नायाब शहर है भोपाल
देश के करीब-करीब मध्य में स्थित राज्य मध्य प्रदेश के लगभग मध्य में उसकी राजधानी भोपाल है। पड़ोसी राज्य राजस्थान या उत्तर प्रदेश के मुकाबले यह शहर राजधानी होने के बावजूद ज्यादा शोर-शराबे से ग्रस्त नहीं है।
देश के करीब-करीब मध्य में स्थित राज्य मध्य प्रदेश के लगभग मध्य में उसकी राजधानी भोपाल है।
पड़ोसी राज्य राजस्थान या उत्तर प्रदेश के मुकाबले यह शहर राजधानी होने के बावजूद ज्यादा शोर-शराबे
से ग्रस्त नहीं है।
आप अगर सड़क या ट्रेन के जरिये इस शहर में पहुंचें तो आपको एहसास ही नहीं होगा
कि आप राजधानीनुमा शहर में हैं। खुदा न खास्ता अगर हवाई जहाज से उतरे तब तो लगेगा कि
बियाबान जंगल में ही आ गए हैं। पर इस शांति के पीछे एक ऐसा शहर छिपा है जिसकी ऐतिहासिक और
सांस्कृतिक जड़ें काफी गहरी हैं।
ताल तो भोपाल ताल
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां हर चीज या तो बड़ी है या फिर
नायाब है। कुछ यही हाल भोपाल की झील का भी है। शहर में कहावत है कि ताल तो भोपाल ताल बाकी
सब तलैयां। पहली नजर में ही पता चल जाता है कि कहावत 16 आने सही है और इसमें जरा भी क्षेत्रीय
अतिशयोक्ति नहीं है। ताल के बारे में कहानी है कि एक बार राजा भोज बीमार हो गए और लंबे समय
तक इलाज चला, पर कारगर न हुआ।
हालात काफी बिगड़ गए तो राजज्योतिषी ने कहा कि अगर राजा
12 नदियों के पानी से भरा ताल बनवाएं तो उनकी जान बच जाएगी। फिर ऐसी जगह की खोज हुई जहां
12 नदियां हों। उस वक्त भोपाल के आसपास 10 नदियां तो मिल गई, बाकी दो सुरंग के जरिए 5
किलोमीटर दूर से लाकर यहां कृत्रिम रूप से बनाए गए ताल में डाली गई।
मूल रूप से ताल 6500 हेक्टेयर में फैला था और इस कारण मालवा तक जमीन की आबोहवा बदल गई
थी। बाद में होशंगाबाद ने इसका एक तिहाई हिस्सा तुड़वा दिया। पर टूटने के बावजूद यह ताल इतना
बड़ा है कि इसके उत्तरी छोर पर श्यामला हिल्स से देखने पर इसका अंतर नहीं दिखाई देता। यहीं
श्यामला हिल्स पर मुख्यमंत्री निवास के करीब भारत भवन है। अस्सी के दशक में यह उत्तर भारत में
साहित्य और संस्कृति का बड़ा केंद्र बन गया था। यहां चर्चाएं, गोष्ठियां, संगीत समारोह, वगैरह आयोजित
होते थे। हालांकि 80 के दशक का रुतबा तो अब नहीं रहा, पर सांस्कृतिक आयोजन आज भी होते हैं।
साथ ही भारत भवन की इमारत वास्तु का एक शानदार नमूना भी है। वास्तुप्रेमियों को कम से कम यहां
जरूर आना चाहिए। भोपाल ताल के पश्चिमी छोर पर एक नेचर पार्क बनाया गया है और यहां सफेद शेर
एक बड़ा आकर्षण है।
मंदिर राजा भोज का
वैसे राजा भोज और भोपाल की विशालता के बीच का संबंध यहीं तक सीमित नहीं है। शहर से 28
किलोमीटर दूर एक मंदिर है, जिसे भोज मंदिर कहा जाता है। शिव को समर्पित यह मंदिर पूरी तरह
इसलिए नहीं बन पाया क्योंकि राजा भोज इसके निर्माण के दौरान बीच में ही चल बसे। पर वास्तु की
इस अपूर्ण धरोहर की लंबाई-चैड़ाई देखकर हैरानी होती है कि वास्तुकार की कल्पना कितनी उदात्त रही
होगी। मंदिर में स्थापित शिवलिंग सात फुट ऊंचा है और घंटा 17.8 फुट का है। मंदिर के बगल में एक
जैन मठ भी है, जहां भगवान महावीर जी की 20 फुट ऊंची मूर्ति स्थापित है। यहां भी एक झील थी और
यह भोपाल ताल का ही हिस्सा थी। झील 250 वर्ग मील के इलाके में फैली थी। अब तो उस झील को
बनाने वाले बांधों के कुछ अवशेष ही दिखाई देते हैं।
गुफाओं में चित्रकारी
