इतिहास का इतिहास
मुझे अपना और दुनिया का इतिहास जानने में बहुत दिलचस्पी रही है। हालांकि यह दिलचस्पी इतिहास को गहरे तक जाकर जानने और उसका मूल्यांकन करने की नहीं थी।
राजेश बैरागी-
मुझे अपना और दुनिया का इतिहास जानने में बहुत दिलचस्पी रही है। हालांकि यह दिलचस्पी इतिहास को गहरे तक जाकर जानने और उसका मूल्यांकन करने की नहीं थी।
इतिहास की भयानक और रोचक घटनाओं को जान लेना ही इतिहास नहीं होता। यह किस्सा कहानियां पढ़ने जैसा है। भारत में स्वस्थ या मानक आधारित इतिहास लेखन की परंपरा नहीं रही है।
ग्यारहवीं शताब्दी में भारत आए फारसी इतिहासकार अल बरूनी ने कहा, भारतीयों को इतिहास लिखना नहीं आता। उनसे इतिहास के बारे में पूछने पर वे कहानी सुनाने लगते हैं।
' आम भारतीय इतिहास की इसी परंपरा के साथ बड़ा होता है। विद्यालयों में प्रारंभ से
इतिहास की छोटी छोटी कहानियों से छात्रों को परिचित कराया जाता है। दसवीं बारहवीं तक यही चलता है। उसके बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की संख्या बहुत कम हो जाती है।
जो आगे पढ़ते हैं और जो पीछे छूट जाते हैं उनमें बहुत फासले बन जाते हैं। एनसीआरटी की पुस्तकों के पुनर्लेखन में इतिहास और समाजशास्त्र जैसे विषयों में मुगलों और कांग्रेस के इतिहास को सीमित कर देने से क्या हासिल होगा? क्या इससे भविष्य के
नागरिकों को उनके इतिहास को जानने के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा? तमाम राजनीतिक दल और कतिपय शिक्षाविद ऐसे ही आरोप लगा रहे हैं। प्रखर राष्ट्रवाद के हिमायती स्वयं को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करने के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ करते हैं।
परंतु भारत तो इतिहास को सही रूप में प्रस्तुत न करने के लिए बदनाम है ही। पहले वालों ने अपने माफिक इतिहास लिखवाया,
बाद वाले अपने अनुसार इतिहास को तय कर रहे हैं। तो असल इतिहास को कैसे जाना जा सकता है? यह प्रश्न अल बरूनी भी हल नहीं कर सका था।