महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 198 वीं जयन्ती पर विशेष
बाधा होगी| पहले नैष्ठिक ब्रह्मचारी बने फिर सन्यास ग्रहण करने के बाद दयानंद सरस्वती के नाम से विख्यात हो गए| उनके गुरु स्वामी विरजानंद जी राष्ट्रवादी एवं व्याकरण के प्रकांड विद्वान थे। उनको पाकर स्वामी जी के सारे संशय समाप्त हो गए| स्वामी विरजानंद जी ने स्वामी दयानंद जी को आदेश दिया कि देश का उपकार करो। आर्ष ग्रंथों (ऋषि-ग्रंथों) की महिमा स्थापित करो। मत मतान्तरों का भेद समाप्त करो। वैदिक
आर्य समाज के संस्थापक,युग प्रवर्तक,स्वराज्य के प्रथम उद्घोषक,वेदों का उद्धार करने वाले,नारी उद्धारक,दलितों को सम्मान दिलाने वाले महर्षि दयानंद का जन्म विक्रमी सम्वत् 1881,फाल्गुन कृष्णा दशमी तदनुसार सन 1824, 12 फरवरी को हुआ था। उनकी जन्मस्थली गुजरात राज्य में टंकारा ग्राम है| शिवलिंग पर चूहे के द्वारा चढ़ावा खाने वाली घटना ने सच्चे ईश्वर की प्राप्ति के लिए उनके मन-मस्तिष्क में क्रांति का रूप ले लिया| बहन और चाचा जी की मृत्यु से उनमें वैराग्य की भावना जागृत हो गई। कैसे इन दुखों से छुटकारा पाया जा सकता है?
लगभग 21 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया| फिर यह सोच कर अपना, अपने माता-पिता किसी का परिचय नहीं दिया कि समाज सुधार में बाधा होगी| पहले नैष्ठिक ब्रह्मचारी बने फिर सन्यास ग्रहण करने के बाद दयानंद सरस्वती के नाम से विख्यात हो गए| उनके गुरु स्वामी विरजानंद जी राष्ट्रवादी एवं व्याकरण के प्रकांड विद्वान थे।
उनको पाकर स्वामी जी के सारे संशय समाप्त हो गए| स्वामी विरजानंद जी ने स्वामी दयानंद जी को आदेश दिया कि देश का उपकार करो। आर्ष ग्रंथों (ऋषि-ग्रंथों) की महिमा स्थापित करो। मत मतान्तरों का भेद समाप्त करो। वैदिक धर्म फैलायो। देव दयानंद गुरु के उपदेशों को शिरोधार्य करके कार्यक्षेत्र में उतरे। महर्षि दयानंद जी ने कुंभ के मेले में पाखंड खंडिनी पताका फहरा दी और शास्त्रार्थ के लिए ललकारा और वैदिक सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया|
तत्कालीन राजा राममोहन राय, केशव चंद्र सेन, देवेंद्र ठाकुर, महादेव गोविंद रानाडे, दादा भाई नौरोजी सभी महापुरुष अंग्रेजी विद्या के पारंगत थे किन्तु महर्षि दयानंद संस्कृत के विद्वान और वेदों के ज्ञाता थे। अर्चन्नु स्वराज्यम के आधार पर भारतवर्ष में स्वराज्य का नारा स्वामी दयानंद ने सर्वप्रथम बुलंद किया। इस संदर्भ में एक घटना है कि एक पत्रकार गांधी जी के पास गया और पूछा- आपने स्वराज्य का मंत्र कहाँ से सीखा, तो उन्होंने कहा- लोकमान्य तिलक से।
लोकमान्य तिलक से पूछा गया तो उनका उत्तर था मुख्य न्यायाधीश गोविंद रानाडे से व उनसे पूछने पर रानाडे ने कहा- मैंने महर्षि दयानंद से सीखा। इससे स्पष्ट है कि महर्षि दयानंद स्वतंत्रता के प्रथम उद्घोषक थे। दादा भाई नौरोजी ने भी लिखा है- मैंने स्वराज्य शब्द सबसे पहले सत्यार्थ प्रकाश में पढ़ा। 1857 के बाद महारानी विक्टोरिया ने घोषणा कि- अंग्रेजी सरकार भारत की प्रजा के साथ संतान की तरह व्यवहार करेगी।
महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में अपने देशवासियों को समझाते हुए मुंह तोड़ जवाब दिया कि विदेशी राज्य चाहे जितना अच्छा हो, स्वदेशी शासन से कभी अच्छा नहीं हो सकता। स्वामी जी हमेशा प्रार्थना करते थे विदेशी राज्य कभी ना हो।
हमारे देश में स्वदेशी, स्वतंत्र एवं चक्रवर्ती राज्य हो| स्वामी जी का मानना था कि देश की उन्नति एक धर्म, एक जाति और एक भाषा से संभव है। महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रंथों में लिखा कि ईश्वर एक है उसका मुख्य नाम ओ३म है। कण-कण, जन-जन में व्याप्त होने के कारण विष्णु, सबका कल्याण करने के कारण शिव है। ईश्वर के अनंत गुण, कर्म और स्वभाव हैं। इसलिए ईश्वर के अनंत नाम हैं।
उपनिषदों,महाभारत ,रामायण आदि में ओम की उपासना के लिए कहा गया है| मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी और योगीराज श्री कृष्ण जी ने भी ओम की ही उपासना की थी| महर्षि दयानंद श्रीराम और श्रीकृष्ण को आयॆ संस्कृति के प्रकाश स्तंभ मानते हैं|
