भारतीय कंपनी ने अमेरिकी बाजार से हटा ली आंख की दवा

चेन्नई स्थित ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर ने अमेरिकी बाजार से “ आर्टिफीशियल टीयर्स” दवा को हटा लिया है।

भारतीय कंपनी ने अमेरिकी बाजार से हटा ली आंख की दवा

नई दिल्ली, 04 फरवरी (। भारतीय दवा निर्माता कंपनी की आंख की दवाई को लेकर
अमेरिकी स्वास्थ्य नियामक सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के गंभीर आरोपों के बाद


चेन्नई स्थित ग्लोबल फार्मा हेल्थकेयर ने अमेरिकी बाजार से “ आर्टिफीशियल टीयर्स” दवा को हटा
लिया है।


सीडीएस ने बयान जारी करके कहा कई लोगों को जबरदस्त दुष्प्रभाव झेलने पड़े हैं और यह संभवत:
आंख की इस दवा के इस्तेमाल के कारण ही हुआ हो। सीडीएस ने अमेरिकी खाद्य एवं दवा प्रशासन

(एडीए) को भी सचेत करते हुए बताया कि आंखों के संक्रमण, स्थायी रूप से आंख की रोशनी चले
जाने और इसी के प्रभाव से आंख में अत्यधिक रक्तस्राव एक व्यक्ति की मौत और 55 अन्य तरह


की समस्याओं के मामले सामने आये हैं। सीडीसी कई राज्यों में सामने आये दवा प्रतिरोधी संक्रमण
के मामलों की जांच कर रहा था जो “

आर्टिफीशियल टीयर्स” दवा के इस्तेमाल से जुडे हैं। इस दवा
को इज़री केयर, एलएलसी और डेलसम फार्मा अमेरिका में वितरित करती है।


एफडीए द्वारा शुक्रवार को जारी एक चेतावनी में उपभोक्ताओं और डॉक्टरों को निर्देश दिया गया कि
वे उत्पाद को न खरीदें और उसका उपयोग बंद कर दें। चेतावनी में कहा गया है, “ दूषित कृत्रिम


आंसू के इस्तेमाल से आंखों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जिससे अंधापन या मौत हो सकती
है।”

एफडीए ने दवा के बनाये जाने में नियमों के उल्लंघनों के कारण दवा वापस लेने की सिफारिश
की थी, जिसमें उपयुक्त माइक्रोबियल परीक्षण की कमी, सूत्रीकरण के मुद्दे (कंपनी पर्याप्त परिरक्षकों


के बिना बहु-उपयोगी बोतलों में नेत्र संबंधी दवाओं का निर्माण और वितरण करती है), और छेड़छाड़-
स्पष्ट पैकेजिंग के संबंध में उचित नियंत्रण की कमी जैसी आपत्तियों को शामिल किया गया है।


एक दुर्लभ दवा प्रतिरोधी स्ट्रेन स्यूडोमोनास एरुजिनोसा बैक्टीरिया की की जांच करते समय अमेरिकी
एजेंसियों को सतर्क कर दिया गया था।

दवा को लेकर मांगे गये रिकॉर्ड पर उचित प्रतिक्रिया न देने
से कंपनी को अमेरिकी एफडीए की आयात चेतावनी सूची में रखा गया है। इस अलर्ट का उद्देश्य


कंपनी के उत्पादों को अमेरिका में प्रवेश करने से रोकना है।


सिप्ला के पूर्व वैश्विक वकील, मुरली नीलकंठन ने कहा कि आंखों की दवा या चतुर्थ तरल पदार्थों के
साथ चुनौती यह है कि उन्हें अंग विशेष में भीतर डाला जाता है इस कारण इन दवाओं को बनाने


,पैक करने और सुरक्षित रूप से भेजने को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरती जानी अनिवार्य है।
ऐसा ही एक दूसरा मामला ब्रिटेन में आंख की दवा भेजने वाली एक कंपनी के साथ हुआ जब


अधिकारियों ने दवा से भरे कंटेनरों को बाजार में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी और उन्हें नष्ट
करना पड़ा, हालांकि इस बात का कोई सबूत नहीं था कि आई ड्रॉप दूषित थे।


उन्होंने कहा कि गुणवत्ता, विशेष रूप से पूरी तरह से जीवाणु मुक्त होने काे लेकर प्रत्येक चरण पर
जाँच करने की आवश्यकता है - निर्माण से पहले और उसके दौरान, आपूर्ति श्रृंखला के माध्यम से


कंटेनरों के अंदर भी तापमान निश्चित बनाये रखने को लेकर कडे नियम अपनाने तथा बंदरगाह में
प्रवेश और वितरण के दौरान भी कड़े नियम बनाए रखा जाना चाहिए।