मंदिर मंदिर द्वारे द्वारे (2)
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में भी मेरी बहुत आस्था है। किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में मैं वहां पहली बार लगभग डेढ़ दशक पहले गया था और आत्मविश्वास के साथ वापस लौटा।तब से अब तक वहां बहुत कुछ बदल चुका है।
राजेश बैरागी-
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में भी मेरी बहुत आस्था है। किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में मैं वहां पहली बार लगभग डेढ़ दशक पहले गया था और आत्मविश्वास के साथ वापस लौटा।तब से अब तक वहां बहुत कुछ बदल चुका है।
मंदिर के ढांचे से लेकर वहां की व्यवस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन आ गया है।या यूं कहें कि व्यवस्थाएं बहुत अच्छी हो गई हैं। पहली बार जाने के समय यहां बाहर सड़क पर दर्शनार्थियों की पंक्तियां लगती थीं।
बिना बारी आगे जाने को लेकर अक्सर लोगों में मारपीट तक हो जाती थी। सफाई की उचित व्यवस्था नहीं थी। एक गलत परंपरा के तहत प्रसाद को सिर पर घुमाकर पीछे की ओर फेंका जाता था।
यह अन्न का तिरस्कार और मूर्खता के निकृष्ट प्रदर्शन से अधिक कुछ नहीं था। मैंने तब इस गलत परंपरा को रोकने के लिए तख्ती लेकर और मौन रहकर उस स्थान पर विरोध करने का विचार किया था। परंतु एक साथी ने अंधी आस्था के विरोध के खतरे का भय
दिखाकर मुझे रोक दिया था।मेरा मानना रहा है कि समय के साथ गलत परंपराएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं।वही हुआ। अब यहां ऐसा नहीं किया जाता। पिछले दिनों ब्रह्मलीन हुए महंत अरुण पुरी के प्रयासों से यह बालाजी धाम अब बहुत साफ सुथरा और
व्यवस्थित हो गया है। इस रविवार को भी मैं वहां गया। बालाजी महाराज को सवामणि का भोग लगाया जाता है। यूं तो वहां अनेक दुकानें हैं जो सवामणि भोग तैयार करती हैं। परंतु मंदिर की ओर से भी यह व्यवस्था है। मंदिर निर्धारित शुल्क लेकर सवामणि भोग
तैयार कराता है। प्रसाद के रूप में बुकिंग कराने वाले को कुछ भोजन दे दिया जाता है। बताया गया है कि शेष भोजन मंदिर समिति द्वारा संचालित विद्यालयों, वृद्धाश्रम व कुष्ठ आश्रम में वितरित होता है। यानी सवामणि भोग के लिए एकत्र होने वाले धन से ऊपर
वर्णित संस्थानों में खानपान की व्यवस्था चलती है। यहां भी अनेक लोग भिक्षाटन करते हैं। ये सभी भिक्षा के पात्र हों, ऐसा नहीं है। भिक्षाटन न केवल आवश्यकता है
बल्कि यह स्वभाव और व्यवसाय भी बन चुका है। धार्मिक स्थलों की बुराई यही है कि इन स्थलों ने ठीक ठाक लोगों को भी भिखारी बना दिया है।(