निर्जला एकादशी : हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

वाराणसी, 10 जून ( बाबा विश्वनाथ की नगरी में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) पर शुक्रवार को हजारों श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाई।

निर्जला एकादशी : हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

वाराणसी, 10 जून )। बाबा विश्वनाथ की नगरी में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) पर शुक्रवार
को हजारों श्रद्धालुओं ने पतित पावनी गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाई।

इसके बाद घाटों पर दान पुण्य के
साथ बाबा विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा के दरबार में हाजिरी लगाई।


निर्जला एकादशी पर गंगा स्नान के लिए दूर-दराज के जिलों से श्रद्धालु गुरुवार शाम से ही गंगा घाटों पर पहुंचने
लगे। श्रद्धालु पूरी रात घाट की सीढ़ियों पर गुजार श्रीहरि की आराधना करते रहे। पूरी रात गंगा तट गीतों एवं


भजनों से गुलजार रहा। भोर से ही स्नान दान का क्रम शुरू हुआ। स्नान पर्व पर लोगों ने पुरोहितों को भोजन
कराकर सामर्थ्य अनुसार उनको वस्त्र, छाता, स्वर्ण, जलपूरित कलश, चीनी आदि दान किया।


ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की ‘निर्जला एकादशी’ को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। आज के दिन लोग
उपवास रखते हैं, ये कठिन व्रत है। जेठ की दोपहर में दिनभर बगैर पानी के उपवास रखना आसान काम नहीं है।


इस व्रत को करने से दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस एकादशी को करने से वर्ष की 24
एकादशियों का व्रत रखने के समान फल मिलता है।

पौराणिक कथा के अनुसार इस व्रत को महाबली भीम ने भी
किया था। इस वजह से इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।


कथा है कि भीम की भूख अत्यंत तीव्र थी। वे भूखा नहीं रह सकते थे। इसके कारण कभी व्रत नहीं रखते थे। तब
वेद व्यासजी ने उनको बताया था कि वर्ष में सिर्फ एक निर्जला एकादशी व्रत रखने से सभी एकादशी व्रतों का पुण्य


प्राप्त हो जाएगा। निर्जला एकादशी व्रत करने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी व्रत
विधिपूर्वक संपन्न करने से व्यक्ति के सभी पाप मिट जाते हैं और मृत्यु के बाद भगवान विष्णु की कृपा से बैकुंठ
में स्थान मिलता है।