चुनाव खत्म होते ही महंगा हो गया सब कुछ
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद एकाएक पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ना जनता को अखर रहा है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद एकाएक पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ना जनता
को अखर रहा है।
हिमाचल प्रदेश उपचुनाव में भाजपा के चारों खाने चित होने की वजह से केंद्र सरकार ने पेट्रोल,
डीजल पर जीएसटी की दरें कम की थी।
नतीजतन हिमाचल प्रदेश की सरकार ने पेट्रोल, डीजल के दामों में कटौती
करके जनता को राहत पहुंचाई थी। मगर रसोई गैस के दाम पचास रुपए सहित पेट्रोल, डीजल दामों में बढ़ोतरी
जनता का बजट खराब करने वाली है।
छह महीनों तक पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम स्थिर रहे और चुनाव खत्म
होते ही अब लगातार बढ़ रहे हैं।
रसोई गैस का सिलेंडर खरीदने पर पहले उपभोक्ताओं को सैकड़ों रुपए सबसिडी के
मिलते थे, मगर अब केवलमात्र नाममात्र रुपए बैंक खाते में जमा करके मजाक बनाया जा रहा है।
रूस-यूक्रेन के
आपसी युद्ध का कारण बताकर सीमेंट, सरिया और स्टील तक के दामों में कई गुणा वृद्धि की गई है। केंद्र और
राज्य सरकार द्वारा चलाई गई गृहिणी सुविधा योजना का ऐसे में क्या औचित्य रह जाएगा?
गरीब महिलाओं को
मुफ्त गैस यह कहकर दी गई कि सरकार उनकी सहायता कर रही है। अब गैस सिलेंडर महिलाओं को एक हजार
रुपए से अधिक में खरीदना भारी पड़ रहा है।
मुफ्त में मिली चीज के बाद उसकी भारी भरकम राशि चुकाई जाए तो
हर कोई अपने आपको ठगा सा महसूस करेगा।
पेट्रोल, डीजल के दामों में कुछ राहत मिलने की वजह से रोजमर्रा की चीजों जैसे सब्जियों व फलों के दामों में कुछ
कमी आई थी, मगर अब जिस तरह अचानक गैस, पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी हुई है
, उसका खामियाजा
जनता को भुगतना पड़ रहा है। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की लगातार बढ़ती कीमतों के कारण महंगाई बहुत
अधिक बढ़ चुकी है।
महंगाई का सीधा असर मध्यवर्गीय परिवारों पर पड़ा देखने को मिल रहा है। पेट्रोल, डीजल
और गैस की बढ़ी कीमतों की वजह से आम आदमी का घरेलू बजट तक चरमरा गया है।
इनकी कीमतें ज्यादा होने
के कारण प्रत्येक चीज के दाम सातवें आसमान पर पहुंच चुके हैं।
यही नहीं, बसों का किराया पचास फीसदी तक
बढ़ाया जाना आम जनमानस के लिए भी सिरदर्द बना हुआ है।
पेट्रोल, डीजल के दामों में कटौती किए जाने पर
सरकार को अब करीब पच्चीस फीसदी बस किराए में कमी करने का ऐलान करना चाहिए था।
पेट्रोल, डीजल की
कीमतों के कारण निजी बस आपरेटरों ने सरकार पर दबाव बनाकर पचास फीसदी बस किराया बढ़ाने में सफलता
हासिल कर ली, जिसका सीधा असर भी गरीब आदमी के बजट पर पड़ा है।
जरूरी नहीं प्रत्येक पांच मिनट बाद
सड़कों पर बसें खाली ही सवारियां न होने की वजह से दौड़ाई जाएं। पंद्रह मिनट बाद भी बसें सड़कों पर चलाकर
काम चलाया जा सकता है
। निजी ट्रांसपोर्टरों की मालिया हालत उनकी स्वयं की गलतियों की वजह से हुई है। प्रदेश
सरकारों ने ऐसे ट्रांसपोर्टरों
को बस रूट रेवडि़यों की तरह बांटे हैं। प्रत्येक पांच मिनट बाद बसें सवारियों के बैगर ही
