दिनेश जमदग्नि
गाजियाबाद। आज कथित पक्का तालाब जो कि नगर निगम की उपेक्षा के चलते सूखा तालाब बन गया है। सूखा तालाब के बाहर तालाब पर हुए वर्ष 2010-11 में निर्माण व्यय का ब्यौरा प्रदर्शित करता जंग खाया क्षत-विक्षत बोर्ड हंसी का पात्र व शहर निवासियों को मुंह चिढ़ाता नजर आता है। बोर्ड पर छपे अनुसार वर्ष 2010- 2011 में नगर निगम ने तालाब के जीर्णोद्धार व सौंदर्यकरण पर 3 करोड 60 लाख अनुमानित व्यय के रूप में लिखे हैं। जाहिर है अनुमानित खर्चा 3.60 लिखा है तो अंतिम व्यय की राशि 4 करोड़ के आसपास रही होगी। तालाब का क्षेत्रफल 14000 वर्ग मीटर दर्शाया गया है जबकि तालाब की भूमि पर बने आसपास के काफी मकान,दुकान भी पुराने लोग बताते हैं कि तालाब की भूमि पर ही बने हैं। क्यों ना इन मकानों,दुकानों का आजादी से पूर्व का स्वामित्व रिकॉर्ड चेक किया जा रहा है। नगर निगम के जिम्मेदार कर्मी ही नगर निगम के पास भूमि संबंधी दस्तावेज उपलब्ध ना होने का चर्चा में जवाब देते हैं। उल्टे सूचना देने वाले से ही भू-दस्तावेज की मांग करते हैं। तालाब की बेशकीमती जमीन माफियाओं के चंगुल से कौन छुड़ाए। इसके लिए गाजियाबाद में तैनात रहे आयुक्त हरदेव सिंह बाबा जैसी मजबूत इच्छाशक्ति का होना भी जरूरी है।
खुद तालाब के सामने रमते राम रोड पर नजूल संपत्ति पर कब्जे की जांच (डासना गेट के बराबर में) नगर निगम नहीं कराना चाहता। इस प्रकार कई बार शहर की जनता स्वयं को ठगा महसूस करके नगर निगम अधिकारियों को पक्षपाती के रूप में देखती है क्योंकि गरीब आदमी धूप,ओले, आंधी,तूफान,बारिश,लू आदि से सिर छुपाने के लिए झुग्गी झोपड़ी डाल ले तो रातों-रात हाथों-हाथ उसे छत विहीन कर आश्रय उजाड़ दिए जाते हैं क्योंकि वह बाहुबली व सिफारिशी तथा किसी काम के नहीं होते मात्र चुनाव के समय के अलावा जबकि शहर की बेशकीमती भूमि हड़पने वालों को जानबूझकर अनदेखा किया जाता है क्यों?
खैर छोड़िए जब माफियाओं व जिम्मेदार अधिकारियों में संधि दृष्टिगत होती नजर आती हो तो यह सब उसूल नियम कायदे बेमानी नजर आते हैं। रही बात तालाब पर 3 करोड़ 60 लाख से ज्यादा रकम खर्च किए जाने की तो इस पर तो जवाबदेही व जांच बनती है कि लगभग चार करोड़ खर्च किए जाने पर भी तालाब शहर को क्यों प्रदूषित कर रहा है। तालाब पर लगे बोर्ड पर लिखे शब्द "जीर्णोद्धार व सौंदर्यकरण" क्यों नगर निगम के लिए उपहास का कारण बन रहे हैं। तालाब के सामने से निकलने वाला शख्स क्यों नाक मुंह सिकोड़कर निकलता है तथा दोबारा यहां से ना गुजरने की सोचता है। क्यों आसपास रहनेवाले निवासी अपने को बेसहारा तथा कमजोर भाग्य वाला महसूस करते होंगे। इन सब बातों को महसूस करने के लिए शहर के सत्तासीन नेताओं व जिम्मेदार मुख्य सरकारी अधिकारी तथा तथाकथित पर्यावरण प्रेमी जो कि यदा-कदा पर्यावरण के नाम पर हरियाली, वृक्षारोपण,जल संरक्षण के मुद्दे पर इनाम पाने की जुगत,जोड़-तोड़,सिफारिश भिड़ाते नजर आते लगते हैं, इन सबका मानवीय दृष्टिकोण व प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना जरूरी ही नहीं बल्कि कर्तव्यनिष्ठ होना भी जरूरी है। इन लोगों को सोचना होगा कि हम अपनी अगली पीढ़ी को क्या संदेश व उपहार देकर जा रहे हैं। नगर निगम के भारी-भरकम बजट को यह वर्तमान व्यवस्था दीमक की तरह खोखला तथा जोंक की तरह खून चुस्ती नजर आती है जब जगह-जगह शहर की बेशकीमती भूमि पर कब्जे की नगर निगम को सूचना दी जाती है। नगर निगम हर बार कभी कुछ कभी कोई बहाना बनाकर टालने की कवायद/नूरा कुश्ती करता नजर आता है। जनसुनवाई पोर्टल पर सूचना/शिकायत करने पर कनिष्ठ कर्मी द्वारा जवाब तैयार किया जाता है लेकिन अधिकारी द्वारा भी कर्मी द्वारा भ्रामक जवाब दिए जाने वाले पत्र पर हर बार हस्ताक्षर कर उत्तर प्रेषित किए जाते हैं। ऐसे असंख्य उदाहरण हैं। सर्वत्र तथाकथित रामराज नजर आता है ना तो नगर निगम आका को फुर्सत है कि कनिष्ठ अधिकारी क्या कर रहे हैं। बस सब को मां लक्ष्मी मैया का आशीर्वाद चाहिए।
इन सब बातों से इतर आज पक्का तालाब इन असंवेदनशील नेताओं अधिकारियों व तथाकथित स्वयंभू पर्यावरण प्रेमियों की उपेक्षा व उदासीन रवैये के चलते कच्चा (सूखा) तालाब हो गया है। आज सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात यह है कि जिम्मेदार लोग समस्या के निदान पर कम पल्ला झाड़ने तथा समस्या से मुंह चुराने पर ज्यादा कवायद करते नजर आते हैं। कभी रामलीला मंचन के दौरान पक्का तालाब भगवान राम को केवट द्वारा पार उतारने की लीलाओं का साक्षी हुआ करता था जो आज स्वयं भगवान राम की अपने प्रति आशीर्वाद की बाट जोह रहा है। यह तो जब है कि जब भगवान राम को स्वयंभू आदर्श मानने वाली तथा केंद्र से लेकर स्थानीय प्रशासन तक सत्ता पर काबीज है। इससे ज्यादा श्रीराम के प्रति आस्था का प्रश्न क्या हो सकता है। देर आए दुरुस्त आए। अभी भी नगर निगम व प्रदेश सरकार का कार्यकाल शेष है। समय रहते निर्णय लिया जाए तो भगवान राम का ही शायद आशीर्वाद मिल जाए क्योंकि जब से पक्का तालाब प्रशासन की उपेक्षा से सूखा है, भगवान श्रीराम भी पार उतरने की प्रतीक्षा में है।