांग्रेस का सम्मिलित मत 45 प्रतिशत भी नहीं पहुंच सका था।

सभी सीटों पर भाजपा को बड़ी जीत मिली थी। सबसे कम चांदनी चौक क्षेत्र में लगभग 52 प्रतिशत मत मिले थे, इसलिए वहां पर विशेष ध्यान है। पश्चिमी दिल्ली में पिछली बार 60 प्रतिशत से अधिक मत मिले थे, लेकिन इस बार इस क्षेत्र से सिखों का समर्थन प्राप्त करने में अब तक भाजपा को परेशानी हो रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा को दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के सम्मिलित मतों के मुकाबले भी जरूर अधिक मत मिले थे, लेकिन वर्ष 2014 में सभी सीटों पर जीत प्राप्त करने के बाद भी पार्टी को किसी भी सीट पर 50 प्रतिशत मत नहीं मिल सके थे। इन चुनावों में दिल्ली में भाजपा को कुल 46.6 प्रतिशत मत मिले थे और यदि पश्चिमी दिल्ली को छोड़ दें तो किसी भी सीट पर भाजपा को आप व कांग्रेस को मिले कुल मतों से ज्यादा वोट नहीं मिले थे।

भाजपा के रणनीतिकार इसे समझते हुए अपना 2019 का प्रदर्शन बरकरार रखने के लिए बूथ प्रबंधन पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। प्रत्येक बूथ पर कार्यकर्ताओं की तैनाती सुनिश्चित करने के साथ ही उनके साथ प्रत्याशी व वरिष्ठ नेता संवाद कर रहे हैं। प्रत्येक लोकसभा और विधानसभा स्तर पर प्रभारी, सह प्रभारी, संयोजक और बूथ प्रबंधक की तैनाती की गई है। विधानसभा स्तर पर चुनाव प्रचार की निगरानी हो रही है।

जरूरत के अनुसार किसी वर्ग का समर्थन प्राप्त करने के लिए भाजपा के संबंधित मोर्चा और प्रकोष्ठ के कार्यकर्ताओं को उनके बीच सक्रिय किया गया है। वह केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों से संपर्क कर रहे हैं। उस वर्ग से संबंधित लोकप्रिय नेताओं को भी बुलाया जा रहा है। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ सहित अन्य बड़े नेताओं की चुनावी सभा व रोड शो आयोजित होंगे। भाजपा दिल्ली में राष्ट्रवाद, अयोध्या में श्रीराम मंदिर, हाल में दिए गए कांग्रेस नेताओं के विवादित बयान, केजरीवाल सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप व मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी को मुद्दा बना रहे हैं।

आप व कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना दोनों ही के लिए बड़ी चुनौती है। अपने मतों को बिखरने से रोकने के साथ ही उसमें वृद्धि करने की भी चुनौती है। आप के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आबकारी घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में गिरफ्तारी और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद को त्याग कर अरविंदर सिंह लवली सहित कई बड़े नेताओं के भाजपा में चले जाने से भी गठबंधन की चुनौती बढ़ी है। हालांकि, केजरीवाल को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। ऐसे में यह देखना होगा कि केजरीवाल को जमानत मिलने का उनकी पार्टी क्या लाभ उठा पाती है। उत्तर पूर्वी दिल्ली से कन्हैया कुमार व उत्तर पश्चिमी से उदित राज को प्रत्याशी बनाने से कांग्रेस के कई नेता व कार्यकर्ता नाराज हैं। इन्हें एकजुट करने के लिए कांग्रेस ने देवेंद्र यादव को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने के साथ ही दूसरे राज्यों के बड़े नेताओं को प्रत्येक सीट पर पर्यवेक्षक तैनात किया गया है। आप ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाया है। ‘जेल का जवाब वोट से’ अभियान शुरू कर सुनीता केजरीवाल को चुनाव प्रचार में उतारा है।

