तकनीक के पंखों से उड़ान भरता है रुपयों का राजहंस

सबको साथ लेकर चलने की भावना और भरोसा, इन दो पहियों पर दौड़ती है भारत की वित्त और तकनीक की गाड़ी। दोनों शब्दों को मिला दें तो बनता है एक नया शब्द – फिनटैक।

तकनीक के पंखों से उड़ान भरता है रुपयों का राजहंस  

-- नरविजय यादव

सबको साथ लेकर चलने की भावना और भरोसा, इन दो पहियों पर दौड़ती है भारत की वित्त और तकनीक की गाड़ी। दोनों शब्दों को मिला दें तो बनता है एक नया शब्द – फिनटैक।

इस वक्त भारत में सर्राटे से दौड़ रही है फिनटैक की गाड़ी। इसमें कोई दो राय नहीं कि तकनीक और फाइनेंस के मेल से देश में एक नये किस्म की क्रांति आकार ले रही है। फिनटैक की वजह से गरीब-अमीर हर किसी की जिंदगी में सुखद बदलाव देखने को मिल रहा है। धन का लेनदेन त्वरित होने लगा है। बिचौलिए खत्म हो रहे हैं। आम आदमी भी फिनटैक की सुविधाओं का भरपूर लाभ ले पा रहा है।

इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर्स अथॉरिटी (आईएफएससीए) की एक फिनटैक ईवेंट, इनफिनिटी फोरम का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि भारत ने पिछले सात वर्षों में 43 करोड़ जन-धन खातों के साथ बैंकिंग की चाल-ढाल ही बदल दी है। अब तक 69 करोड़ रूपे कार्ड जारी किये गये हैं, जिनके जरिए गत वर्ष 1.3 अरब लेनदेन हुए।

यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के जरिए गत माह ही करीब 4.2 अरब लेनदेन संभव हुए। भारत के कारोबारी हर महीने लगभग 30 करोड़ चालान जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) पोर्टल पर अपलोड करते हैं, जिसमें 12 अरब डॉलर से अधिक का भुगतान शामिल रहता है। कोविड19 महामारी के बावजूद, करीब 15 लाख रेलवे टिकट हर दिन ऑनलाइन बुक किये जाते हैं। पिछले साल, फास्टटैग के जरिए 1.3 अरब लेनदेन संभव हुए। पैसा अगर अर्थव्यवस्था की जान है, तो तकनीक इसकी वाहक यानी सवारी है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि तकनीक के पंखों से उड़ता है पैसों का राजहंस।

भारत में वर्ष 2014 तक एटीएम पर निर्भरता सर्वाधिक थी। कुछ भी खरीदना होता तो एटीएम से कैश निकाल कर भुगतान करना पड़ता था। इंटरनेट की सुलभता की वजह से, धीरे-धीरे मोबाइल बैंकिंग का चलन बढ़ने लगा। नोटबंदी के बाद, 2017 से एटीएम का प्रयोग 10 प्रतिशत वार्षिक दर से घटता गया। कैश लेनदेन की जगह मोबाइल वॉलेट से भुगतान का चलन शुरू हो गया।

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल लॉकडाउन के चलते मोबाइल बैंकिंग का ट्रेंड जोर पकडता गया और मार्च 2021 तक बैंक खातों से हुए कुल लेनदेन में मोबाइल बैंकिंग की हिस्सेदारी 65.8 प्रतिशत रही। एटीएम का इस्तेमाल घट कर 15.9 प्रतिशत पर जा पहुंचा और 10.4 प्रतिशत के साथ मोबाइल वॉलेट तीसरे स्थान पर खिसक गया। एटीएम कार्ड स्वैप करके होने वाले भुगतान 8 प्रतिशत से भी कम हो गये।  

कोविड महामारी के चलते अर्थव्यवस्था में कई अच्छे बदलाव देखने में आये हैं। महामारी ने एक तरह से बदलाव की बयार को तेज कर दिया। ज्यादातर लेनदेन डिजिटल या कहें कि ऑनलाइन मोड पर होने लगा है, जिससे रिजर्व बैंक को पूरी अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा पर निगाह रखना आसान कर दिया है।

अब पासबुक अपडेट कराने का झंझट करीब-करीब खत्म हो चुका है और बकाया रकम का आंकड़ा भी मैसेज व ईमेल के जरिए तत्काल ही मिल जाता है। एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2020 में महामारी के दौरान तत्काल पेमेंट की दर में 41 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। देश में करीब 26 अरब रुपये की धनराशि का भुगतान रीयल टाइम पेमेंट विधियों से हुआ।

नरविजय यादव वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं।

ईमेल: narvijayindia@gmail.com