स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों की भूमिका पर संगोष्ठी आयोजित’

हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों की भूमिका विषय पर संगोष्ठी का आयोजन स्वानंद किरकिरे, उपाध्यक्ष, हिंदी अकादमी के सान्निध्य में किया गया।

स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों की भूमिका पर संगोष्ठी आयोजित’

नई दिल्ली, 26 फरवरी  हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में दिनांक
26 फरवरी, 2022 को स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों की भूमिका विषय पर संगोष्ठी का आयोजन श्री स्वानंद

किरकिरे, उपाध्यक्ष, हिंदी अकादमी के सान्निध्य में किया गया।

संगोष्ठी में श्री अरविंद पथिक, प्रो. रंजन त्रिपाठी व
श्री महेश दर्पण ने वक्ताओं के रूप में अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम की प्रस्तावना में अकादमी सचिव डाॅ.
जीतराम भट्ट ने कहा, कि जन-मानस में स्वतंत्रता का भाव जगाने वाले साहित्यकार ही रहे हैं

, भारत के स्वतंत्रता
संग्राम में ‘वंदे मातरम्’, ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ जैसे उद्घोषों के मूल
में साहित्यिक प्रतिभाएं ही रही हैं।

उन्होंने आगे कहा कि, माननीय मुख्यमंत्री व भाषा, कला एवं संस्कृति मंत्री व
हिंदी अकादमी के अध्यक्ष माननीय मनीष सिसोदिया जी के संरक्षण और मार्गदर्शन में काम कर रही है और
गतिशील है।

हम अपनी गतिशीलता बराबर दर्ज करते रहते हैं। उपाध्यक्ष हिंदी अकादमी का वर्चुअल तथा वक्ताओं
का पुष्प गुच्छ के साथ हार्दिक स्वागत कर कार्यक्रम का आरम्भ किया गया।


अरविंद पथिक ने अपने वक्तव्य में कहा, स्वतंत्रतता संग्राम में वैसे तो सभी वर्गों ने साथ दिया पर साहित्यकारों ने
भी इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने अपने शब्दों से क्रांतिकारियों, आम जन व बच्चों के भीतर पर
जोश भरा। प्रेमचंद की कर्मभूमि, रंगभूमि देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत है।

इसके इतर कहानी, उपन्यास के
अतिरिक्त कविताओं ने भी आम लोगों में जोश भरा जिससे लोग घरों से बाहर निकले और स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-
चढ़ कर हिस्सा लिया।

क्रांतिकारियों ने भी अपने एक हाथ मं बंदूक उठाई और एक हाथ में कलम रूपी तलवावर
चलाई।


रंजन त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा, वीर सावरकर की 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हो या शरत बाबू का
पथ का दावेदार ये पुस्तकें ऐसी थी जिन्होंने आमजन में स्वाधीनता की अलख जगाई।

और कविवर प्रदीप ने हमारे
देश को अमर गीत दिया ‘ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’।

महेश दर्पण ने अपने वक्तव्य में कहा,
भारतेन्दु हरिश्चंद्र, द्विवेदी, माखनलाल चतुर्वेदी आदि सभी समकालीन साहित्यकारों ने उस समय अपनी तलवार
रूपी कलम की धार को तेज कर अपने लेखन में डाला और यशपाल, राहुल सांकृत्यायन और जैेनेन्द्र आदि का
स्मरण करते हुए कहा कि इन्होंने काल-कोठरियों, जेल में बैठकर देशभक्ति के लिए गीत रचे।

और फिर स्वतंत्रता
संग्राम का आरंभ हुआ।


अकादमी के उप सचिव ऋषि कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन में कहा, साहित्य समाज को दिशा प्रदान करके उसकी
प्रवृति को सकारात्मकता की ओर उन्मुख करता है। साथ ही मानव में हिंदी के प्रति लगाव और आनन्द का संचार
करता है।

यही हिन्दी अकादमी का उद्देश्य है। हिंदी अकादमी के अध्यक्ष माननीय श्री मनीष सिसोदिया जी का
धन्यवाद करते हुए कहा कि आपकी प्रेरणा से ही यह कार्यक्रम हो पाते हैं।

सारगर्भित वक्तव्य के लिए श्री अरविंद
पथिक, प्रो. रंजन त्रिपाठी व श्री महेश दर्पण का धन्यवाद करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।

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