कड़ाके की ठंड में भी हजारों लोग सौ रहे है खुले आसमान के नीचे
राजधानी दिल्ली में कड़ाके की हाड़ कांप ठंड पड़ रही है, लोग घरों में कैद है बावजूद इसके आज भी दिल्ली सरकार तथा केंद्र सरकार की लापरवाही के चलते राजधानी में हजारों बे-घर लोग खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं
नई दिल्ली, राजधानी दिल्ली में कड़ाके की हाड़ कांप ठंड पड़ रही है, लोग
घरों में कैद है बावजूद इसके आज भी दिल्ली सरकार तथा केंद्र सरकार की लापरवाही के चलते
राजधानी में हजारों बे-घर लोग खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं और रोजाना कई लोग
भीषण ठंड बर्दाश्त नहीं करने के चलते काल के ग्रास में समा जाते है और इस ओर न तो दिल्ली
सरकार गंभीर है और न ही केंद्र सरकार। यह कहना है भजनपुरा से बहुजन समाज पार्टी के निगम
प्रत्याशी रहे ठाकुर विनोद कुमार जायस का। ठाकुर विनोद जायस कहते है जनहित के इस मुद्दे पर
दिल्ली तथा केंद्र सरकार को गम्भीरता से सोचते हुए ठोस उपाय करने चाहिए। विनोद जायस कहते हैं
आंकड़े बताते है कि मात्र डेढ़ माह के भीतर ही राजधानी दिल्ली में खुले आसमान के नीचे सोने वाले
लोगो में से तकरीबन दो सौ लोगो के शव लावारिस हालत में मिले है। जिनमे से ज्यातर लोगो की
मौत सर्दी की चपेट में आने से हुई है।
विनोद जायस कहते हैं इस कार्य के लिए हर साल करोड़ों
रूपये का बजट सरकार के पास होता है लेकिन सरकार जमीनी स्तर पर इस ओर कुछ नहीं कर रही
परिणामस्वरूप राजधानी दिल्ली में रोजाना औसतन कई लोग काल के ग्रास में समा जाते हैं। चुनावों
में अनाप शनाप वायदे करने वाले मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को भीषण पड़ रही ठंड में दिल्ली की
सडकों पर सोने वाले लोगो के लिए व्यवस्था तो करनी चाहिए। दिल्ली सरकार की ओर से जिन रेन
बसेरों की व्यवस्था की है उनका बुरा हाल है। उनमें बुनियादी सुविधाएँ तक नहीं है। वहां भी कुछ
दबंगो नें स्थाई कब्जा जमाया हुआ है। ज्यादातर में क्षमता से ज्यादा लोग ठहरते हैं। अनेक लोग
नशा करके वहां पहुंचते हैं जिनसे और लोगो को परेशानी होती है। दिल्ली सरकार बे-घरों के लिए कोई
ठोस योजना बनाने में नाकाम साबित हो रही है। विनोद कहते हैं अपने हर काम को वर्ल्ड लेवल का
बताने वाली केजरीवाल सरकार के पास राजधानी दिल्ली में लाखों बे-घर लोगो के लिए कोई योजना
नहीं है। आलम यह है की भीषण सर्दी हो या बरसात दिल्ली के बड़ी संख्या में लोग फ्लाई ओवरों के
नीचे, रेलवे स्टेशनों के बाहर, बस अड्डों के बाहर तथा मन्दिरों के सामने, फुटपाथों पर जान हथेली
पर रखकर सोने को मजबूर है।