वरिष्ठ हास्य कवि डॉ अशोक चक्रधर ने ब्रिटेन में बसे प्रवासी हिन्दी साहित्यकार डॉ पदमेश गुप्त के साथ एक शाम कार्यक्रम में मुख्य अथिति के रूप बोलते हुए

यह बात वरिष्ठ हास्य कवि डॉ अशोक चक्रधर ने ब्रिटेन में बसे प्रवासी हिन्दी साहित्यकार डॉ पदमेश गुप्त के साथ एक शाम कार्यक्रम में मुख्य अथिति के रूप बोलते हुए कही।

वरिष्ठ हास्य कवि डॉ अशोक चक्रधर ने ब्रिटेन में बसे प्रवासी हिन्दी साहित्यकार डॉ पदमेश गुप्त  के साथ एक शाम कार्यक्रम में मुख्य अथिति के रूप बोलते हुए

प्रवासी साहित्य की प्रेरणा और सृजन कार्यक्रम में यूरोप के हिन्दी लेखक, कहानीकार व कवियों ने अद्वितीय कार्य किया है।यह बात वरिष्ठ हास्य कवि डॉ अशोक चक्रधर ने ब्रिटेन में बसे प्रवासी हिन्दी साहित्यकार डॉ पदमेश गुप्त  के साथ एक शाम कार्यक्रम में मुख्य अथिति के रूप बोलते हुए कही।

प्रवासी साहित्य की प्रेरणा और सृजन पद्मेश गुप्त की वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा प्रकाशित तीन पुस्तकों का लोकार्पण व विशिष्ट परिचर्चा का आयोजन दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अशोक चक्रधर, प्रख्यात कवि व आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव, लेफ्टिनेंट जनरल विवेक कश्यप, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, कवि व लेखक अनिल जोशी, प्रसिद्ध लेखक पॉल ग्युस्टेफ्सन (ऑक्सफोर्ड), हिन्दी सेवी तितिक्षा (बर्मिंघम) और वाणी प्रकाशन ग्रुप के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने पद्मेश गुप्त के व्यक्तित्व पर अपने विचार प्रकट किए। 

वरिष्ठ कवि प्रो. अशोक चक्रधर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि “पद्मेश एक मुहब्बत के बुलबुले से, नाज़ुक से, कपास से, व्यक्तित्व हैं। जी करता है कि हज़ारों बाँहों में भर लें और इनका जो अपनापन है उसकी सुगन्ध में जियें। मैं पद्मेश से व्यक्तिगत नाते का जुड़ाव भी महसूस करता हूँ।  इतना कि इनकी आत्मा का किरायेदार हो गया हूँ।  उनके लेखन में मूलतत्त्व भावनात्मकता है। मैं उनको कहानीकार पहले मानता हूँ 


वरिष्ठ  पत्रकार राहुल देव ने कहा कि पद्मेश जी के  लेखन, चिन्तन और मित्र वत्सलता से परिचित हूँ। मुझे इस बात का गर्व है कि वह लखनऊ की एक विभूति हैं। उन्होंने लखनऊ का मान बढ़ाया है। वह मूलत: कवि हैं गद्य उनके लेखन में बाद में आता है। उनकी कविताएँ विलक्षण हैं। सरल शब्दों और विचारों के माध्यम से अन्त: तक जाने वाला जो उनका छन्द है वह बहुत प्रभावशाली है। कविताओं में उनकी चुनौतियां, सफलताएँ दिखती हैं। 'डेड एंड' की कहानी 'कब तक' आज के माहौल में बहुत प्रासंगिक है। भारत के विभाजन और आज के दौर में भी जो विसंगतियां हैं उसके संदर्भ में बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इसको दर्ज किया जाना चाहिए।


हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ समीक्षक एवं आलोचक प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि जहाँ सहजता होती है लोग उसे सरल मान लेते हैं लेकिन सरल की संश्लिष्टता पर उनका ध्यान नहीं जाता। पद्मेश जी की कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि ये सरलमना कवि की कविताएँ है लेकिन सरल कविताएँ नहीं हैं।


लेफ़्टिनेंट जनरल एवं कवि श्री विवेक कश्यप ने कहा कि, “पद्मेश की कहानियाँ बहुत अच्छी हैं। मैंने पुस्तक एक बार में पढ़ ली। इन कहानियों में लोगों के भावों की झलक मिलती है। कहानियों में मानवीय भावनाओं का सम्बन्ध है। 


ऑक्सफ़ोर्ड से पधारे अंग्रेज़ी साहित्यकार पॉल गुस्ताफ़सन ने पद्मेश गुप्त के कहानी संग्रह को अत्यंत पठनीय बताया और कहा कि “डेड एंड के अंग्रेज़ी संस्करण का ऑक्सफ़ोर्ड शहर स्वागत करता है और उनकी कहानियों की  रेडियो और टेलीविज़न पर प्रस्तुतीकरण होनी चाहिए।”


