डिजिटल माध्यमों से चुनाव प्रचार में चुनौतियां ही चुनौतियां

इस बीच, भारतीय निर्वाचन आयोग ने कोविड महामारी के कारण चुनावी रैलियों पर रोक लगा कर उम्मीदवारों की मुसीबत बढ़ा दी है। वैसे तो रैलियों और नुक्कड़ सभाओं पर यह रोक 15 जनवरी तक ही है, लेकिन समीक्षा करने के बाद यदि जरूरी लगा तो यह पाबंदी और अधिक समय तक के लिए बढ़ायी जा सकती है

डिजिटल माध्यमों से चुनाव प्रचार में चुनौतियां ही चुनौतियां

टॉकिंग पॉइंट्स 

डिजिटल माध्यमों से चुनाव प्रचार में चुनौतियां ही चुनौतियां

नरविजय यादव

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और चुनाव प्रचार का मौसम चल रहा है। इस बीच, भारतीय निर्वाचन आयोग ने कोविड महामारी के कारण चुनावी रैलियों पर रोक लगा कर उम्मीदवारों की मुसीबत बढ़ा दी है। वैसे तो रैलियों और नुक्कड़ सभाओं पर यह रोक 15 जनवरी तक ही है, लेकिन समीक्षा करने के बाद यदि जरूरी लगा तो यह पाबंदी और अधिक समय तक के लिए बढ़ायी जा सकती है। राजनीतिक दलों के अपने अपने सोशल मीडिया वॉर रूम होते हैं जहां बैठे पेशेवर युवा फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब आदि सोशल मीडिया पर जोर शोर से अभियान चलाते हैं। वहां तक तो ठीक है, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उम्मीदवारों को इस मामले में कई तरह की व्यावहारिक दिक्कतें आती हैं। अनेक नेता ऐसे हैं जिन्हें खुद न तो सोशल मीडिया चलाना आता है और न ही डिजिटल माध्यमों की खास जानकारी है। इस नाते वे पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर रहते हैं, जबकि रैलियों और भाषणों के मामले में एकदम शेर बने रहते हैं और धाक जमा लेते हैं। इसके अलावा, जनता में भी यही हालत है।

 

उम्रदराज लोग सोशल मीडिया या डिजिटल माध्यमों से वाकिफ नहीं हैं, न ही वे इसे पसंद करते हैं। ऐसे वोटरों को रिझाना या उन तक अपनी बात पहुंचाना राजनीतिक नेताओं और उम्मीदवारों के लिए एक बड़ी समस्या है। उत्तराखंड में तो एक और मुसीबत है – वहां कई इलाके ऐसे हैं जहां मोबाइल के सिगनल ही नहीं पहुंचते। इसके अलावा बहुत सारी जनता ऐसी है जिसके पास एंड्रॉयड फोन नहीं हैं, तो उन तक कैसे पहुंचा जाये यह एक बड़ी चुनौती है उम्मीदवारों के सामने। एक बात तो है कि युवाओं को डिजिटल चुनाव प्रचार से काफी हद तक प्रभावित किया जा सकता है, लेकिन बड़ी उम्र के और अनपढ़ लोगों को समझाना मुश्किल है। उनके लिए तो आमने सामने की मीटिंग या सभा में खड़े होकर भाषण देने से ही बात बनती है। कुछ नेताओं का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में और कस्बों व छोटे शहरों में डिजिटल चुनाव प्रचार चुनौती साबित हो रहा है। विधानसभा के चुनाव गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में होने हैं।

डिजिटल माध्यमों से किसी भी व्यक्ति, उत्पाद या ब्रांड के प्रचार प्रसार के लिए सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर बड़े काम के होते हैं। आज की तारीख में कई इनफ्लुएंसर तो इतने प्रभावकारी हो गये हैं कि उनके सामने फिल्मी हस्तियां या सेलेब्रिटी सितारे भी फीके साबित होते हैं। कंपनियां अपने ब्रांड को आगे बढ़ाने के लिए कम फॉलोवर वाले किंतु असरदार इनफ्लुएंसरों को भी खूब पसंद करती हैं, क्योंकि अपने अपने क्षेत्र में उनकी बात सुनी जाती है और उन पर विश्वास करके वैसा ही करते हैं जैसा ये इनफ्लुएंसर कहते हैं। इनफ्लुएंसर मार्केटिंग फैक्ट्री के अनुसार, विश्व में करीब 5 करोड़ ऑनलाइन क्रिएटर हैं। ऑनलाइन क्रिएटर्स में बच्चे, किशोर और युवा बड़ी संख्या में मौजूद हैं। अधिक वर्ष 2021 में क्रिएटर बाजार की वैल्यू 7.44 लाख करोड़ से अधिक थी। क्रिएटर्स की यह फौज खास कर पिछले दस वर्ष में अस्तित्व में आयी है। साल 2021 में ट्विच की शुरुआत हुई तभी क्रिएटर इकोनॉमी की नींव पड़ी। ऑनली फैन्स, ट्विच, पैट्रिऑन और सबस्टेक जैसे प्लेटफार्म क्रिएटर्स को सब्सक्रिप्शन मॉडल से कमाई का मौका देते हैं, साथ ही उनसे कमाई में से 10 से 50 प्रतिशत तक कमीशन लेते हैं। 

नरविजय यादव वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं। 

ईमेल: narvijayindia@gmail.com