बिहार में शराबबंदी के पेंच
भारत ही नहीं समूचे विश्व में शराब और नशे की लत बढ़ती जा रही है। शराब और दूसरे नशा न सिर्फ स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है बल्कि देश और समाज के लिए भी हर तरीके से नुकसानदेह हैं।
भारत ही नहीं समूचे विश्व में शराब और नशे की लत बढ़ती जा रही है। शराब और दूसरे नशा न
सिर्फ स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है बल्कि देश और समाज के लिए भी हर तरीके से नुकसानदेह हैं।
शराब और नशा का क्या दुष्परिणाम होता है यह हम पंजाब को देख कर समझ सकते हैं। एक
अध्ययन के मुताबिक 2000 के दशक में शराब की लत में काफी बढ़ोतरी हुई। आज हर आठ में से
एक व्यक्ति में शराब की लत पाई जा रही है। शराब ने न सिर्फ भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर अपना
असर दिखाना शुरू कर दिया है। चिकित्सकों और समाजविज्ञानियों का दावा है कि दुनिया में 14
करोड़ लोग अवसाद से प्रभावित हैं और वे शराब की वजह से होने वाली बीमारियों से जूझ रहे हैं।
आज पूरी दुनिया में हेपेटाइटिस और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां बढ़ती जा रही है। भारत जैसे
विकासशील देश ही नहीं विकसित अमेरिका और यूरोपीय देश भी इसकी चपेट में हैं। यह बात सही है
कि किसी बीमारी का कोई एक कारण नहीं होता है कई चीजों के एक होने से कोई बीमारी होती है।
लेकिन कुछ मूल कारण होते हैं जिससे ये रोग जन्मते हैं। कैंसर के मूल में जहां तंबाकू बीड़ी सिगरेट
और गुटखा का सेवन है वहीं लीवर संबंधी बीमारियों का कारण मद्धपान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन
के आकड़ों के अनुसार अल्कोहल की बढ़ती खपत सिर्फ रोग ही नहीं बल्कि कई अन्य समस्याओं का
भी कारण है। शराब की वजह से दो सौ प्रकार के रोग होते हैं तो शराब पीकर वाहन चलाने से
वैश्विक स्तर पर दुर्घटनाओं में मौतों की बाढ़ आ गई है। शराब के नशे में धुत होकर हत्याबलात्कार
और लूट की घटनाओं को हम दिन-प्रतिदन देख-सुन रहे हैं।
शराब पीने वालों में हम भारतीय भी पीछे नहीं हैं। एक आंकड़े के मुताबिक आज भारत के कुल
वयस्क लोगों का तीस प्रतिशत शराब पी रहा है जो 2030 तक पचास फीसदी होने का अनुमान है।
और एक दूसरे आंकड़े के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लीवर के 10 लाख नए मरीज आ रहे हैं। ऐसे में
सिर्फ इलाज के दम पर लीवर को ठीक नहीं किया जा सकता है।
नशा को भारतीय समाज में कभी भी अच्छा नहीं माना गया। हमारे देश के महापुरुषों ने समय-समय
पर शराब और नशा के खिलाफ जागरुकता अभियान चलाया। महर्षि दयानंद से लेकर अधिकांश
समाज सुधारकों ने शराब और नशा को धर्म जीवन औऱ समाज के लिए अनुपयोगी बताया। यहां तक
की आजादी की लड़ाई में शराबबंदी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक
महत्वपूर्ण काम था।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शराब के बहुत ज्यादा खिलाफ थे। बापू कहते थे कि अंग्रेजों का देश से जाना
जितना जरूरी है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण देश में पूर्ण शराबबंदी है। गांधी जी कहा करते थे यदि
मुझे 48 घंटे की भी हुकूमत दे दी जाए तो मैं एक साथ बिना मुआवजा दिए शराब की सारी दुकाने
बंद करा दूंगा। उनका कहना था कि शराब शरीर और आत्मा दोनों को मार देती है। देश की आजादी
के पहले कांग्रेस पार्टी का जो सदस्यता फॉर्म भरा जाता था उसमें शराब का सेवन न करने का प्रण
लेना पड़ता था। उस दौरान व्यक्तिगत तौर पर कोई कांग्रेस नेता भले ही शराब का सेवन करता रहा
होलेकिन वह शराब के पक्ष में नहीं था। 1956 में संसद के दोनों सदनों में पूर्ण शराबबंदी पर बहस
हुई। देश में शराबबंदी की मांग को लेकर जस्टिस टेकचंद के नेतृत्व में एक कमेटी बनी। लेकिन आज
तक शराबबंदी नहीं हो सकी।
शराबबंदी के पीछे सरकार का राजस्व कम होने का डर कम सरकार में बैठे आबकारी लॉबी और उसके
समर्थक विधायक-सांसदों का निजी घाटा है। यह देश के राजनीति का नैतिक पतन नहीं तो औऱ क्या
है? हर दल के ढेर सारे सांसद- विधायक शराब व्यवसाय से जुड़े हैं और शराब माफियाओं से चंदा
और मदद लेते हैं। राजनातिक पार्टियों को भी शराब माफियाओं से चंदा मिलता है।
अफसोस की बात यह है कि आज तक देश में कोई भी सरकार शराबबंदी पर गंभीर नहीं रही। सांसद-
विधायक-मंत्री जिस संविधान की शपथ लेते हैं उसके धारा-47 में बहुत साफ लिखा है कि नशीले
पदार्थों पर रोकथाम सरकार की जिम्मेदारी है। संविधान की धारा 51 (ए) में भी कहा गया है कि
