धर्मयात्रा महासंघ काशीपुर ने मनाई सावरकर जयंती
मुख्य वक्ता श्री सतीश चन्द्र मदान ( राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय हिन्दू महासभा) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सावरकर एक उत्कृष्ट राष्ट्रवादी चिंतन और मां भारती की सतत साधना का नाम है। उन्होंने कहा कि सावरकर का स्मरण आते ही भारत की चिरंतन साधना साकार रूप लेती हुई दिखाई देती है।
काशीपुर ( विशेष संवाददाता) माँ भारती के सच्चे सपूत और महान क्रांतिकारी "स्वातंत्रवीर विनायक दामोदर सावरकर "
की पुण्य स्मृति में यहां स्थित रामलीला मैदान में विशाल एकत्रीकरण सभा का आयोजन किया गया । जिसमें
मुख्य वक्ता श्री सतीश चन्द्र मदान ( राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय हिन्दू महासभा) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सावरकर एक उत्कृष्ट राष्ट्रवादी चिंतन और मां भारती की सतत साधना का नाम है। उन्होंने कहा कि सावरकर का स्मरण आते ही
भारत की चिरंतन साधना साकार रूप लेती हुई दिखाई देती है। जिन्होंने भारत माता को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अनेक प्रकार के कष्ट सहे।
उन्होंने कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और क्रांति के माध्यम से देश को आजाद कराने की बात की और मुस्लिम लीग सहित प्रत्येक उस व्यक्ति या संगठन का तीखा विरोध किया
जिसने भी भारत विभाजन का समर्थन किया या किसी भी प्रकार से देश विरोधी शक्तियों को मजबूत करने का काम किया।
हिंदूवादी नेता ने कहा कि सावरकर राष्ट्र के संदर्भ में हमेशा स्पष्टवादी दृष्टिकोण अपनाकर चले। उन्होंने राजनीति का हिंदूकरण
और हिंदुओं का सैनिकीकरण करने पर बल दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि धर्मांतरण से मर्मांतरण और मर्मांतरण से राष्ट्रांतरण की प्रक्रिया पूर्ण होती है।
इसलिए धर्मांतरण जैसी देशविघातक मनोवृति पर रोक लगनी चाहिए। सावरकर मुस्लिम तुष्टीकरण और छद्म धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विरोधी थे।
इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहे भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता और सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने सावरकर जी के इतिहास दर्शन पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सावरकर जी पहले
व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 की क्रांति को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम घोषित किया था। उन्होंने शस्त्र और शास्त्र के उचित समन्वय को लागू करने पर बल दिया
और भारत की सोई हुई युवा शक्ति को जागृत पर ब्रिटिश साम्राज्य को भारत से उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ आर्य ने कहा कि सावरकर जी का इतिहास दर्शन वीरता और गौरव का बोध कराता है। 712 में आए मोहम्मद बिन कासिम से लेकर 1947 तक के प्रत्येक विदेशी आक्रमणकारी विदेशी शासक की हिंदूविरोधी नीतियों का पर्दाफाश किया ।
वह कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के विरोधी थे। गांधीजी औरंगजेब को अपना आदर्श मानते थे, और कहते थे कि जब आजादी मिलेगी तो हम मुस्लिमों की शरीयत को लागू कर आएंगे। जबकि सावरकर इस प्रकार की राष्ट्र विरोधी मानसिकता के
विरोधी थे। उन्होंने मोपला कांड में गांधी की संलिप्तता और उनकी नीतियों का विरोध किया और उसका पर्दाफाश किया। देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके साथियों के प्रति गांधी की सोच को भी उन्होंने कभी उचित नहीं माना । श्रद्धानंद जी के
हत्यारे को गांधी जी के द्वारा भाई कहने पर उनकी तीखी आलोचना की। उन्होंने नेहरू को भी 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के
समय शिक्षा दी थी कि हमें बुद्ध की नहीं जिंदगी आवश्यकता है। उन्होंने गांधीजी से भी कई अवसरों पर कहा था कि भारत को सत्याग्रह की नहीं शस्त्राग्रह की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे विजय कुमार जिन्दल (पूर्व अध्यक्ष के.जी.सी.सी.आई.) और कार्यक्रम अध्यक्ष श्री गोपाल कृष्ण अग्रवाल ( सी.एम. डी. एग्रोन रेमिडीज प्राइवेट लिमिटेड, काशीपुर) , पूर्व विधायक श्री हरभजन सिंह चीमा ने भी
अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ अधिवक्ता और सावरकरवादी विचारधारा से
ओतप्रोत श्री शरत चंद्र कश्यप एडवोकेट द्वारा किया गया। जिन्होंने क्रांतिकारी सावरकर जी के जीवन पर प्रकाश डाला और अपना बीज भाषण प्रस्तुत किया।