विरोध के अभाव में लोकतंत्र?
किसी मीडिया संस्थान से किसी पत्रकार को निकाला जाना अथवा उसके द्वारा स्वयं निकल जाना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं होती। मैंने कभी रवीश कुमार को पूरी तरह निष्पक्ष पत्रकार स्वीकार नहीं किया।
किसी मीडिया संस्थान से किसी पत्रकार को निकाला जाना अथवा उसके द्वारा स्वयं निकल जाना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं होती। मैंने कभी रवीश कुमार को पूरी तरह निष्पक्ष पत्रकार स्वीकार नहीं किया।
हालांकि किसी भी पत्रकार का निष्पक्ष होना संभव भी नहीं है। इसके विपरीत एक रिपोर्टर से हमेशा निष्पक्ष रहने की अपेक्षा की जाती है। एक पत्रकार और एक रिपोर्टर के बीच यही मूलभूत अंतर है।
एनडीटीवी से रवीश की विदाई का सबसे बुरा प्रभाव यह होगा कि आम टीवी दर्शकों के पास अब चैनल बदलने का विकल्प नहीं रहेगा।अब सभी चैनलों पर प्रकारांतर से एक ही राजनीतिक दल और एक ही सर्वोच्च नेता के कार्यकलापों की चर्चा तथा उनकी प्रशंसा
सुनने को मिलेगी। क्या यह केवल बोरियत पैदा होने जितना कष्टकारी होगा? बोरियत बढ़ने पर मनोरंजन के चैनलों पर शिफ्ट होने का विकल्प अभी भी उपलब्ध होगा। तो फिर रवीश कुमार के न होने का असल प्रभाव क्या होगा?
उत्तर कोरिया में तानाशाह किम जोंग उन ने नागरिकों को रेडियो पर केवल उसके बारे में प्रसारित कार्यक्रम सुनने की स्वतंत्रता दे रखी है।वह घोषित तानाशाह हैं।
भारत में लोकतंत्र है। इसलिए रेडियो है, टीवी है, उनपर हजार चैनल हैं परंतु सभी पर एक ही प्रकार के कार्यक्रम हैं।रवीश निष्पक्ष नहीं थे।उनका सरकार विरोधी होना नागरिकों की बोरियत को नष्ट करता था।
नागरिकों को बोरियत का शिकार नहीं होना चाहिए। इससे सबसे पहले लोकतंत्र को नुक्सान पहुंचता है। मुझे कल दादरी (गौतमबुद्धनगर) के बाजार में एक सोना चांदी के व्यापारी ने कहा,-मैं बाजार की सभी दुकानों को अपनी बनाना चाहता हूं परंतु
इससे तो यहां बाजार ही नहीं बचेगा।' क्या विरोध की आवाज समाप्त होने से लोकतंत्र बचेगा?रवीश की विदाई से इसी प्रश्न का जन्म हुआ है।(साभार:नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)