31 जुलाई तीज पर विशेष : प्रकृति से जुड़ाव का पर्व है श्रावणी तीज
वर्षा ऋतु में श्रावण के महीने में हमारे देश में चारों तरफ पानी बरसता रहता है। इस दौरान चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती है। हरियाली के आगोश में प्रकृति इस तरह झूम उठती है मानो पृथ्वी अपनी हरी-भरी बाहें फैलाकर सबका अभिनंदन कर रही हो।
वर्षा ऋतु में श्रावण के महीने में हमारे देश में चारों तरफ पानी बरसता रहता है। इस दौरान चारों तरफ हरियाली ही
हरियाली नजर आती है। हरियाली के आगोश में प्रकृति इस तरह झूम उठती है मानो पृथ्वी अपनी हरी-भरी बाहें
फैलाकर सबका अभिनंदन कर रही हो। श्रावण के महीने को हिंदू धर्मावलंबी भगवान शिव का महीना मान मानकर
भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं। कावड़िए देशभर में विभिन्न नदी, तालाबों से जल लाकर भगवान शिव का
अभिषेक करते हैं। गणगौर के बाद त्योहारों का सिलसिला रुक जाता है वह एक बार फिर श्रावण मास की तीज से
प्रारंभ हो जाता है। श्रावण का महीना महिलाओं के लिए विशेष उल्लास का महीना होता है। इस महीने में आने वाले
अधिकांश लोक पर्व महिलाओं द्वारा ही मनाए जाते हैं।
श्रावण के महिने में चारों ओर हरियाली की चादर सी बिखर जाती है। जिसे देख कर सबका मन झूम उठता है।
सावन का महिना एक अलग ही मस्ती और उमंग लेकर आता है। श्रावण के सुहावने मौसम के मध्य में आता है
तीज का त्यौहार। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। उत्तर भारत में यह हरियाली तीज
के नाम से भी जानी जाती है। सावन के महीने में सिंजारा, तीज, नागपंचमी एवं सावन के सोमवार जैसे लोकपर्व
उत्साह पूर्वक मनाए जाते हैं। श्रावण के महीने में मनायी जानेवाली हरियाली तीज आस्था, प्रेम, सौंदर्य व उमंग का
त्यौहार है। तीज को मुख्यतः महिलाओं का त्यौहार माना जाता है। यह पर्व महिलाओं की सांस्कृतिक मान्यताओं का
प्रतीक है। सावन माह में मनाया जाने वाला हरियाली पर्व दंपतियों के वैवाहिक जीवन में समृद्धि, खुशी और
तरक्की का प्रतीक है। तीज का त्यौहार भारत के कोने-कोने में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह
त्यौहार भारत के उत्तरी क्षेत्र में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।
श्रावण का आगमन ही इस त्यौहार के आने की आहट सुनाने लगता है। समस्त सृष्टि सावन के अदभूत सौंदर्य में
भिगी हुई सी नजर आती है। यह पर्व भारतीय जनमानस के अटूट विश्वास को और अधिक प्रगाढ़ता प्रदान करने का
पर्व है। इस पर्व में हरियाली शब्द से ही साफ है कि इसका ताल्लुक पेड़-पौधों और पर्यावरण से है। यह त्योहार
जीवन में जश्न का प्रतीक है
और हरियाली तीज का पर्व प्रकृति का त्योहार हैं। इस मौके पर महिलाएं अच्छी फसल
के लिए भी प्रार्थना करती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इस व्रत का पालन किया
था। परिणामस्वरूप भगवान शिव ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया था। माना जाता है
कि श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन माता पार्वती ने सौ वर्षों के तप उपरान्त भगवान शिव को पति रूप में पाया था।
इसी मान्यता के अनुसार स्त्रियां माता पार्वती का पूजन करती हैं।
तीज पर मेहंदी लगाने, चूडियां पहनने, झूला झूलने तथा लोक गीतों को गाने का विशेष महत्व है। तीज के त्यौहार
