आत्महत्या के बढ़ते मामलों को डॉक्टर भी मानते हैं चिंताजनक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल 8 लाख से अधिक लोग आत्महत्या कर लेते हैं। वहीं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा गत 4 दिसंबर 2023 को जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2022 के दौरान आत्महत्या के 170924 मामले दर्ज किए

आत्महत्या के बढ़ते मामलों को डॉक्टर भी मानते हैं चिंताजनक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल
8 लाख से अधिक लोग आत्महत्या कर लेते हैं।

वहीं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा गत 4 दिसंबर
2023 को जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2022 के दौरान आत्महत्या के 170924 मामले दर्ज किए
गए। अपने आप को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों की संख्या आत्महत्या करने वालों की संख्या से कई
गुना ज्यादा है।

आत्महत्या करने वाले और खुद को नुकसान पहुंचाने वाले मामलों को काफी हद तक
टाला जा सकता है यदि एसी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों की समय पर पहचान हो जाए और उनको आवश्यक
सलाह, मार्गदर्शन व चिकित्सा मिल जाए। खुद को नुकसान पहुँचाना एक गंभीर समस्या बनती जा रही है


और यह समस्या किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है। आत्म-घात की प्रवृत्ति महिलाओं
तथा किशोरों में अधिक देखने को मिलती है। खुद को चोट पहुंचाने वाले व्यक्तियों, उनके परिवारों व
सामाजिक तथा स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े कार्यकर्ताओं और संगठनों को आत्म-घात से जुड़े मुद्दों के बारे में
जागरूक व शिक्षित करने के उद्देश्य से हर साल 1 मार्च को आत्म-घात जागरूकता दिवस मनाया जाता
है।

सेल्फ इंजरी अवेयरनेस डे को मनाने का उद्देश्य है खुद को नुकसान पहुंचाने से बचाव के बारे में
जागरूकता बढ़ाना और इस समस्या से जूझ रहे लोगों को सहायता प्रदान करना। इसके लक्षणों और
संकेतों को समझने में मदद करने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। इससे
यह समझने में मदद मिलती है कि आत्म-घात एक मानसिक समस्या है और इसके लिए मदद लेना
ज़रूरी है।

इससे आत्म-घात की प्रवृत्ति से पीड़ित लोगों मदद लेने के प्रोत्साहित होते हैं। इससे एसे लोगों
को यह महसूस होता है कि वे अकेले नहीं हैं और उनके लिए मदद उपलब्ध है। इससे आत्महत्या को
रोकने में भी मदद मिलती है।

मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत सहायता समूह आत्म-घात की प्रवृत्ति
से जूझ रहे लोगों को समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं। 1800 के दशक में फ्रांसीसी मनोचिकित्सक
फिलिप पिनेल ने पहली बार आत्म-घात के कुछ मामले दर्ज किये थे। वहीं 20वीं शताब्दी की शुरुआत में
आत्म-घात मानसिक बीमारी के लक्षणों में से एक माना गया। इसके बाद इस बीमारी का विस्तार


सेअध्ययन किया गया। इस दौरान 1995 में स्व-विकृति पर पहला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया
गया। 1997 में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर द स्टडी ऑफ सेल्फ-इंजरी की स्थापना की गई। इसके बाद
2001 में पहला आत्म-घात जागरूकता दिवस मनाया गया और 2003 में यह दिवस एक अंतरराष्ट्रीय
कार्यक्रम के रूप में घोषित किया गया। तब से लेकर हर साल 1 मार्च को दुनियाभर में यह दिवस
मनाया जाता है।

यह दिवस आत्म-घात से पीड़ित लोगों को यह महसूस कराता है कि वे अकेले नहीं हैं
और उनके लिए मदद उपलब्ध है। ऐसे रोगियों को यह समझने की आवश्यकता है कि आत्महत्या कभी
भी समाधान नहीं है।


खुद को नुकसान पहुंचाने के कुछ लक्षण हैं-
शरीर पर चोट, जलने या खरोंच के निशान,
अकेले रहने की प्रवृत्ति,
अवसाद या चिंता के लक्षण।

यदि ऐसे लक्षण किसी व्यक्ति में दिखाई दें तो उसे शीघ्रातिशीघ्र सहायता, सलाह, मार्गदर्शन व चिकित्सा
उपलब्ध करानी चाहिए।


आयुर्वेद मतानुसार आत्मघात की प्रवृत्ति ऐसे व्यक्तियों में मिलती है जिनमें आत्मबल की कमी हो। ऐसे
मामलों में अश्वगंधा, शतावरी, कौंच, ब्राह्मी, आंवला जैसी जड़ी बूटियों से बनी आयुर्वेदिक दवाएं प्रभावी हैं
क्योंकि ये दवाइयां सेरोटोनिन और डोपामिन जैसे हार्मोन्स के स्राव को बढ़ाती हैं जिससे व्यक्ति के
आत्मविश्वास और मानसिक बल में वृद्धि होती है और जीवन के प्रति उसके नजरिये में सकारात्मकता
उत्पन्न होती है। योग, प्राणायाम, मैडिटेशन, पूजा, अर्चना, सत्संग और काउंसलिंग से भी रोगी की
मानसिक दशा में सुधार होता है।