ऑनलाइन होते-होते ऑफलाइन हुआ ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण
सरकारी कार्यालयों को डिजिटाइजेशन करने की राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में अंतिम सांसें गिन रही है। लगभग साढ़े तीन वर्ष में इस परियोजना पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद अब इसे ऑडिट करने की जिम्मेदारी आईआईटी दिल्ली को दी गई है।
सरकारी कार्यालयों को डिजिटाइजेशन करने की राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में अंतिम सांसें गिन रही है। लगभग साढ़े तीन वर्ष में इस परियोजना पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद अब इसे ऑडिट करने की जिम्मेदारी आईआईटी दिल्ली को दी गई है।
राज्य सरकार के आदेश पर लगभग साढ़े तीन वर्ष पहले ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का समस्त कामकाज ईआरपी(एंटरप्राइज रिसोर्स एंड प्लानिंग) सॉफ्टवेयर के माध्यम से ऑनलाइन करने की मुहिम छेड़ी गई थी। तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी नरेंद्र भूषण के कार्यकाल में यह कार्य करने का ठेका टेक महिंद्रा को दिया गया था।टेक महिंद्रा ने तेजी से प्राधिकरण की फाइलों को स्कैन कर डिजिटल फॉर्म में बदलना शुरू किया। इसके साथ ही फाइलों में आगे किया जाने वाला कार्य भी ऑनलाइन होने लगा। हालांकि यह इस परियोजना का आधा हिस्सा था। दूसरे हिस्से में प्राधिकरण को अपने आवंटियों को घर बैठे सभी सेवाएं
ऑनलाइन प्रदान करनी थीं। परंतु इसी बीच कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार काम न होने और उसके बदले कंपनी को भुगतान न होने के कारण टेक महिंद्रा ने अपनी जिम्मेदारी से भागना शुरू कर दिया।इसी दौरान नरेंद्र भूषण का तबादला हो जाने से स्थिति और बदतर हो गई। उनके बाद अतिरिक्त कार्यभार संभालने वाले दोनों मुख्य कार्यपालक अधिकारियों ने इस दिशा में विशेष ध्यान नहीं दिया।टेक महिंद्रा ने धीरे धीरे अपने यहां नियुक्त टेक्निकल लोगों को हटाना जारी रखा। प्राधिकरण की ओर से आईटी सिस्टम को देखने के लिए नियुक्त अधिकारी भी इस प्रोद्योगिकी से अनजान रहे हैं।अब सूरत-ए-हाल यह है कि प्राधिकरण को डिजिटाइजेशन और ऑनलाइन करने की यह प्रक्रिया लगभग ठप्प हो गई है।
प्राधिकरण एक बार फिर मैनुअल तरीके से काम करने पर लौट आया है। इस समस्या से पार पाने के लिए प्राधिकरण ने आईआईटी दिल्ली की मदद ली है। पिछले सप्ताह आईआईटी दिल्ली को टेक महिंद्रा को दिए गए ठेके, भुगतान और उसके द्वारा किए गए कार्य को ऑडिट करने का ठेका दिया गया है।उसे इस सिस्टम को पुनर्जीवित करने के लिए सुझाव देने को भी कहा गया है।जब तक आईआईटी दिल्ली की टीम किसी नतीजे पर पहुंचेगी तब तक प्राधिकरण का पूरा तंत्र बीच में लटका रह सकता है।