मिट्टी में मिलाने का सिलसिला
यह अप्रत्याशित नहीं था। उत्तर प्रदेश की पुलिस अतीक अहमद से बदला लेगी, यह तय था परंतु ऐन उस समय जब वह प्रयागराज की अदालत में पेश हो रहा होगा,उस समय उसे उसके बेटे को पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने का समाचार सुनाया जाएगा,
राजेश बैरागी-
यह अप्रत्याशित नहीं था। उत्तर प्रदेश की पुलिस अतीक अहमद से बदला लेगी, यह तय था परंतु ऐन उस समय जब वह प्रयागराज की अदालत में पेश हो रहा होगा,
उस समय उसे उसके बेटे को पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने का समाचार सुनाया जाएगा, इसका किसी को इल्म नहीं था। सत्ता और सत्ताधारी चाहें तो क्या असंभव है।
सत्ता से बड़ा न तो कोई सेवक हो सकता है और न कोई माफिया। राज्य के मुखिया का माफियाओं को मिट्टी में मिलाने का ऐलान हल्का नहीं था।उमेश पाल की सरेशाम हत्या भी हल्की बात नहीं थी।
क्या माफिया वक्त की नजाकत को पहचानने में धोखा खा गया?या उसकी सभी सत्ताधारियों के बारे में एक जैसी सोच ने भ्रमित कर दिया। डाकुओं, माफियाओं, आतंकवादियों के साथ यही सुलूक किया जाना चाहिए। उन्हें और उनकी राह को सही मानने वाले लोगों
को यह अहसास होना ही चाहिए कि सत्ता सर्वोच्च है और उसे चुनौती देने का परिणाम कल्पनातीत हो सकता है। हालांकि ऐसे लोगों का भ्रमित होना भी जायज है।वे सत्ता के सोपानों पर चढ़कर ही यहां तक पहुंचे थे। इस सबके बावजूद राज्य को प्रतिशोध से बचना
चाहिए। मुठभेड़ के फर्जी या वास्तविक होने की जांच होगी। जांच के परिणाम को लेकर मुझे कोई संदेह नहीं है। इसके बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री जांच की मांग कर रहे हैं। क्या उन्हें जांच पर पूरा भरोसा है? यह एक लाजवाब सवाल है।