-Ujjain- का हरसिद्धि माता मंदिर- जहां माता सती की कोहनी गिरी थी

हरसिद्धि माता के कई प्रसिद्ध मंदिर है लेकिन उज्जैन में महाकाल मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन है।

-Ujjain- का हरसिद्धि माता मंदिर- जहां माता सती की कोहनी गिरी थी

उज्जैन का हरसिद्धि माता मंदिर- जहां माता सती की कोहनी गिरी थी

हरसिद्धि माता के कई प्रसिद्ध मंदिर है लेकिन उज्जैन में महाकाल मंदिर से कुछदूरी पर स्थित हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन है। कहा जाता है कि उज्जैन की रक्षा के लिए आस-पासदेवियों का पहरा है, उनमें से एक हरसिद्धि देवी भी हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर वहांस्थित है जहां सती के शरीर का अंश अर्थात हाथ की कोहनी आकर गिर गई थी। अत: इस स्थल कोभी शक्तिपीठ के अंतर्गत माना जाता है। इस देवी मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है।


कहा जाता है कि यह स्थान सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि है। मंदिर के पीछे एक कोने में कुछसिर सिन्दूर चढ़े हुए रखे हैं। ये विक्रमादित्य के सिर बतलाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है किमहान सम्राट विक्रम ने देवी को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक 12वें वर्ष में अपने हाथों से अपनेमस्तक की बलि दे दी थी। उन्होंने ऐसा 11 बार किया लेकिन हर बार सिर वापस आ जाता था।12वीं बार सिर नहीं आया तो समझा गया कि उनका शासन संपूर्ण हो गया। हालांकि उन्होंने 135वर्ष शासन किया था। वैसे यह देवी वैष्णवी हैं तथा यहां पूजा में बलि नहीं चढ़ाई जाती है।हरसिद्धि मंदिर की चारदीवारी के अंदर चार प्रवेश द्वार हैं।

मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओरहै। द्वार पर सुंदर बंगले बने हुए हैं। बंगले के निकट दक्षिण-पूर्व के कोण में एक बावड़ी बनी हुई हैजिसके अंदर एक स्तंभ है। यहां श्रीयंत्र बना हुआ स्थान है। इसी स्थान के पीछे भगवती अन्नपूर्णाकी सुंदर प्रतिमा है।
मंदिर के पूर्व द्वार से लगा हुआ सप्तसागर (रुद्रसागर) तालाब है जिसे रुद्रासागर भी कहते हैं।रुद्रसागर तालाब के सुरम्य तट पर चारों ओर मजबूत प्रस्तर दीवारों के बीच यह सुंदर मंदिर बनाहुआ है। मंदिर के ठीक सामने दो बड़े दीप-स्तंभ खड़े हुए हैं। प्रतिवर्ष नवरात्र के दिनों में प्रतिदिन इनपर दीप मालाएं लगाई जाती थी लेकिन मान्यताओं के चलते अब लगभग रोजाना दीप मालाएं लगाई
जाती है।

मंदिर के पीछे अगस्तेश्वर का प्राचीन सिद्ध स्थान है जो महाकालेश्वर के भक्त हैं। मंदिरका सिंहस्‍थ 2004 के समय पुन: जीर्णोद्धार किया गया है।मंदिर की पौराणिक कथाकहते हैं कि चण्ड और मुण्ड नामक दो दैत्यों ने अपना आतंक मचा रखा था। एक बार दोनों नेकैलाश पर कब्जा करने की योजना बनाई और वे दोनों वहां पहुंच गए। उस दौरान माता पार्वती औरभगवान शंकर द्यूत-क्रीड़ा में निरत थे। दोनों जबरन अंदर प्रवेश करने लगे, तो द्वार पर ही शिव केनंदीगण ने उन्हें रोक दिया। दोनों दैत्यों ने नंदीगण को शस्त्र से घायल कर दिया। जब शिवजी कोयह पता चला तो उन्होंने तुरंत चंडीदेवी का स्मरण किया।


देवी ने आज्ञा पाकर तत्क्षण दोनों दैत्यों का वध कर दिया। फिर उन्होंने शंकरजी के निकट आकरविनम्रता से वध का वृतांत सुनाया। शंकरजी ने प्रसन्नता से कहा- हे चण्डी, आपने दुष्टों का वधकिया है अत: लोक ख्याति में आपका नाम हरसिद्धि नाम से प्रसिद्ध होगा। तभी से इस महाकालवन में हरसिद्धि विराजित हैं।