तलवार की धार के नीचे और ऊपर
हालांकि किसी अधिकारी को यह कहते हुए कभी नहीं सुना गया कि वह निलंबित होने से नहीं डरता। इसके बजाय वह नौकरी को लात मारने का साहस होने का दावा करता रहता है।
-राजेश बैरागी-_
कुछ दरोगाओं के तबादले, किसी थानाध्यक्ष का निलंबन सरकारी राजकाज में कोई खास महत्व नहीं रखता। किसी राजनीतिक व्यक्ति से टकराव होने पर अमूमन सरकारी अधिकारी यही कहता है,- मैं अपना बिस्तर बांध कर रखता हूं।'
हालांकि किसी अधिकारी को यह कहते हुए कभी नहीं सुना गया कि वह निलंबित होने से नहीं डरता। इसके बजाय वह नौकरी को लात मारने का साहस होने का दावा करता रहता है।
निलंबन दरअसल नौकरी की सबसे अपमानजनक अवस्था है। इस दौरान कर्मचारी या अधिकारी सेवा में रहते हुए भी सेवा में नहीं रहता।निलंबन की अवधि अनिश्चित होती है।
कई बार निलंबन से बाहर आने के लिए सरकार बदल जाने की मन्नत मांगने की नौबत आ जाती है। निलंबित व्यक्ति का आमतौर पर कोई साथ नहीं देता। सेवा काल का यह वह दौर होता है जब रणक्षेत्रे धरमक्षेत्रे व्यक्ति अकेला खड़ा रह जाता है।
कुछ अच्छे भाग्य और ऊंची पहुंच वाले लोग निलंबन की आपदा को अवसर में बदल कर यथाशीघ्र वापसी कर लेते हैं और दोगुनी शक्ति से सिंहासनारूढ़ हो जाते हैं। बात दरोगाओं के तबादले और थानाध्यक्षों के निलंबन से प्रारंभ हुई थी।
थानाध्यक्ष ऐसा पद है जिसपर विराजमान शख्स अत्यंत शक्तिशाली होता है। निलंबन से उसका घोर पतन हो जाता है। किसी गंभीर आरोप के अभाव में थानाध्यक्ष आमतौर पर कार्य में शिथिलता और अपराध की रोकथाम में विफल रहने के आरोप में निलंबित किए जाते हैं।
एक समय गौतमबुद्धनगर के पुलिस कप्तान ने नोएडा थाना फेज दो के प्रभारी को ऐसे ही आरोप में निलंबित कर दिया था।तब यह चर्चा थी कि कप्तान साहब की पत्नी की नाराज़गी थाना प्रभारी को भारी पड़ी।
अधिकांश थानाध्यक्ष ऐसी ही किसी की नाराज़गी का शिकार हो जाते हैं। इसीलिए उनका अधिकांश समय नाराज होने वाले गॉडफादर या कहीं कहीं गॉडमदर को साधने में ही बीतता है।
फिर भी उनसे अपराध पर नियंत्रण की अपेक्षा करना क्या उनके साथ ज्यादती नहीं है?(साभार:नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)