किसी भी उम्र से शुरू हो सकता है हृदय रोग
इंसान के दिल में चाहे कितना ही भेदभाव क्यों न हो दिल की बीमारी किसी के साथ भेदभाव नहीं करती। क्योंकि जब दिल की बीमारी की बात आती है
इंसान के दिल में चाहे कितना ही भेदभाव क्यों न हो दिल की बीमारी किसी के साथ भेदभाव नहीं करती। क्योंकि
जब दिल की बीमारी की बात आती है तो नवजात शिशु से लेकर वृध्द तक हर कोई खतरे की जद में आ जाता है।
पहले डाक्टर 40 साल से अधिक उम्र वालों को पूरा हैल्थ चैकअप कराने की बात कहते थे ताकि किसी बीमारी की
पता शुरुआती स्टेज में ही चल जाये।
लेकिन अब तो 10 साल के बच्चों के भी पूरे हेल्थ चेकअप की सलाह दी जा
रही है।
तो अगर आप सोचते हैं की मुझे 50 साल से पहले चिंता करने की जरूरत नहीं है। तो जरा उन अध्यनों
पर गौर करें जिनमें खुलासा हुआ है की दिल की धमनियों का तंग होना और उच्च कालेस्ट्राल जैसी समस्याएं
बचपन से भी शुरू हो सकती है।
बचपन में होने वाली हृदय समस्याएं:- भारत में बालरोग स्वास्थ्य कल्याण अभी अपने आरंभिक चरण में है। यदि
दिल और रक्त धमनियां अच्छे से पम्प न करें तो आप बीमार पर सकते हैं और आपको निम्नलिखित हृदय रोग
हो सकते हैं:-
-कान्जिनिटल हार्ट डिजीज: वह मर्ज जो जन्म के साथ हो सकता है।
-ऐक्वायर्ड हार्ट डिजीज: वह मर्ज जो आमवाती बुखार जैसी बीमारियों की वजह से बचपन में विकसित हो सकता है।
-अरिद्मियाः दिल की असंतुलित धड़कन जो कभी कम तो कभी ज्यादा हो जाती है।
-मर्मरध्वनिः कई बार हृदय की कुड़बुड़ाहट किसी बड़ी समस्या का संकेत हो सकती है।
भारत संबंधी आंकड़े बताते है कि भारत में कान्जिनिटल हार्ट डिजीज का खतरा बहुत ज्यादा हो सकता है क्योंकि
हमारे देश में जन्म दर बहुत ज्यादा है।
टीनएजर्स में हृदय रोग:- टीनएजर्स व नौजवानों में हृदयरोग के मामले बढ़ रहे हैं। एक नये आस्ट्रेलियाई अध्ययन
से मालूम चलता है कि 14 वर्षीय आयु के प्रत्येक 3 में से 1 बच्चों को दिल की बीमारी का जोखिम है। यूनिवर्सिटी
आफ मिन्नेसोटा चिल्ड्रंस हास्पिटल, मिनियापोलिस में हुए अध्ययन के अनुसार लड़कों में हृदय रोग पनपने की
संभावना अधिक होती है। और जब तक कोई बच्चा 19 साल का युवक बनता है उस पर यह जोखिम बढ़ जाता है।
20 से 50 साल की उम्र में हृदय रोग:- इस आयु वर्ग में दिल की सेहत पर बहुत ध्यान दिये जाने की जरूरत है।
काम और परिवार में संतुलन कायम करने की जद्दोजहद आपके तनाव का स्तर बढ़ा सकती है जिस वजह से हृदय
रोग का खतरा बढ़ जाता है। कोर्टिसोल तथा एड्रनलिन ऐसे दो प्रमुख स्ट्रैस हारमोन हैं जो रक्त धमनियों को
संकुचित कर सकते रक्तचाप बढ़ा सकते हैं
और धमनियों में रक्त प्रवाह की रुकावट का कारण बन सकते हैं। इस
आयु वर्ग में मेटाबालिज्म धीमा पड़ जाता है जिससे लोगों में वजन अधिक होने की संभावना बढ़ जाती है
परिणामस्वरूप उनके दिल पर दबाव पड़ता है।
जैसे-जैसे हम 20 से 40 की ओर बढ़ते हैं हमारे शरीर में ऐस्ट्रोजैन का स्तर घटने लगता है जिससे दिल की बीमारी
का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि यही वह हारमोन है जो हृदय धमनियों को लचीला बनाए रखता है
तथा उन्हें सख्त
होने से बचाता है। हमारे उदर क्षेत्र में अंतरांगी चर्बी विकसित होने लगती है जिसका संबंध एचडीएल के कम होने,
उच्च रक्त शर्करा तथा बढ़े हुए ट्राइग्लिसिराइड से है। ये सभी कारण अच्छे नहीं हैं क्योंकि इनसे हार्ट अटैक होने की
संभावना बढ़ जाती है।
जीवन के 60 के दशक में रहें सावधान:- कोरोनरी हार्ट डिजीज यानी हृदय धमनियों का रोग उम्रदराज लोगों के मौत
का सबसे बड़ा कारण है। हार्ट अटैक के आधे से अधिक शिकार 65 साल से ऊपर के होते हैं। हालांकि अधेड़ उम्र के
मरीजों में यह रोग अधिक देखा जाता है पर औरतों में भी रजोनिवृति के बाद इस रोग में तेजी देखने में आती है।
आखिरकार महिलाओं की संख्या भी पुरुषों के बराबर ही हो जाती है। नान इनवेसिव कार्टियैक टस्टिंग वृध्द मरीजों
के लिए एक वरदान है। ईकोकार्डियोग्राफी में ध्वनि तरंगें दिल के अंदरूनी ढांचे से टकराकर लौटती हैं और वाल्व की
बीमारी तथा अन्य दिक्कतों के बारे में जानकारी देती हैं।
खुद डाक्टर न बनें:- विभिन्न किताबों व नेटवर्किंग साइटों में जो जानकारी उपलब्ध है वह आपको बीमारी के बारे में
जागरूक करने के लिये है। यह जानकारी आपके डाक्टर की जगह नहीं ले सकती। उस जानकारी का इस्तेमाल अपने
रोग को अच्छी तरह जानने के लिये करें किन्तु आपका कार्डियोलाजिस्ट आपको जो बताता है उस पर अमल करना
न छोड़ें।