छोटी-मोटी चोटों के घावों को अनदेखा न करें

छोटी−मोटी चोटें अक्सर हम सभी को लगती रहती हैं। इन चोटों से हुए घावों के प्रति हम अक्सर लापरवाह होते हैं। कुछ लोग केवल मरहम−पट्टी कर लेते हैं

छोटी-मोटी चोटों के घावों को अनदेखा न करें

छोटी−मोटी चोटें अक्सर हम सभी को लगती रहती हैं

इन चोटों से हुए घावों के प्रति हम अक्सर लापरवाह होते हैं।
कुछ लोग केवल मरहम−पट्टी कर लेते हैं और कुछ तो ऐसा भी नहीं करते। डॉक्टरों के अनुसार चोट लगने पर एक
चीज जो बहुत जरूरी है वह है टिटनेस का इंजेक्शन। टिटनेस के कीटाणु किसी भी तरह के जख्म से शरीर में प्रवेश
कर पूरे शरीर को प्रभावित कर सकते हैं।


टिटनेस को सतत मांसपेशी संकुचन भी कहते हैं यह जीवाणुओं से होने वाला संक्रमण है। टिटनेस के कारक जीवाणु
माइकोबैक्टिरयिम टिटेनी चोट लगने के कारण होने वाले जख्म से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

चोट से उत्पन्न
जख्म के सम्पर्क में जैसे ही टिटनेस के जीवाणु आते हैं शरीर के सैल्स के साथ मिलने पर वे एक विशेष प्रकार का
विषैला पदार्थ शरीर में छोड़ देते हैं।

यह टॉक्सिन तंत्रिकाओं के द्वारा चोट लगने के स्थान से सेन्ट्रल नब्र्स सिस्टम
जिसे स्पाइन भी कहते हैं की ओर जाता है।

यहां से यह संक्रमण पूरे शरीर में फैल जाता है। टिटनेस किसी भी
आयुवर्ग के व्यक्ति को हो सकता है।


टिटनेस के जीवाणु किसी भी प्रकार के छोटे या बड़े जख्म से शरीर पर आक्रमण कर लेते हैं।

कुछ लोगों को
आलपिन से दांत व मसूढे खोदने की आदत होती है इसके फलस्वरूप मसूढों पर पड़ने वाली खरोचों तथा छोटे से
जख्मों से भी टिटनेस के जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

लोगों में आमतौर पर एक भ्रामक धारणा प्रचलित है
कि टिटनेस सिर्फ लोहे से उत्पन्न जख्म के कारण ही होता है परन्तु यह सही नहीं है टिटनेस किसी भी प्रकार के
जख्म से संक्रमित हो सकता है।


टिटनेस सदैव आक्सीजन रहित वातावरण में होता है। जहां धूल−मिट्टी, कीचड़, गोबर आदि घाव के सम्पर्क में
आते हैं। परन्तु धूल−मिट्टी राख की तुलना में घोड़े की लीद के सम्पर्क में आने वाले जख्म में टिटनेस का संक्रमण
होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है।

कभी−कभी कान से लगातार पस बहने से भी टिटनेस का संक्रमण हो
सकता है।


नवजात शिशु और बच्चे को जन्म देने वाली माताएं भी टिटनेस का शिकार हो सकती हैं।

ऐसा गांवों में ज्यादा होता
है क्योंकि गांवों या पिछड़े इलाकों में बच्चे के जन्म के समय नाल को दूषित या जंग लगे चाकू या ब्लेड से काट
दिया जाता है। जिससे टिटनेस के कीटाणु मां या बच्चे या कई बार दोनों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।