विशालता और प्राचीनता की भूख अगर आपमें जरूरत से ज्यादा है तो घबराइए नहीं। भोपाल में इसे
बुझाने का पूरा इंतजाम है। भोपाल में होशंगाबाद के रास्ते में भीम बैठका नाम की गुफाएं पड़ती हैं। कहा
जाता है कि पौराणिक काल में भीम यहां आकर रुके थे। बात कितनी सही है, यह तो आपकी आस्था पर
निर्भर करता है। हां जिस बात के प्रमाण आंखों के सामने मौजूद हैं, वह यह कि यहां मौजूद गुफाएं
प्रागैतिहासिक चित्रकारी का केंद्र हैं। ईसा से तीन हजार साल पहले से लेकर आठवीं शताब्दी ईसवी तक
की जनजातीय चित्रकारी के नमूने यहां मिल जाते हैं। अपनी आंख के सामने अपने पूर्वजों के हाथों बनी
चित्रकारी के आदिम नमूनों को देखकर वाकई जबर्दस्त रोमांच होता है।
नवाबी शान के वैभव
प्राचीनता के वैभव से मन भर जाए और मध्ययुगीन भारत को देखने की चाह जागे तो आप भोपाल शहर
में घूमना शुरू कर दीजिए। मध्यकाल में भोपाल नवाबों का शहर रहा है और आज भी उनकी छाप यहां
साफ दिखाई देती है। शहर से 16 किलोमीटर दूर इस्लाम नगर में नवाबों के महल आज भी मौजूद हैं,
पर उनकी तहजीब और नवानियत भोपाल में कैद है। शहर में नवाबी असर को देखने की शुरुआत गौहर
महल से की जा सकती है। महल ऊपरी ताल के करीब बना है और इसे कुदसिया बेगम या नौहर बेगम
ने बनवाया था।
इसी के सामने शौकत महल और सद्र मंजिल है। शौकत महल पश्चिमी वास्तु और
इस्लामी वास्तु का नायाब संगम है। महल के करीब ही जनता से नवाबों की मुलाकात करने के लिए सद्र
मंजिल बनवाई गई थी। आज ये इमारत सरकारी कार्यालय बन चुकी है।
भोपाल के नवाबी इतिहास पर बेगमों का काफी असर रहा है। अपने रुतबे का बेगमों ने कई बड़े कामों के
लिए इस्तेमाल किया। कुदसिया बेगम की बेटी सिकंदर जहां ने मसजिद का निर्माण करवाया। ये छोटी
मसजिद दिल्ली की जामा मसजिद से प्रेरणा लेकर बनाई गई है। इसमें सुर्ख लाल रंग की मीनारें हैं,
जिनमें सोने के स्पाइक जड़े हैं।
लेकिन शहर में इससे भी ज्यादा आकर्षक एक मसजिद है। उसे बनाने में
भी एक बेगम का ही हाथ है। शाहजहां बेगम ने भोपाल की ताज-उल-मसजिद का निर्माण शुरू करवाया
था। हालांकि ये उनके इंतकाल के बाद ही पूरी तरह तैयार हो पाई। आज ये देश की सबसे बड़ी मसजिद
मानी जाती है। गुलाबी पत्थर से बनी इस मसजिद में दो विशाल सफेद गुंबद हैं। मुख्य इमारत पर तीन
सफेद गुंबद और हैं। यहां हर साल तीन दिन का इजतिमा उर्स होता है। जिसमें देश के कोने-कोने से लोग
आते हैं।
हम्माम और चार बैन
पर एक यात्री के हिसाब से राय ली जाए तो भोपाल दिसंबर या जनवरी के महीने में ही जाना चाहिए।
उस वक्त इस शहर में दो और चीजों का आनंद उठाया जा सकता है। एक तो यहां का हम्माम और
दूसरा चार बैत। भारत भवन के करीब ही यहां का डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराना हम्माम है। इसे आज
भी उसी परिवार के सदस्य चला रहे हैं जो बेगमों के लिए काम करते थे। यह अक्टूबर से मार्च तक
चलता है।
यहां आज भी पानी गर्म करने के लिए लकड़ी जलाई जाती है। ठीक वैसे ही मालिश और
मेहमाननवाजी होती है जैसी पहले हुआ करती थी। मालिश के लिए बनाए तेल की एक खास विधि है।
इसका राज पिता अपने बेटे को ही बताता है। हम्माम की ऐसी शोहरत है कि शाम को यहां शहर के कई
प्रतिष्ठित लोग मिल जाएंगे। राष्ट्रपति बनने से पहले डॉ. शंकर दयाल शर्मा भी यहां नियमित रूप से
आया करते थे। दो घंटे की शानदार सेवा के लिए आपको कुल 80 रुपये देने पड़ते हैं।
नवाबी शौक और इतने किफायती दाम में और कहीं संभव है?
