किडनी रैकेट के दलालों को पहचानने की जरूरत
किडनी रैकेट का भांडा फूटा। दो डॉक्टरों समेत दस गिरफ्तार। एम्स के पास ऑर्गन ट्रांसप्लांट का गिरोह सक्रिय, बड़ा एक्शन। 20-30 साल के लोगों को बनाता था टारगेट। दलालों से बचकर निकला पीड़ित ने खोली रैकेट की पोल। क्या कोरोना से मृत लोगों की किडनी भी निकालकर बेची गई?
किडनी रैकेट का भांडा फूटा। दो डॉक्टरों समेत दस गिरफ्तार। एम्स के पास ऑर्गन ट्रांसप्लांट का गिरोह सक्रिय,
बड़ा एक्शन। 20-30 साल के लोगों को बनाता था टारगेट। दलालों से बचकर निकला पीड़ित ने खोली रैकेट की
पोल। क्या कोरोना से मृत लोगों की किडनी भी निकालकर बेची गई? किडनी निकालने के लिए सोनीपत में बना
रखा था ऑपरेशन थिएटर। पिछले दिनों अखबारों की यह सुर्खियां चौंकाने वाली रही। इस धंधे में लिप्त कई बड़े
खुलासे हुए। पुलिस ने धरपकड़ की, अब वो कानूनी शिकंजी में हैं लेकिन आज भी सैकड़ों लोग हैं जो किडनी रैकेट
के घिनौने खेल में शामिल हैं। लाखों-करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। कहीं लोगों को बहला-फुसलाकर तो कहीं धोखे से
इसका शिकार बनाया जा रहा है। इस धंधे का इतना बड़ा जाल है कि इसे खत्म करना आसान नहीं। दरअसल,
इनकी गहरी जड़ों की जब गहरी पड़ताल होगी तो कई चेहरे बेनकाब हो जाएंगे।
पाप की दुनिया का यह किडनी रैकेट कोई नया खेल नहीं। जब-जब यह ज्यादा होने लगा तब-तब उतना ही बेपर्द
हुआ। निश्चित रूप से यह पैसों का खेल है जिसमें धंधे वालों को मुंहमांगी रकम मिल जाती है। बड़े लोग या
अमीरजादे शायद गरीबों की जान की कीमत कुछ भी नहीं समझते और अपनी जान के लिए लाखों-करोड़ों दांव पर
लगा देते हैं। शायद इसलिए ऐसे कुकर्मियों को यह धंधा फायदे का नजर आता है। इसी धंधे की वजह से मानव
तस्करी को बल मिलता है। सवाल उठता है कि इस रैकेट के पीछे मंशा क्या है? स्पष्ट है कि काली कमाई करने के
लिए यह धंधा बेजोड़ है। पिछले दिनों दिल्ली में सक्रिय इस रैकेट का भंडाफोड़ हुआ तो पुलिस ने 2 डॉक्टरों समेत
10 लोगों को गिरफ्तार किया। पकड़े गए आरोपी दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड के थे। इनमें से एक एम्स के पास
उन लोगों के ब्लड और अन्य टेस्ट कराता था, जिनकी किडनी निकाली जानी होती थी। शिकार में फंसे लोगों की
सोनीपत के गोहाना ले जाकर किडनी निकाली जाती थी। वहां आरोपियों ने ऑपरेशन थिएटर बना रखा था।
पुलिस ने इस रैकेट का शिकार हुए उन 4 लोगों को बचाया जिनकी किडनी निकाली जानी थी। शिकार में फंसाए
गरीब लोगों को 2 से ₹3 लाख प्रति किडनी दिया जाता था और उनकी निकाली हुई किडनी को 20-30 लाख और
इससे भी अधिक कीमत पर बेचा जाता था। इस मामले में दूसरे राज्यों के भी तार जुड़े हुए मिले। लैपटॉप मोबाइल
या डिजिटल माध्यमों से फर्जी अकाउंट बनाकर किडनी बेचे जाने का गोरखधंधा चलाया जा रहा था। पुलिस की माने
तो इसकी तह में जाने से कई बड़े नाम सामने आ सकते हैं पुलिस के शिकंजे में आया एक आरोपी कुलदीप शर्मा
उर्फ केडी को इसका मास्टरमाइंड बताया गया। इसका गिरोह लोगों को बहला-फुसलाकर, ब्रेनवाश करके अथवा धोखे
