नगाड़े सत्य के बजे

बजे झूठ पर तालियां, केवल दिन दो-चार। आखिर होना सत्य ही, सब की जुबां सवार।।

बजे झूठ पर तालियां,
केवल दिन दो-चार।


आखिर होना सत्य ही,
सब की जुबां सवार।।


सब की जुबां सवार,
दौड़ता बिजली जैसे ।


झूठ फिर हक्का-बक्का,
सभी को रोके कैसे।


सच ‘सौरभ’ कह रही,
मन से अभी झूठ तजे।


गली-गली, हर जगह,
नगाड़े सत्य के बजे ।।


लिखने लायक है नही,
राजनीति का हाल।


कुर्सी पे काबिज हुऐ,

गुण्डे चोर दलाल।।
गुण्डे, चोर, दलाल,


करते है नित उत्पात।
झूठ-लूट से करे,


जनता के भीतर घात।।
सुन ‘सौरभ’ की बात,


पाप है इनके इतने।
लिखे न जाये यार,


अगर बैठे हम लिखने।।