कार्यक्रम में वक्ताओं का परिचय देते हुए ब्रिटेन की हिन्दी सेवी एवं कवयित्री सुश्री तितिक्षा ने कहा कि पद्मेश जी से लोगों के प्रति प्रेम, भाईचारे और सौहार्दपूर्ण व्यवहार तथा उनसे जुड़ी यादें साझा करते हुए कहा कि  “मैं यहाँ सिर्फ़ अपनी बात कहने नहीं आयी हूँ मैंने उन तमाम लोगों के भाव बाँटने आयी हूँ जो भाव लोग पद्मेश के लिए रखते है।”


लेखक डॉ पद्मेश गुप्त ने प्रवासी साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “हिन्दी साहित्य के वैश्वीकरण में प्रवासी साहित्य की अहम् भूमिका निभा रहा है क्योकि आज प्रवासी लेखक जिस देश, जिस परिवेश में रह रहे हैं, उस जीवन को लिख रहे हैं।”

उन्होंने भारतीय साहित्य के प्रकाशन और पुस्तकों को विदेशों में प्रमोट करने पर ज़ोर दिया और इस दिशा में वाणी प्रकाशन के काम करने की सराहना की। डॉ गुप्त ने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि, “ विश्व के लोगों में हिन्दी साहित्य के प्रति जिज्ञासा है। लेकिन हमें इसको लेकर कुछ करना चाहिए। मैंने अपने कहानी संग्रह को ब्रिटेन की शिक्षिका सुरेखा चोफला को समर्पित किया है।

उसका कारण यह है कि मैं यह संदेश देना चाहता हूँ कि जो शिक्षक कवि, पत्रकार व लेखक नहीं होते हम उनको वह सम्मान नहीं देते जिसके वे हक़दारी होते हैं। शिक्षकों का बहुत महत्त्व होता है। उनको हमें सम्मान देना चाहिये। मेरी दृष्टि में प्रवासी लेखन बहुत मासूम और मौलिक है। प्रवासी लेखन का कार्य जोर-शोर से हो रहा है।

प्रवासी लेखकों ने बहुत संघर्ष किया है हिन्दी साहित्य की मुख्य धारा में आने के लिये। प्रवासी लेखन ने हिन्दी साहित्य और उसकी वैश्विकता को बढ़ाने में बहुत योगदान दिया है। जब हिन्दी के वैश्वीकरण की बात आती है तो मुझे लगता है कि सच्चा वैश्वीकरण तब होगा जब आज से 300 साल बाद इंग्लैंड या यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के किसी नागरिक को जानना होगा कि कॉविड की लड़ाई उनके परिवार ने कैसे लड़ी या Brexit के दौरान यूरोप पर क्या बीती तो उनसे कहा जायेगा कि यदि इतिहास आपको जानना है तो हिन्दी

प्रवासी लेखन को देखना चाहिये। 80-90 के दशक में बहुत कम प्रवासी लेखन हुआ क्योंकि उन्हें प्रकाशक नहीं मिलते थे। 2000 के दशक के बाद अनेक प्रवासी लेखक सामने आये। प्रवासी लेखन के प्रकाशन में अरुण माहेश्वरी जी ने बहुत योगदान दिया है। प्रवासी लेखन को उसकी भावनाओं से तौलना चाहिये ना कि भाषा से। प्रवासी लेखन के माध्यम से आज हिन्दी का वैश्वीकरण हो रहा है।”


कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रोत्रिय ने जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 1999 में लंदन, यूके में सम्पन्न छठा विश्व हिंदी सम्मेलन के संयोजक के रूप में पद्मेश गुप्त ने ग्रामीण स्तर के हिन्दी पत्रकारों को प्रोत्साहन देने के लिए सराहनीय योगदान प्रदान किया है। मैं स्वयं इसका प्रमाण हूं। मैं 1999 में बुलंदशहर जनपद के स्याना स्तर पर राष्ट्रीय सहारा का एक संवाददाता था।

'हिन्दी भक्ति साहित्य' विषय पर लिखे गए आलेख से प्रभावित होकर पत्रकार प्रदीप श्रोत्रिय को विश्व हिंदी सम्मेलन ,लंदन के अंतरराष्ट्रीय मंच से बोलने का अवसर प्रदान किया तथा वर्ष 2000 में पुन: नेहरू सेंटर, लंदन में सम्पन्न विश्व कवि सम्मेलन में प्रतिभागिता करने का मौका दिया था। जिसका परिणाम यह निकला कि  आज उस ग्रामीण पत्रकार की हिन्दी भाषा के लेखन कार्य की प्रतिभा को विश्व के अलग अलग 11 देशों में सराहा गया। जिसके लिए प्रदीप श्रोत्रिय ने पद्मेश गुप्त की भूरि भूरि प्रशंसा कर उनका आभार व्यक्त किया।


कार्यक्रम का संचालन वाणी प्रकाशन ग्रुप की ओर से श्रीमती अदिति माहेश्वरी-गोयल ने किया। 
अन्त में वाणी प्रकाशन ग्रुप के प्रबन्ध निदेशक श्री अरुण माहेश्वरी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम में भारी संख्या में साहित्य प्रेमी, विद्यार्थी, शोधार्थी और लेखकगण मौजूद रहे।