विश्व प्रसिद्ध बरसाना की लट्ठमार होली पर विशेष

बरसाना भगवान श्रीकृष्ण और उनकी स्वरूप भूता आल्हादिनी शक्ति राधा की लीला भूमि रही है। फाल्गुन शुक्ल नवमी को होने वाली यहां की लट्ठमार होली न केवल अपने देश में अपितु विदेशों तक में प्रसिद्ध है।

विश्व प्रसिद्ध बरसाना की लट्ठमार होली  पर विशेष

विश्व प्रसिद्ध बरसाना की लट्ठमार होली  पर विशेष

बरसाना भगवान श्रीकृष्ण और उनकी स्वरूप भूता आल्हादिनी शक्ति राधा की लीला भूमि रही है। फाल्गुन शुक्ल नवमी को होने वाली यहां की लट्ठमार होली न केवल अपने देश में अपितु विदेशों तक में प्रसिद्ध है। जिसे देखने के लिए दुनियां के प्रत्येक कोने से लाखों लोग प्रति वर्ष यहां आते हैं। बरसाना, दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर स्थित कोसीकलां से 19 किलोमीटर और मथुरा से (वाया गोवर्धन) 47 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

बरसाना की लट्ठमार होली में अन्य स्थानों की होली के अनुरूप रंग-अबीर एवं नृत्य-संगीत के अलावा लाठियों से होली खेलने की जो विशिष्टता है, वो इस बात की द्योतक है कि राधा-कृष्ण की इस लीला भूमि के कण-कण में आज भी इतना रस व्याप्त है कि यहां लाठियां चल कर भी रस की वृष्टि होती है। 


होली का रंग यहां स्थित श्रीजी मन्दिर में बसन्त पँचमी के दिन होली का डॉढ़ा गड़ते ही छाने लग जाता है। साथ ही मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों के माथे पर गुलाल लगना प्रारम्भ हो जाता है। इसके अलावा मन्दिर में प्रतिदिन सायंकाल समाज गायन होता है। महाशिवरात्रि के दिन मन्दिर से रँगीली गली तक होली की प्रथम चौपाई अत्यंत धूमधाम के साथ निकाली जाती है।

इस चौपाई में गोस्वामीगण संगीत की मृदुल स्वर लहरियों के मध्य होली के पदों का गायन करते हुए साथ चलते हैं। फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को श्रीजी मन्दिर में राधा रानी के छप्पन प्रकार के भोग लगते हैं। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को श्रीकृष्ण के प्रतीक के रूप में नंदगाँव का एक गुसाईं बरसाना की गोपिकाओं को होली खेलने का निमंत्रण देने बरसाना आता है।

बरसाना की गोपीकाओं द्वारा इस गुसाईं का लड्डुओं और माखन-मिश्री से अत्यधिक स्वागत सत्कार किया जाता है।इसके साथ ही वह होली खेलने का निमंत्रण स्वीकार कर लेती हैं।

बरसाना का भी एक गुसाईं नंदगाँव जाकर वहां के गुसाइयों को बरसाना में होली खेलने हेतु आने का निमंत्रण देता है।इसी दिन बरसाना के श्रीजी मन्दिर से होली की दूसरी चौपाई सुदामा मोहल्ला होकर रँगीली गली तक जाती है। साथ ही इसी दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को श्रीजी मन्दिर प्रांगण में लड्डू होली व पाण्डे लीला का भव्य आयोजन होता है। जिसमें गोस्वामीगण भक्तों व श्रद्धालुओं पर लड्डुओं और जलेबियों आदि की बौछार करते हैं।

अगले दिन फाल्गुन शुक्ल नवमी को नंदगाँव के तकरीबन 600 गोस्वामी परिवारों के हुरियारे अपनी-अपनी ढालों को लेकर नंदगाँव स्थित नंदराय मन्दिर में एकत्रित होते हैं और वहां से पैदल ही गाते-बजाते, नाचते-झूमते लगभग 9 किलोमीटर दूर बरसाना पहुँचते हैं। नंदगाँव के इन हरियारों का बरसाना में पहला पड़ाव "पीली पोखर" (प्रिया कुंड) पर होता है। यह वही सरोवर है जिसमें राधा रानी ने हल्दी का उबटन लगा कर स्नान किया था। इस कारण इसका रंग आज भी पीला है। 


नंदगाँव के हुरियारे पीली पोखर में स्नान आदि कर यहां स्थित वट वृक्ष के तले बरसाना की गोपिकाओं के साथ होली खेलने के लिए सजते-संवरते हैं। वह अपनी ढालों को भी सजाते हैं। साथ ही वह चिलम पीते हैं,हुक्का गुड़गुड़ाते हैं और सिल-बट्टा चला-चला कर भांग-ठण्डाई छानते हैं।इस सबके नशे से वह इतना मदमस्त हो जाते हैं कि उनके नेत्र व होठ आदि फड़क उठते हैं। यह नशा वह इसलिए करते हैं ताकि वह गोपीकाओं के द्वारा किये जाने वाले लाठियों के प्रहारों को अपनी ढालों पर आसानी से झेल सकें। नंदगांव के हरियारों में 10-12 वर्ष के बच्चों से लेकर 60-70 वर्ष के बूढ़े तक हुआ करते हैं। 


इस सबके बाद यह हुरियारे अपरान्ह लगभग 3 बजे नंदगांव के नंदराय मन्दिर का झंडा लेकर अपनी पारम्परिक वेशभूषा में "बम्म" (बड़ा नगाड़ा) व मंजीरों की ताल पर होली व रसिया आदि गाते हुए श्रीजी मन्दिर की ओर चल पड़ते हैं। रास्ते में इनकी बरसाना के वयोवृद्ध गुसाइयों के द्वारा उसी प्रकार "मिलनी" की जाती,जिस प्रकार की विवाहों में कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष की "मिलनी" होती है। यह "मिलनी' गले मिलकर, रंग-अबीर लगा कर और इलायची-मिश्री आदि खिलाकर होती है।