मेट्र्रो में डॉक्टरों ने सर्जरी कर निकाली पैन्क्रियाज से गांठ

कई सालों से पेट दर्द एवं उल्टी की समस्या से परेशान एक व्यक्ति को मेट्रो अस्पताल के डॉक्टरों ने नई जिंदगी दी है। कई बड़े शहरों में इलाज कराया लेकिन बीमारी पकड़ में नहीं आई। मरीज करीब एक साल दर्द से पीड़ित थी ।

मेट्र्रो में डॉक्टरों ने सर्जरी कर निकाली पैन्क्रियाज से गांठ

कई सालों से पेट दर्द एवं उल्टी की समस्या से परेशान एक व्यक्ति को मेट्रो अस्पताल के डॉक्टरों ने नई जिंदगी दी है। कई बड़े शहरों में इलाज कराया लेकिन बीमारी पकड़ में नहीं आई।

मरीज करीब एक साल दर्द से पीड़ित थी । वह कई बार अलग अलग सरकारी एवं प्राइवेट अस्पतालों में गयी । कई दिनों से सिर्फ उनकी उलटी और दर्द का इलाज चल रहा था,

कारन का निवारण नहीं हुआ .  फिर कई अस्पतालों में जांच के बाद उनको  को बताया गया कि उनके गाल ब्लैडर में  कैंसर है। इसके  इलाज के लिए उन्हें  रेफर किया गया।

जब मेट्रो हॉस्पिटल में जाँच  की गई तो पता चला कि गाल ब्लैडर नहीं यह पैंक्रियाज(अग्नाशय)  से बड़ा ट्यूमर था । मेट्रो अस्पताल में सीनियर गैस्ट्रो सर्जन डॉ. कुशल  ने बताया कि मरीज पेट में एक बड़ी गांठ लेकर आये थे

, जिसका साइज 18 से 20 सेंटीमीटर था। यह दुनिया की सबसे बड़ी गांठ में से एक है

 .  इतने दिनों से परेशान एवं सही  डायग्नोसिस न होने के कारन ये गांठ की साइज इतनी बड़ा  हो गया  और इसका  सही तरह से निवारण नहीं हो पा रहा था। ।

आगे और  जांच पड़ताल करने के बाद हमें पता चला कि इसका इलाज कीमोथेरेपी, रेडियोथेरैपी इसका इलाज संभव नहीं है। इसका इलाज सिर्फ और सिर्फ सर्जरी से संभव था।

इसलिए सर्जरी का प्लान बनाया था। पैंक्रियाज की सर्जरी पहले से जटिल होती है। ऐसे में इतनी  बड़ी गांठ सर्जरी को और जटिल बना देता है।

लिवर ट्रांसप्लांट और जीआई आन्कोलॉजी की टीम ऑपरेशन में शामिल रही। मरीज के पेट में लिवर की  जो मुख्य नस होती है जो आंतों से लिवर की ओर खून लेकर जाती है, वह इस गांठ के कारण दबी हुई थी।

ऑपरेशन करीब आठ से दस घंटे चला। जिसमें गांठ को  साबुत निकाल दिया गया . जो लिवर की नस थी वह दबने के कारण डैमेज हो रही थी। इसके कारण पोर्टल वेन एक ग्राफ डालकर रिप्लेस करनी पड़ी। यह अपने आप में एक रेयर केस हैं,  जिसमें

पैंक्रियाज की सर्जरी में पूरे पोर्टल वेन को काटकर नया पोर्टल वेन बनाया गया। इनकी लिवर की खून ले जाने की नलकी यानी

पोर्टल वेन को इलाज के दौरान बंद कर नया ग्राफ्ट डाला गया । जितनी  देर लिवर में खून नहीं जाता है,  उतनी देेर लिवर में डैमेज होता रहता है। 15 से 18 मिनट में पूरी पोर्टल वेन काटकर कर नया रिप्लेस किया,

 जिससे लिवर में डैमेज कम से कम हो। ऑपरेशन में मरीज की मौत का खतरा था, लेकिन सर्जिकल गैस्ट्रो इंटरोलाजी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने मरीज की जान बचा ली है।

आठ घंटे के जटिल ऑपरेशन के बाद मरीज को एक नई जिंदगी प्राप्त हुई  ।
 एक सप्ताह बाद पूरी तरह से मरीज स्वस्थ है।

मरीज खाना पीना खाने के साथ चल फिर रहा है। मरीज तेजी से स्वस्थ हुआ है। लांग टर्म की बात करे तो यह जल्द नहीं फैलता।
लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन टीम से डॉ. अंकुर ने बताया कि सर्जरी के बाद तीन  दिन मरीज को आईसीयू में रखा गया। तेजी से स्वस्थ

होने के बाद मरीज को चौथे  दिन से  खाना खिलाना शुरु किया गया।  ऑपरेशन करने वाली टीम में मेट्रो हॉस्पिटल के लिवर

ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर डॉ. अंकुर गर्ग एवं  गैस्ट्रोइंटेस्टिनल  आन्कोलॉजी से डॉ. कुशल बैरोलिया एवं डॉ आदर्श चौहान  शामिल रहे। एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख डॉ सत्येंदर कुमार ने अपनी टीम के साथ मरीज को सुरक्षित रखा