नाच नाच नाच - कोरोना काल में अरबपति बनने वाले लोग खाद्य,दवा और ऊर्जा के सौदागर
कोरोना काल में अरबपति बनने वाले लोग खाद्य,दवा और ऊर्जा के सौदागर थे।
-राजेश बैरागी-_
दो तीन घंटे खूब मनोरंजन रहा।बारात में नचनियों की एक टोली तरह तरह से नृत्य कर बारातियों को आनंदित कर रही थी।आज के समाचार पत्रों में एक बड़ी खबर यह थी कि कोरोना काल में हर तीस घंटे में जहां एक अरबपति पैदा हुआ, वहीं हर तैंतीस घंटे में दस लाख लोगों का संवेदी सूचकांक गरीबी की रेखा नीचे की ओर पार कर गया।
कोरोना काल में अरबपति बनने वाले लोग खाद्य,दवा और ऊर्जा के सौदागर थे। तो बारात में पैसे के लिए नाचने वाले मेरे लिए हमेशा कौतूहल का विषय रहे हैं।वे ऐसी खुशी प्रकट करते हैं जैसे उनके किसी खास की शादी हो, वे ऐसे झूम कर नाचते हैं कि उनके हर अंग से मस्ती टपकती मालूम होती है।वे आमतौर पर पुरुष होते हैं परंतु वस्त्रों और मेकअप के दम पर महिलाओं को मात देते हैं।
इसीलिए बाराती मारे उत्तेजना के उनके साथ नृत्य करते हुए बेकाबू हो जाते हैं। समलैंगिक संबंधों का इससे बड़ा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है। इस टोली में दो पुरुष तरह तरह के करतब दिखाते चल रहे थे। कभी आरे पर चलना, कभी बंधी हुई दो लाठियों के बीच से निकलना, नचनिया को कंधों पर खड़ा कर नृत्य करना और चारपाई को मुंह में दबाकर हवा में उठाना।
साहिर ने लिखा,-खुद नाचती हैं और नचाती हैं रोटियां।' बारात का गंतव्य बागपत जिले का एक गांव था। वहां अभी भी लोक कलाओं से मनोरंजन के इन साधनों के लिए स्थान बचा हुआ है।
मेरे एक साथी ने मेरा ध्यान घरों के छज्जों और छतों पर चढ़कर बारात देख रहे ग्रामवासियों की ओर दिलाया। शहरों में अब यह सब बीते समय की बातें हो गई हैं।बैंकेट और फार्म हाउसों में होने वाली शादियों में दुल्हे के दर्शन की परंपरा दम तोड़ चुकी है।
नचनियों ने देहतोड़ अपनी कला का प्रदर्शन किया। उनके ठेकेदार ने बताया कि एक बारात में नाचने के तीन सौ से चार सौ रुपए प्रत्येक नचनिया को देने पड़ते हैं। बाकी न्यौछावर है जिसे पाने के लिए नचनिया अपनी कला, मेहनत और अस्मत सब कुछ दांव पर लगा देता है।
बाराती उसके नकली स्तनों को दबाने और नोंचने की फिराक में रहते हैं।कोरोना के दो वर्षों में नचनियों को कोई रोजगार नहीं था।हर घंटे गरीब होने वाले दस लाख लोगों में इनकी गिनती सबसे नीचे से शुरू की जा सकती है।(साभार:नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)