देव दीपावली पर देशी गाय के गोबर से बन रहे हवन दीप
देवाधिदेव महादेव के त्रिशूल पर पतित पावनी गंगा के किनारे बसी काशी। इसका शुमार दुनिया के प्राचीनतम नगरों में होता है। कहा गया है, काशी तीनों लोकों से न्यारी है। काशी ही नहीं यहां की हर चीज बाकी जगहों से न्यारी है।
देवाधिदेव महादेव के त्रिशूल पर पतित पावनी गंगा के किनारे बसी काशी। इसका शुमार दुनिया के प्राचीनतम नगरों में होता है। कहा गया है, काशी तीनों लोकों से न्यारी है। काशी ही नहीं यहां की हर चीज बाकी जगहों से न्यारी है। लोग, अड़ी, होली और दीपावली भी। यूं तो काशी वर्ष पर्यंत उल्लसित रहती है पर यहां के कुछ आयोजन बेहद विशिष्ट माने जाते हैं। इन्हीं में से एक है "देव दीपावली" जिसका आयोजन दीपावली के बाद होता है। काशी में "देव दीपावली" के खास अवसर पर इस बार कुछ रौशनी और ढेर सारी खुशबू मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के "हवन दीपों" की भी होगी।
ये "हवन दीप" देशी गाय के गोबर से से बन रहे हैं। इसके लिए सिद्धि विनायक वूमेन स्ट्रेंथ सोसाइटी की संगीता पांडेय को प्रदेश के एमएसएमई विभाग की ओर से संचालित यूपी डिजाइन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से ऑर्डर मिला है।
देशी गाय के गोबर की खूबी
हवन दीप देशी गाय के गोबर से ही क्यों? इस सवाल पर संगीता का कहना है कि विदेशी नस्ल की गायों की गोबर की तुलना में देशी का गोबर टाइट होने की वजह से इसे शेप (आकार) देना आसान होता है। इस समय गोरखपुर से सटे गुलरिहा गांव की करीब 50 महिलाएं हवन दीपों को अपने हुनरमंद हाथों से आकर देने में जुटीं हैं।