-कवि भूदत्त पाराशर ने कश्मीरी पंडितों के दर्द को किया था बयां
*कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर लिखी कविता को ऑल इंडिया रेडियो ने नहीं किया था प्रसारित
*पवनेश (सोनू कौशिक )आज का मुद्दा*
बुलन्दशहर। सन 1990 में हुआ कश्मीरी पण्डितों के नरसंहार से कोई भी अंजान नहीं है। बताया जाता है कि उस वक्त के हुक्मरान चुपचाप बैठकर कश्मीर में हो रहे विध्वंस का तमाशा देखते रहे और लाखों कश्मीरी पंडित घर से बेघर हो गए और हजारों परिवारों ने अपनों को खो दिया।
यहां तक कि बहन बेटियों की आबरू को भी स्वर्ग कही जाने वाली उस घाटी में तार तार कर दिया गया। उस विध्वंस पर उस समय के युवा कवियों में शुमार रहे भूदत्त पाराशर ने कश्मीर में हो रहे जलजले के प्रति अपने ह्रदय में उठे ज्वर को शब्दों में उकेर दिया।
उन्होंने कविता के माध्यम से बताया कि जो इस प्रकार मानव के संहार और बहन बेटी की आबरू को तार तार करने लगें वो किसी पाक धर्म के अनुयायी कहलाने लायक ही नहीं हैं। इस कविता के विषय में कवि भूदत्त पराशर से जब हमारी बात हुई तो उन्होंने खुल कर इस पर बात की।
उन्होंने बताया कि वो विध्वंस केवल चंद शब्दों ने या कुछ सीन फिल्माकर बयां नहीं किये जा सकता। उस दर्द की कहानी उन लाखों बेघरों से पूछनी चाहिए जो अपना सब कुछ गवां कर रातों रात जान बचाकर भागने पर मजबूर हुए थे।
भाईचारे के साथ रह रहे वो लोग अकारण ही घर से बेघर कर दिए गए और सब तमाशबीन बनकर देखते रहे। कविता के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि उस समय न तो सोशल मीडिया का ज़माना था और ना ही इतने न्यूज़ चैनल, सूचनाओं के प्रचार व प्रसार का माध्यम दूरदर्शन व रेडियो ही था जो दोनों ही सरकार के आधिपत्य में थे।
उन्होंने बताया कि उस समय ऑल इंडिया रेडियो पर युववाणी नाम से एक कार्यक्रम प्रसारित होता था जिसमें युवा कवियों की रचनाओं को प्रस्तुत किया जाता था। भूदत्त पाराशर ने बताया कि उन्होंने भी अपनी कविता सन 1990 के नरसंहार पर युववाणी कार्यक्रम में प्रसारित करने के लिए भेजी थी लेकिन सत्ता के दबाव में इस कविता को प्रसारित करने पर रोक लगा दी गई।
आज जब "दि कश्मीर फाइल्स" जैसी फ़िल्म ने उस समय कश्मीरी पंडितों द्वारा झेले गए भयानक मंजर को उजागर किया है तब लोगों की आंख खुली हैं। इस कविता के माध्यम से मैंने कश्मीर जैसी सुंदर वादी को नरक बनाने वाले लोगों के बारे में लिखा है।
और उस घटना को अंजाम देने वाले लोग आज भी मेरी नज़र में दरिंदे हैं जो किसी भी धर्म को मानने वाले नहीं हो सकते। क्योंकि कोई भी मज़हब आपस में द्वेष करने की शिक्षा कभी नहीं देता है।