महर्षि दयानंद जी जाति पर आधारित भेदभाव के कट्टर विरोधी थे। स्वामी जी ने लिखा हमारे शास्त्रों में माना जाता है कि केवल एक मनुष्य जाति है | ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये वर्ण है और यह कर्म के आधार पर होते हैं। अच्छे कर्मों के कारण शूद्र ब्राह्मण बन सकता है और बुरे कर्मों के कारण ब्राह्मण शूद्र बन सकता है।महर्षि दयानंद के सपनों को साकार करने के लिए आयॆसमाज ने इस क्षेत्र में बहुत काम किया।
सरकार के द्वारा नमक पर टैक्स लगाने पर स्वामी जी ने कहा कि नमक गरीब से गरीब की आवश्यकता है। नमक पर टैक्स लगाना सरकार का बहुत बड़ा अत्याचार है। गांधी जी ने महर्षि जी के 50 वर्ष बाद दांडी मार्च किया| स्वामी जी ने अंग्रेजो के द्वारा भारतीयों के उद्योगों को तहस-नहस करने को गहराई से अनुभव किया। उनका विश्वास था कि अंग्रेजी शासन अपने उद्योगों का विकास स्वार्थ के लिए करते हैं। स्वामी जी ने देश में उद्योगों के विकास के लिए जर्मन के प्रिंसिपल से पत्रों द्वारा विचार विमर्श किया और श्याम कृष्ण वर्मा आदि आयॆ नेताओं को शिल्प विद्या कौशल के लिए जर्मन भेजा।
स्वामी जी ने मुंबई के अनेकों महाशयों राजनेताओं के कहने पर आर्य समाज की स्थापना की। महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश के अंत में अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।मेरा विचार कोई नया पंथ या संप्रदाय प्रचलित करना नहीं है। मेरा उद्देश्य सत्य को प्रचारित करना और असत्य को समाप्त करना है। स्वामी जी बड़े- बड़े महाशयों के कहने पर भी आर्य समाज मुंबई के साधारण सदस्य बने। उनका कहना था अध्यक्ष और प्रधान में गुरुडम की गंध आती है।
महर्षि दयानंद हिंदी के प्रबल समर्थक थे, जबकि उनकी मातृभाषा गुजराती थी और स्वयं संस्कृत के प्रकांड विद्वान| उन्होंने हिंदी सीखी । हिंदी में ही प्रवचन देते थे। हिंदी में ही पुस्तकें लिखीं। पूरे देश मे संस्कृत निष्ठ हिंदी समर्थन के लिए अथक प्रयास किए।
स्वामी जी ने नारी जाति के सम्मान के लिए घोषणा की(यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमंते देवता )अर्थात जहां जहां नारी का सम्मान होता है, वही देवता निवास करते हैं अर्थात सब सुख सौभाग्य खुशियां होती हैं। स्वामी जी ने कन्याओं के लिए विद्यालय भी खोला था|
स्वामी जी पशुओं की हत्या का विरोध करते थे । उन्होंने अपनी पुस्तक गौ करुणानिधि मे गौआदि सभी पशु हमारी संपन्नता के आधार हैं । दूध ना देने पर भी उनका गोबर आदि और मृत्यु के बाद खाल भी बहुत उपयोगी है।
महर्षि दयानंद में ब्रह्म तेज और क्षत्रिय तेज का मिश्रण था। वेद आदि शास्त्रों के प्रकांड विद्वान थे, साथ ही उनमें ब्रह्मचर्य की अद्भुत शक्ति थी। जालंधर के राजा विक्रम सिंह ने महर्षि का ब्रह्मचर्य विषय पर व्याख्यान समाप्त होने पर कहा "मैं ब्रह्मचर्य को नहीं मानता"।स्वामी जी ने एक हाथ से राजा की बग्घी रोक दी और टस से मस नहीं हो पाई। राजा स्वामी जी के सामने नतमस्तक हो गए।
स्वामी जी के विषय में अनेक राजनेताओं धार्मिक नेताओं ने अपनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत की हैं योगी श्री अरविंद जी के अनुसार सभी पर्वत चक्रों में गौरी शंकर के समान उच्चतम अप्रतिम बहुआयामी व्यक्तित्व स्वामी दयानंद जी का था।
लाला लाजपत राय ने स्वामी जी को स्वतंत्रता का प्रथम प्रेरक देवदूत कहा। राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर स्वामी जी को हिंदुत्व की खड़गकर बाहॅ कहा।
स्वामी जी का कहना है- हमारा देश विश्व गुरु रहा है। हमारा देश सोने की चिड़िया रहा है। हमें सारे भेदभाव मिटाकर मिलकर रहना है। हमारा देश आलस्य प्रमाद और आपसी झगड़े और स्वार्थ के कारण सैकड़ों वर्षों गुलाम रहा महर्षि दयानंद की जयंती पर हमें संकल्प बनना है देश में सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक राष्ट्रीय धार्मिक सभी प्रकार से उन्नति करनी है।