ग्लोबल वॉर्मिंग का स्थायी समाधान
आप लोग यह बताएं कि दुनिया भर के बुद्धिजीवियों का अपर चैंबर खाली है क्या? अगर खाली नहीं होता, तो इतनी मामूली-सी बात को लेकर पेरिस में काहे मगजमारी करते। फोकट में अपनी-अपनी सरकारों का इत्ता रुपया- पैसा और टाइम खोटा किया।
आप लोग यह बताएं कि दुनिया भर के बुद्धिजीवियों का अपर चैंबर खाली है क्या? अगर खाली नहीं होता, तो
इतनी मामूली-सी बात को लेकर पेरिस में काहे मगजमारी करते।
फोकट में अपनी-अपनी सरकारों का इत्ता रुपया-
पैसा और टाइम खोटा किया। पेरिस के निवासियों को परेशान किया सो अलग। वह भी ग्लोबल वॉर्मिंग के नाम पर।
अरे भाई! ग्लोबल-फ्लोबल वॉर्मिंग समस्या का समाधान वहां नहीं है, जहां आप ढूंढ रहे हैं।
यहां है.. हमारे देश भारत
में। जिंदगी भर दुनिया भर में घूम-घूमकर बैठकें करो, समिट करो, सेमिनार करो, लेकिन समस्या का हल मिलेगा,
तो सिर्फ भारत में। भारत ऐसे ही विश्व गुरु थोड़े न कहा जाता है।
हमारे देश का ज्ञान-विज्ञान हर युग में पूरी
दुनिया में सबसे आगे और उन्नत रहा है। जब सारी दुनिया कच्छा पहनने को तरस रही थी, तब हमारे देश के
बच्चे मंगल, बुध और बृहस्पति पर जाकर कबड्डी खेला करते थे।
शुक्र ग्रह पर उडने वाली पतंगों को लूटने के लिए
नेप्चूयन और शुक्र ग्रह तक जाना पड़ता था। तो कहने का लब्बोलुआब यह है कि हर समस्या का समाधान हमारे
देश में मौजूद है।
समस्या कोई भी हो, चुटकी बजाते हल खोजने में माहिर अगर कोई है, हम ही लोग हैं। पूरी
दुनिया कोई भी आविष्कार कर ले, लेकिन हमारे एक आविष्कार के आगे बेकार..।
हमारे यहां जब से जुगाड़ का
आविष्कार हुआ है, तब से दुनिया के सारे आविष्कार उसके आगे फेल हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग पर हमारे देश के ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले जुगाड़ खोज निकाला था। वह था मौन। मियां-
बीवी का मौन।
वे इस बात को अच्छी तरह से समझ गए थे कि जब भी मियां-बीवी आपस में संवाद करेंगे, ग्लोबल
वॉर्मिंग की समस्या पैदा होगी।
तब वे ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए कभी कभी मियां-बीवी संवाद पर रोक लगा
देते थे।
आज अगर समस्या ज्यादा बड़ी लग रही है, तो दस साल तक पूरी दुनिया में पति-पत्नी संवाद पर प्रतिबंध
लगा दीजिए। फिर देखिए, ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या छूमंतर हो जाती है कि नहीं।
यह भारत का सदियों पुराना
आजमाया हुआ नुस्खा है। इसकी प्रामाणिकता और सत्यता को कोई चुनौती नहीं दे सकता है।
हमारे एक प्राचीन ग्रंथ में तो साफ-साफ लिखा है कि मोटरगाडियों, वातानुकूलन यंत्र (एसी), कल-कारखानों से
निकलने वाले धुएं और दूसरे जीवाश्म को जलाने से उतना ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्र्जन नहीं होता है, जितना
पति-पत्नी संवाद के समय हानिकारक गैसे का उत्सर्जन होता है। इस पृथ्वी पर अगर पति-पत्नी पुल वॉल्यूम पर
एक दूसरे पर चीख-चिल्ला रहे हों, तो उस समय 22 वातानुकूलन यंत्र, 38 चारपहिया वाहन और 4 कल-कारखानों
जितनी कार्बन डाई आक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है। अगर पत्नी पति के देर से घर आने के चलते चीखती-
चिल्लाती है, तो सवा टन कार्बन डाई आक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है। अगर पति अड़ोस-पड़ोस की महिलाओं से
नैन-मटक्का करता है, तो ढाई टन कार्बन डाई आक्साइड गैस उत्सर्जित होती है। अगर पति बेवफा निकल जाए, तो
ग्रीन हाउस गैसों के साथ-साथ चिमटा, बेलन, कप-प्लेट, बर्तन आदि प्रक्षेपित होने लगते हैं और घर का वातावरण
गरम हो जाने से हीलियम, मीथेन, पराबैगनी किरणों का भी उत्सर्जन होने लगता है। पत्नी के दिमाग का पारा
जिस अनुपात में बढ़ा होता है, कार्बन डाईआक्साइड के भारी उत्सर्जन के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण की मात्रा में भी
अभिवृद्धि होने लगती है।
दस साल तक पति-पत्नी संवाद पर कठोर प्रतिबंध के बावजूद यदि ग्लोबल वॉर्मिंग में अपेक्षित सुधार कि इससे
बात नहीं बनने वाली, तो पति-पत्नी संवाद के साथ-साथ सास-बहू, देवरानी-जिठानी, ननद-भौजाई संवाद पर भी
प्रतिबंध लगा दो। फिर देखो कमाल। खट से पृथ्वी ठंडी होती है कि नहीं। आपको अगर इस बात पर विश्वास नहीं
है, तो हमारे यहां का प्राकृत, पालि या संस्कृत साहित्य उठाकर देख लो, सैकड़ों श्लोक मिल जाएंगे जिनका
निहितार्थ यह है कि सप्ताह में कम से कम छह दिन प्रत्येक दंपती को मौन व्रत रखना चाहिए। पति-पत्नी संवाद
पर प्रतिबंध लगाकर न केवल घर के वातावरण को गर्म होने से रोका जा सकता है, बल्कि पूरी पृथ्वी को गर्म होने
से बचाया जा सकता है।