METRO HOSPITAL NOIDA 55 वर्षीय पेरालाइज़्ड व्यक्ति को नया जीवन

मेट्रो अस्पताल नोएडा में 55 वर्षीय एक ऐसे मरीज का सफल इलाज किया गया है जिनके पैरों में पैरालिसिस के कई अटैक पड़ गए थे। अटैक का ये सिलसिला 6 महीने से चल रहा था।

METRO HOSPITAL NOIDA  55 वर्षीय पेरालाइज़्ड व्यक्ति को नया जीवन

नोएडा: मेट्रो अस्पताल नोएडा में 55 वर्षीय एक ऐसे मरीज का सफल इलाज किया गया है जिनके पैरों में पैरालिसिस के कई अटैक पड़ गए थे। अटैक का ये सिलसिला 6 महीने से चल रहा था। यूपी के इस मरीज को दोनों पैरों में जब 3 अलग-अलग पैरालिसिस अटैक पड़े, उसके बाद मरीज़ को नोएडा के मेट्रो अस्पताल लाया गया। 

मरीज को जब ये दिक्कत हो रही थी, तो उसके शहर में तब रोग का निदान (डायग्नोसिस) नहीं हो पाया था और यूं ही इलाज किया जाता रहा। मरीज़ में इस इलाज से कई बार थोड़ा सुधार आया लेकिन फिर कुछ समय बाद वही अटैक फिर से पड़ने लगा। इससे मरीज़ के दोनों पैरों में कमजोरी होने लगी थी इस कारण पेशाब के लिए फोले कैथेटर की भी आवश्यकता उन्हें पड़ती थी। जब मरीज को तीसरा और सबसे गंभीर अटैक पड़ा तो उनकी स्थिति काफी खराब हो गई, वह बिस्तर पर आ गए। इसके साथ ही मरीज की नज़र भी कमजोर होने लगी थी।    

मेट्रो अस्पताल पहुंचने पर मरीज की गहन जांच-पड़ताल की गई। एमआरआई (MRI) स्कैन, लम्बर पंचर (Lumbar Puncture) या सीएसएफ स्टडी, स्पेसिफिक ब्लड टेस्ट और एक वीईपी (VEP) टेस्ट कराया गया। 
 
मेट्रो अस्पताल, नोएडा में इस मरीज का इलाज करने वाली, न्यूरोलॉजी विभाग की सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर पूजा कुशवाह ने बताया कि "हमारी एक्सपर्ट मेडिकल टीम ने जांच-पड़ताल से मरीज में डिमाइलेटिंग डिसऑर्डर नामक न्यूरोलॉजी बीमारी का पता लगाया। इस बीमारी का समय रहते इलाज किया जाए तो मरीज़ पूरी तरह ठीक हो जाता है। दरअसल यह बीमारी (डिमाइलेटिंग डिसऑर्डर)अक्सर शरीर के विभिन्न हिस्सों में पैरापेरेसिस, क़्वाड्रीपेरिसिस, विजन लॉस और झनझनाहट या सुन्नता जैसे लक्षणों के साथ बार-बार अटैक के रूप में सामने आती है। इन मामलों में समय रहते निदान से न केवल इलाज़ आसान हो जाता है बल्कि मरीज़ को गंभीर विकलांगता से बचाया जा सकता है।  

डॉक्टर पूजा कुशवाह ने आगे बताया कि ''मरीज के रोग की पुष्टि हो गई थी और उस हिसाब से लगातार पांच दिन तक उसे एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन दिया गया। इस ट्रीटमेंट से मरीज की कमजोरी में काफी सुधार हुआ, जिससे उसे मूवमेंट करने में मदद मिली। इसके अलावा, हमने भविष्य के पैरापेरेसिस अटैक को रोकने के लिए भी एक ट्रीटमेंट प्लान बनाया, जिस पर रोगी और उसके परिवार के साथ चर्चा की गई। मरीज की बाद में फिजियो थेरेपी भी शुरू की गईं। अब मरीज़ खुद से चल सकता है और फोली कैथेटर भी हटा दिया गया है।''

मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स की डायरेक्टर व न्यूरोसाइंसेज की एचओडी डॉक्टर सोनिया लाल गुप्ता ने कहा, ''समय पर इस बीमारी का निदान और टारगेटेड इलाज, रोग को ठीक करने, रिकवरी को बेहतर करने और जीवन की क़्वालिटी सुधारने में महत्वपूर्ण है। यह मामला जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका को दिखाता है और इससे पता चलता है कि समय पर इलाज कितना जरूरी होता है। मैं जनता से अनुरोध करुँगी कि वे शुरुआती न्यूरोलॉजिकल लक्षणों के बारे में सतर्क रहें, और समय पर निदान कराकर बीमारी का तुरंत इलाज कराएं। ''

दरअसल इस बीमारी में हमारे नर्वस सिस्टम की प्रोटेक्टिव लेयर जिसे माइलिन के नाम से जाना जाता है, वह प्रभावित होती है। ऐसे में बीमारी के जोखिमों, कारकों और शुरुआती लक्षणों की पहचान बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, क्यूंकि शुरुआती दौर में इलाज आसान होता है। अनुवंशिक प्रवृत्ति (हेरेडिटरी), वायरल संक्रमण और पर्यावरणीय कारक सहित कई कारक डिमाइलेटिंग डिसऑर्डर होने के रिस्क को बढ़ाते हैं।