महिला अधिकारों के लिए सदैव संघर्षरत रहीं सरोजिनी नायडू
राष्ट्रीय महिला दिवस/ सरोजिनी नायडू की 143वीं जयंती (13 फरवरी)आजादी के राष्ट्रीय आन्दोलन में उल्लेखनीय योगदान करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में 'नाइटिंगेल ऑफ इंडिया' तथा 'भारत कोकिला' के नाम से विख्यात कवयित्री और देश के सर्वोत्तम राष्ट्रीय नेताओं में से एक सरोजिनी नायडू का नाम सदैव आदर के साथ स्मरण किया जाता है।
-योगेश कुमार गोयल-
आजादी के राष्ट्रीय आन्दोलन में उल्लेखनीय योगदान करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में 'नाइटिंगेल ऑफ इंडिया'
तथा 'भारत कोकिला' के नाम से विख्यात कवयित्री और देश के सर्वोत्तम राष्ट्रीय नेताओं में से एक सरोजिनी नायडू
का नाम सदैव आदर के साथ स्मरण किया जाता है।
उन्हीं के सम्मान में प्रतिवर्ष 13 फरवरी को अब उनका जन्मदिवस 'राष्ट्रीय महिला दिवस' के रूप में मनाया जाता
है। हैदराबाद में एक बंगाली परिवार में 13 फरवरी 1879 को जन्मी सरोजिनी नायडू की 135वीं जयंती के अवसर
पर 13 फरवरी 2014 से देश में राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत की गई थी।
आज समूचा देश उनकी
143वीं जयंती मना रहा है। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक रसायन वैज्ञानिक और निजाम कॉलेज के
संस्थापक थे, जबकि उनकी माता वरदा सुंदरी बंग्ला की कवयित्री थी।
सरोजिनी के पिता चाहते थे कि उनकी बेटी
भी उन्हीं की भांति वैज्ञानिक बने लेकिन सरोजिनी को कविताओं से अगाध प्रेम था, जिसे वह कभी त्याग नहीं
सकीं।
वह बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज थीं और उन्होंने केवल 12 वर्ष की आयु में ही मद्रास
यूनिवर्सिटी से मैट्रिक की परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल किया था। पढ़ाई के साथ-साथ वह कविताएं भी लिखती थीं
और उनका पहला कविता संग्रह 'द गोल्डन थ्रैशहोल्ड' 1905 में प्रकाशित हुआ, जो आज भी पाठकों के बीच बेहद
लोकप्रिय है।
सुंदर कविताओं, मधुर वाणी तथा प्रभावशाली भाषणों के ही कारण सरोजिनी नायडू को 'भारत कोकिला' तथा 'भारत
की बुलबुल' जैसे नामों से भी जाना जाता है। 14 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने लगभग सभी प्रमुख अंग्रेजी कवियों की
रचनाओं का अध्ययन कर लिया था।
साहित्य के क्षेत्र में उनका योगदान अद्धितीय है और उनके साहित्यिक कार्यों
को विश्वभर में सराहा जाता है। 'द गोल्डन थ्रैशहोल्ड' जहां उनका पहला कविता संग्रह था, वहीं उनके दूसरे तथा
तीसरे कविता संग्रह 'द बर्ड ऑफ टाइम' तथा 'द ब्रोकन विंग' ने तो उन्हें सुप्रसिद्ध कवयित्री बना दिया था।
इनके
अलावा 'डेथ एंड द स्प्रिंग', 'द गिफ्ट ऑफ इंडिया', 'मुहम्मद जिन्ना: अम्बेसडर ऑफ यूनिटी', 'द सेप्ट्रेड फ्लूट: सांग्स
ऑफ इंडिया', 'किताबिस्तान', 'द इंडियन वीवर्स', 'द क्वींस राइवल', 'नीलांबुज', 'हैदराबाद के बाज़ारों में', 'ट्रैवलर्स सांग',
'द रॉयल टम्ब्स ऑफ गोलकोंडा' इत्यादि उनकी चर्चित साहित्यिक रचनाओं में शामिल हैं।
उनकी कुछ कविताओं को
स्कूलों-कॉलेजों के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है।
1895 में हैदराबाद के निजाम ने उन्हें ज्यादा से ज्यादा ज्ञान अर्जित करने के लिए वजीफे पर इंग्लैंड भेजा और
इस प्रकार केवल 16 साल की उम्र में ही वह उच्च शिक्षा के लिए लंदन चली गईं।
पहले लंदन के किंग्स कॉलेज
और उसके बाद कैम्ब्रिज के गिरटन कॉलेज में उन्हें अध्ययन करने का अवसर मिला। इंग्लैंड का मौसम अनुकूल
नहीं होने के कारण वह 1898 में ही इंग्लैंड से स्वदेश लौट आईं। जब वह इंग्लैंड से लौटीं, तब फौजी डॉक्टर डा.
गोविन्दराजुलु नायडू के साथ विवाह करने को उत्सुक थीं, जिन्होंने तीन साल पहले उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव
रखा था।
हालांकि शुरू में सरोजिनी के पिता इस शादी के खिलाफ थे लेकिन बाद में 19 साल की उम्र में उनकी
शादी डा. गोविन्दराजुलु के साथ हो गई।