कृषि मेले में सीखें तकनीकी और कम जगह में बेहतर खेती का हुनर
नई दिल्ली, 10 मार्च भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा की ओर से 11 मार्च तक आयोजित होने वाले कृषि विज्ञान मेले में देश के विभिन्न हिस्सों के किसान अपने उत्पाद और तकनीकी लेकर पहुंचे।

नई दिल्ली, 10 मार्च भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा की ओर से 11 मार्च तक आयोजित होने
वाले कृषि विज्ञान मेले में देश के विभिन्न हिस्सों के किसान अपने उत्पाद और तकनीकी लेकर पहुंचे। कृषि क्षेत्र में
काम करने वाली कई निजी कंपनियां भी यहां अपने उत्पाद लेकर पहुंचीं हैं। मेले में तकनीकी और कम जगह में
बेहतर खेती के हुनर बताए जा रहे हैं।
12 सौ एकड़ में फैले इस अनुसंधान संस्थान के परिसर में लगभग 12 एकड़ में मेला लगा है। यहां पर 100
संगठनों ने हिस्सा लिया है। वहीं, दो सौ से अधिक स्टॉल लगाए गए हैं, जिनमें पौधों की प्रजातियां, बीज, भविष्य
की खेती के तरीके आदि का प्रदर्शन किया गया।
यहां पर आकर्षण का केंद्र हाइड्रोपोनिक, मुर्गा और मछली का एक
साथ उत्पाद का मॉडल है। इसे आईसीएआर और एक निजी कंपनी के संयुक्त तत्वावधान में तैयार किया गया है।
इस तकनीकी से जुड़े दिशांत का कहना है कि इस मॉडल में सब्जियां तैयार करने के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं
होती है और न खाद की आवश्यकता होती है। सबसे नीचे मछली, उसके ऊपर मुर्गी, मुर्गा और उसके अगल-बगल
पाइप में सब्जियों के पौधे उगा सकते हैं। उन्होंने बताया कि इसके एरिया पर इस मॉडल की कीमत तय होती है।
5.5 मीटर की लौकी बनी आकर्षण
इस कृषि विज्ञान मेले में हरियाणा के कुरुक्षेत्र से आए रणधीर सिंह की साढ़े पांच फीट की लौकी आकर्षण का केंद्र
थी। अपने कृषि कार्यों से राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा 16 बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने वाले
रणधीर सिंह ने बताया कि कृषि कार्य से युवा दूर हो रहे हैं। लेकिन, यदि मेहनत से काम किया जाए तो यह
मुनाफे का काम है।
नई प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन
मेले में संस्थान द्वारा विकसित नवीन किस्मों की जानकारी दी जा रही है, वहीं पूसा संस्थान की अन्य नवोन्मेषी
प्रौद्योगिकियां, जैसे कि सौर उर्जा संचालित ‘पूसा-फार्म सन फ्रिज, पूसा डी-कंपोजर, पूसा संपूर्ण जैव-उर्वरक
(नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटेशियम प्रदान करने वाला अनूठा तरल सूत्रीकरण) को भी प्रदर्शित किया गया है।
बांटे जा रहे नई किस्मों के बीज
मेले में किसानों को बासमती चावल की झुलसा एवं झोंका रोग रोधी तीन किस्में पूसा बासमती 1847, पूसा
बासमती 1885, पूसा बासमती 1886 का बीज भी वितरित किया जा रहा है ताकि किसान इन नवीन क़िस्मों के
बीज निर्माण स्वयं भी कर सकें।
इसके अलावा नई फसल किस्मों के लाइव प्रदर्शन, सब्जियों और फूलों की संरक्षित
खेती के प्रदर्शन और संस्थानों तथा निजी कंपनियों द्वारा विकसित कृषि उपकरणों की प्रदर्शनी और बिक्री पर भी
किसानों ने अपनी रुचि दिखाई।