महंगाई को काबू करने में पूरी तरह विफल नजर आ रही है मोदी सरकार

केंद्र सरकार का पूरा ध्यान निजीकरण की तरफ होने से पढ़े-लिखे शिक्षित बेरोजगारों में बेरोजगारी की आशंका व्याप्त हो रही है।

महंगाई को काबू करने में पूरी तरह विफल नजर आ रही है मोदी सरकार

केंद्र सरकार का पूरा ध्यान निजीकरण की तरफ होने से पढ़े-लिखे शिक्षित बेरोजगारों में बेरोजगारी की आशंका
व्याप्त हो रही है।

शिक्षित युवाओं को लगने लगा है कि आने वाले समय में सरकार के भरोसे उन्हें रोजगार मिलने
वाला नहीं है।


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान ही लोगों को आशंका होने लगी थी कि जैसे ही चुनावी नतीजे आएंगे
उसके बाद देश के आम जनता को एक बार फिर महंगाई की मार झेलनी पड़ेगी। चुनाव के नतीजे आते ही लोगों


की आशंका सही साबित हुई और केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी करनी शुरू कर दी।
चुनावी नतीजों के बाद से अब तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कई बार बढ़ोतरी की जा चुकी है। वहीं घरेलू
गैस सिलेंडरों की कीमतों में भी 50 रुपये प्रति सिलेंडर की बढ़ोतरी हो चुकी है।


पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी ने आम आदमी की कमर ही तोड़ कर रख दी है। रही सही कसर गैस
सिलेंडरों की दर में वृद्धि करके कर दी गई है। केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने कोरोना के नाम पर गैस सिलेंडरों


पर मिलने वाली सब्सिडी को बंद कर दिया था जिसे अब तक फिर से शुरू नहीं किया गया है।

जबकि केन्द्र सरकार
द्वारा आगामी एक अप्रैल से कोरोना के चलते लगाये गये सभी तरह के प्रतिबंध हटाए जाने की घोषणा की जा
चुकी है।


चुनाव के दौरान वोट लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी सभाओं में जनता के लिए बड़ी-बड़ी लुभावनी
घोषणाएं करते हैं। मगर जैसे ही चुनावी प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। उसके बाद देश की आम जनता को महंगाई के


डबल डोज का सामना करना पड़ता है। ऐसी दोमुंही बातों से देश के आम आदमी का जीना ही मुहाल हो गया है।

देश में खाद्य पदार्थों की कीमतें पहले ही आसमान छू रही हैं। प्रतिदिन काम में आने वाली वस्तुओं की कीमतों में
हर दिन बढ़ोत्तरी हो रही है। आटे, दाल, चावल, फल, सब्जियों की कीमत अचानक ही बहुत बढ़ गई है।

वहीं खाने
का तेल भी लोगों की पहुंच से दूर होता जा रहा है। मौजूदा परिस्थितियों में देश के गरीब व मध्यम वर्ग का गुजर
बसर करना मुश्किल हो गया है।


अनाज, दाल, तेल, और ईंधन के बाद अब देश में दवाएं भी महंगी हो सकती हैं। अप्रैल से अधिसूचित दवाओं के
करीब 10 फीसदी तक दाम बढ़ सकते हैं। राष्ट्रीय दवा मूल्य नियामक थोक मूल्य सूचकांक में हुए बदलाव से


अधिसूचित दवाओं की कीमतें बढ़ाने की इजाजत दे सकता है। अधिसूचित दवाएं आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची
में आती हैं। इसमें एंटीबायोटिक, विटामिन, मधुमेह, रक्तचाप नियंत्रक सहित अन्य दवाएं आती हैं।


देश में एक तरफ जहां लगातार महंगाई बढ़ती जा रही है वहीं रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं। चुनाव के
दौरान सरकार लाखों लोगों को नई नौकरियां देने की घोषणाएं करती है। मगर नई नौकरी की बात करना तो दूर जो


लोग रिटायर हो रहे हैं सरकार उनके पदों को ही समाप्त कर नई नौकरियों के अवसर को समाप्त करती जा रही है।
ऐसे में युवाओं के और अधिक बेरोजगार होने की संभावना में बढ़ोतरी होती जा रही है।


केंद्र सरकार का पूरा ध्यान निजीकरण की तरफ होने से पढ़े-लिखे शिक्षित बेरोजगारों में बेरोजगारी की आशंका
व्याप्त हो रही है।

शिक्षित युवाओं को लगने लगा है कि आने वाले समय में सरकार के भरोसे उन्हें रोजगार मिलने
वाला नहीं है। सरकारी नौकरियों में खुलेआम बंदरबांट हो रही है। बड़ी पहुंच और पैसों के बल पर ही सरकारी


नौकरियां मिल रही हैं। ऐसे में आम गरीब का बेटा नौकरी की आस ही छोड़ चुका है। महंगाई के साथ ही देश में
भ्रष्टाचार चरम पर है। सरकारी कर्मचारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। इस कारण वे बेखौफ होकर आकंठ भ्रष्टाचार
में डूबे हुए हैं।


केंद्र में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी थी तब देश की जनता को लगा था कि अब भ्रष्टाचार
पर नियंत्रण हो जाएगा। मगर कुछ समय तक भ्रष्टाचार रोकने की बातें होती रही उसके बाद वही पुरानी व्यवस्थाएं


चलने लगीं। आज कोई भी नेता भ्रष्टाचार रोकने की बातें नहीं करता है। सबको अपना भविष्य सुरक्षित बनाने की
चिंता लगी हुई है। ऐसे में सब अपने को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने में लगे हुए हैं।


प्रारम्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार रोकने के लिए बड़ी-बड़ी बातें किया करते थे। मगर अब लगता है कि वह
भी पुराने ढर्रे में ढल गए हैं। उनको भी लगने लगा है कि इस देश में भ्रष्टाचार रोकना उनके बस की बात नहीं है।


केंद्र के साथ ही भाजपा शासित राज्यों में आए दिन भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े स्कैंडल उजागर हो रहे हैं। मध्य प्रदेश में
व्यापमं घोटाले का भूत अभी भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का पीछा नहीं छोड़ रहा है। भ्रष्टाचार के कारण राजस्थान


में वसुंधरा राजे व छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। मगर उससे भी किसी ने सबक नहीं
लिया लगता है।