आजादी की लड़ाई के जो मूल्य हैं उसे हमें संरक्षित करना है।
हमारी आजादी की लड़ाई गांधी जी के
नेतृत्व में लड़ी गई। गांधी के आंदोलन का एक बहुत बड़ा हिस्सा शराबबंदी थी।
बिहार में पूर्ण शराबबंदी अप्रैल 2016 में लागू कर दी गई थी लेकिन इसके बावजूद जहरीली शराब से
मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। सख्ती के बाद भी यह धंधा पूरी तरह बंद नहीं हुआ है।
शराबबंदी के बावजूद बिहार में शराब उपलब्ध है। यह बात दीगर है कि लोगों को दो या तीन गुनी
कीमत चुकानी पड़ती है चाहे शराब देशी हो या विदेशी। बिहार में शराब के सेवन पर रोक हैइसके
दुष्परिणाम को बताने में समाजसेवी और अन्य लोग विफल रहे हैं। समाजसेवियों की पकड समाज से
कम होती जा रही है।
सरकार के लाख दावों के बाद भी समय-समय पर शराब की जब्ती व शराब के साथ गिरफ्तारियां
इसके प्रमाण हैं। सरकारी तंत्र भी इस धंधे में अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है।
वैसे नीतीश कुमार के निर्णय के कारण ही राज्य में पंचायत स्तर तक शराब की दुकानें खुल गई थीं।
यही वजह रही कि 2005 से 2015 के बीच बिहार में शराब दुकानों की संख्या दोगुनी हो गई थी।
शराबबंदी से पहले बिहार में शराब की करीब छह हजार दुकानें थीं और सरकार को इससे करीब डेढ़
हजार करोड़ रुपये का राजस्वआता था।
अप्रैल2016 को बिहार देश का ऐसा पांचवां राज्य बन गया
जहां शराब के सेवन और जमा करने पर प्रतिबंध लग गया।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (एनएफएचएस) – 2020 की रिपोर्ट के अनुसार ‘ड्राई स्टेट’ होने के
बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 15.5
प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं। महाराष्ट्र में शराब प्रतिबंधित नहीं है लेकिन वहां शराब पीने
वाले पुरुषों की तादाद 13.9 फीसदी ही है।
अगर शहर और गांव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 15.8 प्रतिशत और शहरी
इलाकों में 14 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं।
बिहार में झारखंड पश्चिम बंगाल उत्तरप्रदेश एवं नेपाल से
शराब की बड़ी खेप तस्करी कर लाई जाती है।
दरअसल शराब व्यापारियों के सिंडिकेट को सरकार तोड़ नहीं पा रही है। आज तक किसी बड़ी मछली
को नहीं पकड़ा जा सका है। पकड़े गए अधिकतर लोग या तो शराब पीने वाले हैं या फिर इसे लाने के
लिए ‘कैरियर’ का काम करने वाले हैं। जहरीली शराब से हुई मौत का सबसे ताजा मामला सारण का
है।यहां जहरीली शराब पीने से 53 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है। भागलपुर में 80 के दशक में
ल्गभग पचास लोंगों की मौत जहरीली शराब से हुई थी।उसके बाद राज्य में शराबबंदी के बाद शराब
पीने से एक साथ इतनी ज्यादा लोगों की मौत की संभवत बिहार की पहली घटना है। छपरा के
सिविल सर्जन-सह-चिकित्सा अधिकारी प्रभारी डॉक्टर सागर दुलाल सिन्हा के मुताबिक ‘ज्यादातर लोगों
की मौत जिला मुख्यालय छपरा में स्थित अस्पताल में हुई है।इससे पूर्व बिहार के गोपालगंज में जहां
जहरीली शराब पीने से चार लोगों की मौत हो गई।इससे पहले मुजफ्फरपुर में शराब से 8 लोगों की
मौत हो गई।
मुजफ्फरपुर के मनियार स्थित विशनपुर गिद्दा में जहरीली शराब से दो और ग्रामीणों
की मौत हो गई थी।
हाल फिलहाल 20 अलग-अलग घटनाओं में जहरीली शराब से करीब डेढ सौ
लोगों की मौत हो चुकी है।
बिहार में शराबबंदी के बावजूद शराब पीने से हो रही मौतों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है
कि 2015 में महिलाओं की मांग पर हमने 2016 में शराबबंदी लागू की। इसको लेकर हम लोगों ने
वचन दिया विधानसभा और विधान परिषद में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ। सबने शराब नहीं
पीने का संकल्प लिया। जितने सरकारी अधिकारी कर्मचारी हैं सभी लोगों ने इसका संकल्प लिया
इसके लिये निरंतर अभियान चलता रहता है। जो गड़बड़ करते हैं वे पकड़ाते भी हैं। पुलिस-प्रशासन
का जो काम है वो हर तरह से अपना काम करते रहते हैं।
हालांकि शराब का अवैध कारोबार करने वालों ने समानांतर अर्थव्यवस्था कायम कर ली है। एक शराब
दुकान में काम करने वाले मुलाजिम राजकुमार की बात से इसे समझा जा सकता है। वह कहते हैं
‘‘अब मेरी आर्थिक स्थिति ठीक हो गई है। मैं एक हफ्ते में किसी भी ब्रांड की 50 बोतलें बेचता हूं
और एक बोतल पर 300 रुपये की कमाई करता हूं। बिहार में 50 हजार करोड़ की शराब की खपत
होती है बड़े माफिया पुलिस-पदाधिकारी शराबबंदी के बाद माला-माल हो रहे हैं। शराब का व्यापार खूब
फल-फूल रहा है।