सर्दियों में भोपाल की एक लोक कला चार बैत का भी आनंद लिया जा सकता है। यह कव्वाली का एक
रूप है जिसमें चार-चार लोगों की दो टीमें होती हैं। दोनों छोटे ढप लेकर बैठते हैं और उसी समय मिले
विषय पर शायरी गढ़ते जाते हैं और गाकर बहस का सिलसिला आगे बढ़ता रहता है। अंत में जीतने वाली
टीम अगले विरोधी का सामना करती है। एक जमाने में चार बैत की टीमों का हाल यह था कि उनके
फैन क्लब हुआ करते थे।
वह उनकी हौसला आफजाई के लिए हर जगह जाया करते थे। कई बार तो दो
फैन क्लबों के बीच झड़पें तक हो जाती थीं, पर अब वो जुनून नहीं रहा। अब यह कला धीरे-धीरे खत्म-सी
हो रही है।
भोजन पर्यटन की मिसाल
देश के बीचोबीच स्थित होने और कई संस्कृतियों को खुद में समेटने के कारण भोपाल उन लोगों के लिए
भी खास आकर्षण का केंद्र है जो सिर्फ भोजन पर्यटन में विश्वास रखते हैं। जिन लोगों की सोच गायक
अदनान सामी के नारे से मेल खाती है कि मैं जहां जाता हूं वहां सबसे पहले स्थानीय खाना खाता हूं और
फिर संगीत सुनता हूं, ऐसे लोग भोपाल में मायूस नहीं होंगे। इस शहर में नवाबों का वर्चस्व होने के
कारण बढिया अफगानी और मुगल पकवान इफरात में मिलते हैं। शहर के पुराने इलाके में ताज-उल-
मस्जिद के आसपास ऐसे बड़े रेस्तरां हैं जो लजीज पकवान, बिरयानी वगैरह से आपका स्वागत करने को
तैयार रहते हैं।
मालवा के करीब होने के कारण भोपाल में पोहे और तमाम शाकाहारी व्यंजन भी खूब मिलते हैं। शहर में
शाकाहारी भोजन आपको हर जगह मिल जाएगा। दक्षिण भारतीयों की बड़ी तादाद होने के कारण भोपाल
में इडली, दोसा, उत्तपम आदि व्यंजनों की भी कमी महसूस नहीं होती। खरीदारी के शौकीन पर्यटकों के
लिए न्यू मार्केट शानदार जगह है। यहां राज्य भर की कलाकृतियों से लेकर नई से नई चीजें तक उपलब्ध
हैं।
भोपाल देश की राजधानी दिल्ली और मुंबई के अलावा ग्वालियर एवं इंदौर से भी हवाई मार्ग से जुड़ा
है। दिल्ली-चेन्नई रेल मार्ग पर स्थित होने के कारण यहां के लिए कई ट्रेनें हैं और दिल्ली से प्रतिदिन
शताब्दी भोपाल के लिए चलती है। सड़क मार्ग से ये शहर देश के हर कोने से जुड़ा है। यहां घूमने का
सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच है।