सड़कों पर चलती देखने को मिलती हैं।
हालात ऐसे नाजुक बन चुके हैं कि निजी ट्रांसपोर्टर शाम को बड़ी मुश्किल से
सिर्फ तेल खर्चा ही निकाल पा रहे हैं। वहीं इस कारण हिमाचल परिवहन भी सदैव घाटे में दर्शाया जाता है। कोरोना
वायरस का प्रकोप पिछले दो सालों से चल रहा है।
इस दौरान ज्यादातर समय बसें सड़कों पर नहीं चलाई गई हैं।
अगर बसें चलाई भी गई तो पचास फीसदी कैपेसिटी सहित ही चली हैं।
इस दौरान कुछेक निजी बस परिचालक
सवारियों से कई गुणा अत्यधिक बस किराया भी वसूल करते रहे हैं।
निजी बस परिचालकों की मनमानी से तंग
आकर लोगों ने अब दोपहिया वाहन खरीदकर आवाजाही शुरू कर रखी है। ऐसे हालात में बसों में सवारियां अब
पहले की अपेक्षा कम ही बैठी देखने को मिलती हैं। बस किराया पचास फीसदी बढ़ने का असर मध्यवर्गीय परिवारों
पर अधिक पड़ा है। जयराम ठाकुर सरकार चुनावों से पूर्व ही ऐलान कर चुकी थी
कि वह उचित मूल्य की दुकानों में
मिलने वाली तीन दालें बीस रुपए सस्ती करने वाली थी। प्रदेश सरकार का फोकस कोरोना वायरस से जनता को
बचाने में अधिक रहा। इस दौरान दुकानदारों ने अपने मनमाने दाम वसूलकर जनता को महंगाई का विरोध किए
जाने के लिए भी बाध्य किया है।
कोरोना काल में प्रदेश सरकार ने देवभूमि की जनता की सुरक्षा किए जाने में कोई
कसर बाकी नहीं छोड़ी जिसकी प्रशंसा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कर चुके हैं।
हिमाचल प्रदेश आज कोरोना
वायरस से निजात पाने के मामले में देश के 29 राज्यों में प्रथम स्थान पर आंका गया तो वह जयराम ठाकुर
सरकार की कुशल कार्यप्रणाली का सबूत है।
जयराम सरकार को विरासत में कर्जा मिलने के बावजूद हमेशा जनता
की समस्याओं का समाधान किए जाने के प्रयास किए गए हैं।
प्रदेश में अब तक 24 जनमंच आयोजन, इन्वेस्टर मीट, सहारा, हिम केयर, स्वावलंबन व शगुन आदि कई योजनाएं
चलाई गई हैं।
केंद्र की पूर्व कांग्रेस सरकार ने देश की गिरती अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एनआरआई
लोगों पर भी 36 प्रतिशत कस्टम ड्यूटी लगाई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता पर कब्जा कर
लिया, मगर बेतहाशा जीएसटी लगाने के बावजूद अर्थव्यवस्था अब तक भी पटरी पर नहीं लौट पाई है।
खाड़ी देशों
में कुछेक इलैक्ट्रानिक्स आइटम अन्य देशों की तुलना में पहले चालीस प्रतिशत कम दामों में सस्ते मिलते थे।
रोजी-रोटी संघर्ष के लिए परदेस गए लाखों लोग वतन वापस आने पर अक्सर ऐसी आइटम खरीदकर लाते थे।
कस्टम ड्यूटी इस कदर ज्यादा की कि ऐसी आइटम लेकर भारत आना अपनी जेब खाली करने के बराबर है। यही
नहीं, ऐसी बहुत सारी आइटम पर अंतरराष्ट्रीय गारंटी भी बंद कर दी गई जिसके चलते एनआरआई लोग कोई चीज
भारत न ल सकें।
अनिवासी भारतीय कस्टम ड्यूटी भी भरें और परदेस में कड़ी मेहनत से कमाए पैसे से अगर
भवन निर्माण और कोई व्यवसाय आदि भी करना चाहें तो जीएसटी का भी भुगतान करें। क्या यह न्यायसंगत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को कस्टम ड्यूटी में कटौती करके एनआरआई लोगों पर जीएसटी माफ करना चाहिए।
सरकार को पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में भी कटौती करके उपभोक्ताओं को फिर से अच्छी सबसिडी
मुहैया करवानी चाहिए।