का प्रत्याशी है। इस बदली हुई परिस्थिति में भाजपा को तीसरी बार सभी सातों सीटों पर जीत दोहराने के लिए पिछले चुनाव की तरह 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना होगा। वहीं, भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए गठबंधन के दोनों दलों को अपने पूर्व के प्रदर्शन में सुधार कर मत प्रतिशत बढ़ाना होगा। भाजपा के रणनीतिकारों को मालूम है कि इस गठबंधन को मात देने के लिए पार्टी को सभी सीटों पर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह प्रदर्शन करना होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को दिल्ली में कुल 56.09 प्रतिशत और प्रत्येक सीट पर 52 प्रतिशत से अधिक मत मिले थे, जबकि किसी भी सीट पर आप व कांग्रेस का सम्मिलित मत 45 प्रतिशत भी नहीं पहुंच सका था।

सभी सीटों पर भाजपा को बड़ी जीत मिली थी। सबसे कम चांदनी चौक क्षेत्र में लगभग 52 प्रतिशत मत मिले थे,

इसलिए वहां पर विशेष ध्यान है। पश्चिमी दिल्ली में पिछली बार 60 प्रतिशत से अधिक मत मिले थे, लेकिन इस बार इस क्षेत्र से सिखों का समर्थन प्राप्त करने में अब तक भाजपा को परेशानी हो रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा को दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों के सम्मिलित मतों के मुकाबले भी जरूर अधिक मत मिले थे, लेकिन वर्ष 2014 में सभी सीटों पर जीत प्राप्त करने के बाद भी पार्टी को किसी भी सीट पर 50 प्रतिशत मत नहीं मिल सके थे। इन चुनावों में दिल्ली में भाजपा को कुल 46.6 प्रतिशत मत मिले थे और यदि पश्चिमी दिल्ली को छोड़ दें तो किसी भी सीट पर भाजपा को आप व कांग्रेस को मिले कुल मतों से ज्यादा वोट नहीं मिले थे।

भाजपा के रणनीतिकार इसे समझते हुए अपना 2019 का प्रदर्शन बरकरार रखने के लिए बूथ प्रबंधन पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। प्रत्येक बूथ पर कार्यकर्ताओं की तैनाती सुनिश्चित करने के साथ ही उनके साथ प्रत्याशी व वरिष्ठ नेता संवाद कर रहे हैं। प्रत्येक लोकसभा और विधानसभा स्तर पर प्रभारी, सह प्रभारी, संयोजक और बूथ प्रबंधक की तैनाती की गई है। विधानसभा स्तर पर चुनाव प्रचार की निगरानी हो रही है।

जरूरत के अनुसार किसी वर्ग का समर्थन प्राप्त करने के लिए भाजपा के संबंधित मोर्चा और प्रकोष्ठ के कार्यकर्ताओं को उनके बीच सक्रिय किया गया है। वह केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों से संपर्क कर रहे हैं। उस वर्ग से संबंधित लोकप्रिय नेताओं को भी बुलाया जा रहा है। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ सहित अन्य बड़े नेताओं की चुनावी सभा व रोड शो आयोजित होंगे। भाजपा दिल्ली में राष्ट्रवाद, अयोध्या में श्रीराम मंदिर, हाल में दिए गए कांग्रेस नेताओं के विवादित बयान, केजरीवाल सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप व मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी को मुद्दा बना रहे हैं।

आप व कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना दोनों ही के लिए बड़ी चुनौती है।

अपने मतों को बिखरने से रोकने के साथ ही उसमें वृद्धि करने की भी चुनौती है। आप के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आबकारी घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में गिरफ्तारी और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद को त्याग कर अरविंदर सिंह लवली सहित कई बड़े नेताओं के भाजपा में चले जाने से भी गठबंधन की चुनौती बढ़ी है। हालांकि, केजरीवाल को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। ऐसे में यह देखना होगा कि केजरीवाल को जमानत मिलने का उनकी पार्टी क्या लाभ उठा पाती है। उत्तर पूर्वी दिल्ली से कन्हैया कुमार व उत्तर पश्चिमी से उदित राज को प्रत्याशी बनाने से कांग्रेस के कई नेता व कार्यकर्ता नाराज हैं। इन्हें एकजुट करने के लिए कांग्रेस ने देवेंद्र यादव को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने के साथ ही दूसरे राज्यों के बड़े नेताओं को प्रत्येक सीट पर पर्यवेक्षक तैनात किया गया है। आप ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाया है। ‘जेल का जवाब वोट से’ अभियान शुरू कर सुनीता केजरीवाल को चुनाव प्रचार में उतारा है।