अनास्था की सदी में खाटू आस्था का मेला
वीर प्रसूता राजस्थान की माटी ने यूं तो अपने आंचल में उत्कृष्ट शोर्य परंपरा से जुड़ी अनेको गौरव गाथाओं को समेटा हुआ है किंतु राजस्थान का जिक्र हो और आस्था के प्रमुख केन्द्र खाटू की बात न हो,
वीर प्रसूता राजस्थान की माटी ने यूं तो अपने आंचल में उत्कृष्ट शोर्य परंपरा से जुड़ी अनेको गौरव
गाथाओं को समेटा हुआ है किंतु राजस्थान का जिक्र हो और आस्था के प्रमुख केन्द्र खाटू की बात न हो,
ऐसा तो हो ही नहीं सकता।
विशेषकर मुझ जैसे लाखों भक्तों के लिए जिनका मानना है कि खाटू में
विराजमान बाबा श्याम से अगर एक बार कुछ मांगा तो वो लाखों करोड़ों बार देते है और देते ही रहते हैं।
यही कारण है कि हम भक्त उन्हें लखदातार के नाम से भी पुकारते है। राजस्थान के शेखावाटी के सीकर
जिले में स्थित है परमधाम खाटू। यहाँ विराजित हैं भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार खाटू श्यामजी।
इस मंदिर की विशेष बात यह है कि यहां देवता के केवल सिर की पूजा होती है। यहां की मूर्ति का कोई
धड़ नहीं है। धड़विहीन मूर्ति बाबा श्याम की है जिनकी कहानी महाभारत और स्कंद पुराण से संबंधित है।
श्याम बाबा की महिमा का बखान करने वाले भक्त राजस्थान या भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के
कोने-कोने में मौजूद है। हर वर्ष फाल्गुन के महीने में यहां सबसे ज्यादा भीड़ होती है। फाल्गुन के महीने
अर्थात मार्च में बाबा खाटू श्याम जी का लक्खी मेला लगता है साथ ही बाबा का जन्मदिन भी बहुत
धूमधाम से मनाया जाता है।
इस साल 2024 में बाबा श्याम का यह मेला 11 मार्च से प्रारंभ होगा और
21 मार्च तक इसका समापन होगा। बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से है। ये पांडुपुत्र भीम के
पोते थे। ऐसा कहा जाता है कि खाटू श्याम की शक्तियों और क्षमता से खुश होकर श्री कृष्ण ने इन्हें
कलियुग में अपने नाम से पूजने का वरदान दे डाला था। वनवास के दौरान जब पांडव अपनी जान बचाते
हुए इधर-उधर घूम रहे थे तब भीम का सामना हिडिम्बा से हुआ। हिडिम्बा ने भीम से एक पुत्र घटोत्कच
को जन्म दिया। इसी घटोत्कच और अहिलावती (मोरवी) के सबसे बड़े पुत्र हुए बर्बरीक। उनके अन्य भाई
अंजनपर्व और मेघवर्ण का उल्लेख भी महाभारत में दिया गया है। इन सबों को वीरता और शक्तियों के
लिए जाना जाता था।
बर्बरीक को उनकी माता मोरवी ने यह सीख दी कि सदा ही पराजित पक्ष की तरफ
से युद्ध करना और वे इसी सिद्धांत पर आजीवन अड़े रहे। जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध होना
था तब बर्बरीक ने युद्ध देखने का निर्णेय लिया। श्री कृष्ण ने जब उनसे पूछा कि वो युद्ध में किसकी
तरफ हैं?
तब उन्होंने कहा था कि जो पक्ष हारेगा वो उसकी तरफ से लड़ेंगे। चूंकि श्री कृष्ण युद्ध का
परिणाम जानते थे लिहाजा उन्हें आसंका थी कि बर्बरीक कहीं पांडवों के लिए खतरा ना बन जाए। ऐसे में
कृष्ण जी ने बर्बरीक को रोकने के लिए उनसे दान की मांग की। दान में उन्होंने उनसे उनका शीश मांग
लिया।
दान में बर्बरीक ने उनको शीश तो दे दिया लेकिन आखिर तक उन्होंने अपनी आंखों से युद्ध
देखने की इच्छा जाहिर की। श्री कृष्ण ने इच्छा स्वीकार करते हुए उनका सिर युद्ध स्थान के निकट एक
पहाड़ी पर रख दिया। युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि जीत का श्रेय किसको जाता है तब बर्बरीक कहते
हैं कि श्री कृष्ण की वजह से आप सबों को जीत हासिल हुई है। श्री कृष्ण बर्बरीक के इस बलिदान से
काफी खुश हुए और उन्हें कलियुग में श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया। ऐसा कहा जाता है
कि कलयुग की शुरुआत में राजस्थान के खाटू गांव में उनका सिर मिला था। कहते हैं ये अद्भुत घटना
तब घटी जब वहां खड़ी गाय के थन से अपने आप दूध बहने लगा था। इस चमत्कारिक जगह पर खुदाई
की गई को तो यहां खाटू श्याम जी का सिर मिला। अब लोगों के बीच में ये दुविधा शुरू हो गई कि इस
सिर का किया जाए। बाद में उन्होंने सर्वसम्मति से एक पुजारी को सिर सौंपने का फैसला किया। इसी
बीच क्षेत्र के तत्कालीन शासक रूप सिंह को मंदिर बनवाने का सपना आया और उसी स्थान पर मंदिर
निर्माण शुरू किया गया। मंदिर निर्माण ले पश्चात खाटूश्याम की मूर्ति वहां स्थापित की गई। 1027 में
रूप सिंह द्वारा बनवाए गए मंदिर का पुनर्निर्माण खाटू श्याम के भक्त दीवान अभय सिंह ने 1720 ई. में
किया।
इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के मुताबिक सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर
को नष्ट कर दिया था। मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राण न्योछावर किया
था। इस मंदिर में बाबा श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है जबकि निकट ही स्थित रींगस में
उनके धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है। पिछले साल जून के महीने में मेरा पहली बार खाटू जाना हुआ।
ऐसा लगा मानो बाबा श्याम का बुलावा आया है। मैं दिल्ली से वाया रोड खाटू श्याम गई थी जिसमे 5 से
6 घंटे का समय लग गया था। खाटू श्याम का मंदिर जयपुर से 80 किलोमीटर दूर खाटू गांव में मौजूद
है। खाटू श्याम पहुंचने के लिए सबसे पास का रेलवे स्टेशन रीगस है जहां से बाबा के मंदिर की दूरी
18.5 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन से निकलने के बाद मंदिर के लिए टैक्सी या जीप आसानी से मिल
जाती है। अगर आप फ्लाइट से जा रहे हैं तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है।
यहां से मंदिर की दूरी 95 किलोमीटर है।
भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए प्रशासन द्वारा निजी गाड़ियों
को मंदिर से काफी पहले रोका जा रहा था। हमे दर्शन के लिए कुछ दूर पदयात्रा करनी पड़ी। उसका भी
अपना एक अलग आनंद रहा। हारे का सहारा, कृष्ण के कलयुगी अवतार, लखदातार, शीश के दानी कहे
जाने वाले बाबा खाटू श्यामजी के मंदिर में उनके दर्शन के लिए लंबी लंबी कतारें लगी थी।
हजारों की संख्या में भक्त हाथों में निशान लिए बाबा श्याम के जयकारे लगाते आगे बढ़ रहे थे।