से फ़ांसता था और ऑपरेशन थिएटर तक ले जाता था। उसकी किडनी निकाली जाती थी। इनमें ज्यादातर 20- 30
साल की उम्र वाले गरीब लोग होते थे।
हौज खास थाना पुलिस ने अपनी समझदारी और तत्परता से इस रैकेट का
भंडाफोड़ किया।
पुलिस के मुताबिक झारखंड निवासी पिंटू ने किडनी रैकेट की तब पोल खोली, जब वह इस गिरोह से छूटकर भागने
में कामयाब हो गया। पिंटू दुबई में शेफ की नौकरी करता था, कसीनो में सब कुछ हार कर दिल्ली आ गया था।
नौकरी की तलाश में रकाबगंज गुरुद्वारे के पास रहता था। एक दिन किडनी रैकेट के दो एजेंट सर्वजीत और विपिन
उससे टकरा गए। उनका ब्रेनवाश किया और कहा कि अच्छी नौकरी मिल जाएगी। पिंटू ने कहा कि उसकी तबीयत
ठीक नहीं है तो दोनों आरोपी ने उसे समझाया, सारा टेस्ट फ्री में करा देंगे। जब उसे टेस्ट के लिए लैब में ले जाया
गया तो वहां के एक स्टाफ में पूछ लिया कि क्या आप किडनी डोनेट करने आए हो? इतना सुनते ही उसका दिमाग
सन्न रह गया।
उसने हौज खास थाने को तत्काल इसकी सूचना दी जिस पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए इस रैकेट
का पर्दाफाश कर दिया।
सवाल उठता है कि कुछ तो पैसों के चक्कर में, कुछ असहज या जटिल कानूनी प्रक्रिया की वजह से किडनी के इस
रैकेट को बल मिलता है। विशेषज्ञों की माने तो किडनी रोगी जितनी संख्या में आ रहे, उतनी उन्हें नई किडनी
प्रदान करना बेहद मुश्किल हो रहा है। ऐसे में अस्पतालों में बैकलॉग को कम करना जरूरी है। जानकारी के
मुताबिक औसतन 2 लाख किडनी ट्रांसप्लांट की हर साल जरूरत होती है लेकिन केवल 5000 ही ट्रांसप्लांट हो पाते
हैं। बड़ी संख्या में बैकलॉग रहता है। बाकी ट्रांसप्लांट की तुलना में आसान सर्जरी और एक किडनी से भी लोग जिंदा
रह सकते हैं, इस वजह से किडनी रैकेट का धंधा फलता- फूलता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार ब्रेन डेथ के बाद
अंगदान को बढ़ावा देकर ही इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। आने वाले दिनों में अब ब्रेन डेथ के साथ-
साथ डोनेशन आफ्टर कार्डियक डेथ तकनीक के इस्तेमाल की भी तैयारी चल रही है।
अगले कुछ महीनों में एम्स में इस तकनीक से डोनेशन शुरू करने की योजना है। भारत में अंगदान की परंपरा कम
है, इसमें जागरूकता लाने की जरूरत है। इन दिनों भारत में 30 लाख पर एक आदमी डोनेशन करता है जबकि
अमेरिका में 10 लाख पर 20 आदमी अंग डोनेट करते हैं। आंकड़े की बात करें तो 138 करोड़ की आबादी वाले देश
में 2020 में महज 5,886 किडनी ट्रांसप्लांट हुए। इनमें से सिर्फ 351 ही ब्रेन डेथ के बाद हुए अंगदान से या संभव
हो पाया जबकि डोनेशन आफ्टर कार्डियक डेथ तकनीक से केवल चार डोनेशन हुए। इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
अभी केवल किडनी और लीवर इस विधि से निकाले जा रहे हैं लेकिन इसे लेकर नए सिरे से गाइडलाइन और
प्रोटोकॉल लाने की तैयारी चल रही है। अगर ब्रेन डेथ के साथ-साथ डोनेशन आफ्टर कार्डियक डेथ भी शुरू हो जाएगा
तो निश्चित रूप से इसका असर सकारात्मक हो सकता है और किडनी रैकेट पर लगाम लग सकती है।