वाले दिन खुले स्थानों पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत पर या बरामदे में झूले लगाए जाते हैं जिन
पर स्त्रियां झूला झूलती हैं। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेलों का भी आयोजन होता है।
हाथों में रची मेंहंदी की तरह ही प्रकृति पर भी हरियाली की चादर सी बिछ जाती है। इस नयनाभिराम सौंदर्य को
देखकर मन में स्वतः ही मधुर झनकार सी बजने लगती है और हृदय पुलकित होकर नाच उठता है। इस समय वर्षा
ऋतु की बौछारें प्रकृति को पूर्ण रूप से भिगो देती हैं। सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं। इस व्रत को
अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं
तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के
लिए करती हैं।
राजस्थान में जिन कन्याओं की सगाई हो गई होती है। उन्हें अपने होने वाले सास ससुर से एक दिन पहले ही भेंट
मिलती है। इस भेंट को स्थानीय भाषा में सिंझारा कहते हैं। सिंझारा में मेंहदी, लाख की चूडियां, लहरिया नामक
विशेष वेश-भूषा, घेवर नामक मिठाई जैसी कई वस्तुएं होती हैं। पीहर पक्ष द्धारा अपनी विवाहित पुत्री को भी
सिंजारा भेजा जाता है। जिसे पूजा के बाद सास को सुपुर्द कर दिया जाता है। राजस्थान में नवविवाहिता युवतियों
को सावन में ससुराल से मायके बुलाने की भी परम्परा है।
तीज के अवसर पर नवयुवतियां हाथों में मेंहदी रचाते हुए गीत गाती हैं। समूचा वातावरण शृंगार से अभिभूत हो
उठता है। इस त्योहार की सबसे बड़ी विशेषता है कि महिलाओं का हाथों पर विभिन्न प्रकार से बेलबूटे बनाकर मेंहदी
रचाना। राजस्थान में हाथों व पांवों में भी विवाहिताएं मेंहदी रचाती हैं। जिसे मेंहदी मांडना कहते हैं। इस दिन
राजस्थानी बालाएं दूर देश गए अपने पति के तीज पर आने की कामना करती हैं।
जो कि उनके लोकगीतों में भी
मुखरित होता है।
अपने सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिये स्त्रियां यह व्रत किया करती हैं। इस दिन उपवास कर भगवान शंकर-
पार्वती की बालू से मूर्ति बनाकर शोडशोपचार पूजन किया जाता है जो रात्रि भर चलता है। स्त्रियों द्धारा सुंदर वस्त्र
धारण किये जाते है तथा घर को सजाया जाता है। इसके बाद मंगल गीतों से रात्रि जागरण किया जाता है। इस व्रत
को करने वालि स्त्रियों को पार्वती के समान सुख प्राप्त होता है। तीज का आगमन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही
आरंभ हो जाता है। आसमान काले मेघों से आच्छादित हो जाता है और वर्षा की फोहार पड़ते ही हर वस्तु नवरूप
को प्राप्त करती है।
ऐसे में भारतीय लोक जीवन में हरियाली तीज या कजली तीज महोत्सव का बहुत गहरा प्रभाव
देखा जा सकता है।
राजस्थान के गांवों में पहले लड़किया गुड्डे-गुड्डी का खेल खेलती थी। तीज के दिन से गुड्डे-गुड्डी का खेल खेलना
बन्द कर देती थी। इसलिये गांव की लड़किया एक साथ एकत्रित होकर अपनी पुरानी गुड्डे-गुड्डी को गांव के पास
के नदी,तालाब, जोहड़ में बहा देती थी। जिसे गुड्डी बहावना कहा जाता था। आज के दौर में ये सब बीती बाते बन
कर रह गयी है। राजस्थान में मान्यता है कि गणगौर के साथ ही पर्व-त्यौंहार मनाना बन्द हो जाते हैं। वो तीज के
दिन से पुनः मनाये जाने लगते हैं। तीज से शुरू होने के बाद त्योंहारों का सिलसिला गणगौर तक चलता है।
इसीलिये राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है तीज त्योंहारा बावड़ी ले डूबी गणगौर।